पूर्व राष्टपति डॉ0 शंकरदयाल शर्मा का म0प्र0 से लगाव हमेशा रहा, उनकी कर्मभूमि राज्य की राजधानी भोपाल रही उनके असमायिक निधन के बाद से उनकी पत्नी विमला शर्मा का भी प्रदेश से गहरा जुडाव है। वे साल में तीन चार बार भोपाल आकर अपने लोगों से मेल-मुलाकात करती हैं। उनके द्वारा शुरू किये गये कामों का परीक्षण करती हैं, उनका महिलाओं से विशेष जुडाव है। यही वजह है कि वर्षो से औद्योगिक नगरी भेल में श्रीमती शर्मा की पहल पर महिलाओं के लिए एक सेंटर चल रहा है, जिसमें काफी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला है, इस सेंटर की गतिविधियों का बारीकी से वे आकलन करती हैं। इस दौरान वे पुरानी यादों में भी खो जाती हैं और उन लोगों से रूबरू मिलती है, जो उनकी यादों को निकट ले जाती हैं। इससे साफ जाहिर है कि उनका भोपाल से गहरा नाता-रिश्ता है। वैसे भी उनके पति डॉक्टर साहब को भोपाल के लोग हमेशा दिलों में रखते है, क्योंकि उन्होंने भोपाल का नाम देश में रोशन किया है।
शनिवार, 30 अप्रैल 2011
विकास की संभावनाओं की प्रतीक्षा
नैर्सिगक संपदा से लबालब मध्यप्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि राज्य की स्थापना का लम्बा सफर तय होने के बाद भी विकास के फलक पर आज भी म0प्र0 पिछडा हुआ है। म0प्र0 के बाद जो राज्य अस्तित्व में आये वे आज विकास की दौड में तेजी से आगे बढ रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश अभी भी सडक, बिजली, पानी से बाहर नहीं निकल पाया है। पंजाब, हरियाणा, गोवा जैसे राज्य मध्यप्रदेश के बाद बने हैं, लेकिन इन राज्यों में विकास का जो स्वरूप दिखता है वह मध्यप्रदेश में अभी नजर ही नहीं आता है। इसके लिए मूल रूप से जनप्रतिनिधि ही जिम्मेदार है, क्योंकि उन्होंने ऐसी नीतियां और कार्यक्रमों को अंजाम नहीं दिया जिनके दूरगामी परिणाम मिल सकें। वोटो की राजनीति के चक्रव्यूह में उलझकर राजनेता अपने अपने स्वार्थो में उलझे रहे, इसका लाभ नौकरशाही ने भरपूर उठाया। आज भी नौकरशाही का राज्य में बोलबाला है, क्योंकि उनके सामने नेता नीति नियंत्रक के रूप में सामने नहीं आ पा रहे हैं, बल्कि जो नौकरशाह कह रहे हैं, वहीं हो रहा है। इससे प्रदेश का भला कैसे होगा। वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश विखण्डन के बाद भी विंध्यांचल और सतपुडा की छत्रछाया में विकास की संभावना की प्रतीक्षा में अविचल खडा है। हम नदियों के जल प्रवाह को बांध नहीं पाये और बेसकीमती पानी अरब सागर में जा रहा है। गुजरात की नदियां और तालाब नर्मदा जल से लबालब हो रहे हैं और मालवा में जल स्तर नीचे जा रहा है। राजनेताओं को वोट, चुनाव, चंदा, संगठन, समर्थक, कार्यकर्ता से उपर निकलकर प्रदेश के विकास की बहु-आयामी नीतियां बनानी होगी तभी प्रदेश का भला हो पायेगा।
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
कुपोषण बनी गंभीर समस्या
कुपोषण एक गंभीर समस्या राज्य में बन गयी है। हर छ: महीने में किसी न किसी हिस्से में कुपोषित बढते बच्चों की संख्या सामने आ रही है। महिला एवं बाल विकास इस समस्या से जूझने में नाकाम साबित हुआ है। बार बार विभाग का रोना यही होता है कि इस समस्या से जूझने के लिए अन्य एजेंसियों को भी सक्रिय भाग लेना होगा। कुपोषण की समस्या 80 के दशक से राज्य में तेजी से फैलती ही जा रही है। इस समस्या ने गंभीर रूप वर्ष 1990 के बाद धारण कर लिया है । हर वर्ष कुपोषण के आंकडे चौकाने वाले आ रहे है। एक बार फिर से अंतर्राष्टीय संस्था चाइल्ड राईटस एण्ड यूं (क्राई) में हाल ही में मध्यप्रदेश के 10 जिलों में किये गये सर्वे के आधार पर दावा किया है कि राज्य में कुपोषित बच्चों की संख्या 60 फीसदी से ज्यादा है। इस एजेंसी का कहना है कि पूरे राज्य में आदिवासी समुदाय के 74 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि भोपाल की पुर्नवास कॉलोनियों के 49 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार पाये गये है। सबसे ज्यादा कुपोषण से ग्रसित बच्चे 83 फीसदी रीवा जिले में ही मिले हैं। निश्चित रूप से यह सर्वे आंकडों के आधार पर नहीं हैं, बल्कि जमीनी हकीकत जानने के लिए जिलों में सर्वे किये गये हैं। यह समझ से परे है कि मध्यप्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग को प्रतिवर्ष करोड रूपये का बजट कुपोषण से जूझने के लिये मिल रहा है इसके बाद भी कुपोषित बच्चों की सख्या में इजाफा होने से साफ जाहिर है कि जो राशि बच्चों के विकास के लिए जारी की जा रही है उसमें कही न कही गोलमाल हो रहा है। कुपोषण रोकने के लिए राज्य सरकार को एक अभियान के रूप में लेना चाहिए अन्यथा यह बीमारी गंभीर रूप धारण करती जायेगी।
गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
फिर करवट लेगी प्रदेश की राजनीति
राज्य की राजनीति का पहिया एक बार फिर करवट लेने के लिए बेचैन है। एक दशक बाद राजनीति के चेहरे और मोहरे बदल गये हैं। बहस के मुद्दों में भी नई जान फूंकी जा रही है, ऐसा अभास हो रहा है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में वर्ष 2003 की राजनीतिक परिस्थितियां फिर से पटल पर छाने वाली है। भाजपा ने तो 2008 से ही फिर तीसरी बार सरकार बनाने का संकल्प कर रखा है और इसके लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, जबकि कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन फिर से पाने के लिए बेताब तो है, पर जमीन पर फिलहाल कांग्रेस गायब है। दोनों दल अपने-अपने राजनीतिक अस्त्र और शस्त्र के साथ मैदान में उतरने के लिए बेताब हैं। कौन किस पर पहला प्रहार करेगा यह तो समय ही बतायेगा। फिलहाल इन दिनों मध्यप्रदेश में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का दौर चल रहा है। राजनेता एक दूसरे पर टीका-टिप्पणियां कर रहे हैं। विकास की बातें गांैण हो गई हैं सिर्फ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान विकास पर जोर दे रहे हैं, लेकिन वे भी कभी कभी कांग्रेस की प्रतिक्रियों से नाराज होकर केंद्र सरकार पर तीखंे प्रहार करते हैं, जिसके चलते राजनीति फिर आरोपों के घेरे में चली जाती है। राज्य में दो दलीय राजनीति है। यहां पर कांग्रेस और भाजपा का ही वर्चस्व है। चुनाव में दोनों पार्टियां आमने-सामने होती हैं। वर्ष 2003 से राज्य पर भाजपा ने सरकार बनाई तो फिर पीछे पलटकर नहीं देखा और 2008 में फिर से सरकार बनाई। अब इस सरकार का कार्यकाल ढाई साल बाकी है। इसी के साथ ही एक बार फिर राजनीतिक दंगल शुरू हो गया है। फिर वही आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। दुखद पहलू यह है कि इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच विकास पीछे छूट रहा है, लेकिन एक अच्छा काम हो रहा है कि राज्य की जनता को यह मालूम पड़ रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार प्रदेश के विकास के लिए क्या कदम उठा रहे हैं और कहां कमियां रह गई हैं। वर्ष 2002 मंे तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया दिग्विजय सिंह के खिलाफ जिस तरह से भाजपा ने आक्रमक तेवर दिखाये थे, वहीं परिस्थितियां वर्ष 2011 में नजर आ रही हैं। अब राजनीतिक चेहरे जरूर बदल गये हैं। वर्ष 2002 में कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा, उमा भारती, कैलाश जोशी, विक्रम वर्मा और युवा तुर्क शिवराज सिंह चैहान, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, कमल पटेल, विजयशाह, सुमित्रा महाजन सहित आदि मैदान थे, इनमें से कुछ चेहरों पर दाग भी लगे हैं तब कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय सिंह मैदान में थे और उनका साथ देने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह, माधवराव सिंधिया, कमलनाथ, सुरेश पचैरी मैदान में थे। अब 2011 में राजनैतिक परिस्थितियां बदली हुई है अब भाजपा में मुखिया के रूप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान चमकते सितारे हैं, तो उमाभारती मैदान से बाहर हैं। चैहान के साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा कदम-ताल कर रहे हैं। इसके अलावा सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, थावरचंद्र गेहलोत, रघुनंदन शर्मा, नंदकुमार चैहान, सुमित्रा महाजन सहित आदि भी राजनीति की जंग में नजर आयेंगे। लेकिन कांग्रेस की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी हैं। अब इसकी कमान आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के हाथों में होगी। कंेद्रीय मंत्री भूरिया को अप्रैल 2011 में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है उनके साथ कदम ताल करने के लिए स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह को कांग्रेस विधायक दल नेता का दायित्व मिला है। इनकी राजनीतिक की डोर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के हाथों में है। इस मुहिम में केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव के साथ-साथ सुरेश पचैरी, मीनाक्षी नटराजन, श्रीनिवास तिवारी, महेश जोशी, हरवंश सिंह, सज्जन सिंह वर्मा, प्रेमचंद्र गुड्डु सहित आदि चेहरे भी मैदान में नजर आयेंगे। यानि मध्यप्रदेश की राजनीति फिर करवट ले रही है और राजनीतिक जंग न सिर्फ दिलचस्प होगी, बल्कि नये आयाम स्थापित हो जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी, क्योंकि भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और लगातार तैयारियां कर रही है, जबकि कांग्रेस तो वर्ष 2011 अप्रैल से जागी है। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस को और मेहनत तो करनी ही होगी, लेकिन भाजपा किसी से कमतर नहीं है।
पर्यटकों को लुभाता राज्यः
विविधताओं से भरी मध्यप्रदेश की धरती पर पर्यटकों के लिए खजाना ही खजाना है। पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र भी राज्य बन रहा है। राज्य सरकार ने देश का दिल मध्यप्रदेश नामक विज्ञापन के जरिए पर्यटकों को आकर्षित करने का एक उपक्रम किया है, इससे पर्यटक प्रभावित हुए हैं। अमूमन प्रदेश सरकार पर्यटकों के लिए अगर और तेजी से प्रयास करें तो न सिर्फ आय मंे बढ़ोत्री होगी बल्कि विकास का एक नया आयाम भी स्थापित होगा। इस दिशा में पर्यटन विकास निगम की चाल धीमी है। मध्यप्रदेश पर्यटन की अभूतपूर्व संभावनाओं से लबालब है। ऐतहासिक, पुरातात्विक महत्व के स्थल भोपाल, खजुराहो, सांची, मांडो, ग्वालियर, ओरछा, भीमबैठका में हैं। इनमें सांची और भीमबैठका तो अंतर्राष्ट्रीय परिदृश पर छाये हुए हैं। इसके अलावा भोपाल की ताजुल मसाजिद भी दुनिया में अपना एक अलग स्थान बनाये हुए हैं। सांची और भीमबैठका के लिए अभी भी पर्यटकों को आसानी से पहुंचने में सुविधाओं की कमी है, फिर भी यह स्थल न सिर्फ ख्याति प्राप्त है, बल्कि इनका अंंतर्राष्ट्रीय महत्व है। राज्य में प्राकृतिक सौंदर्य और राष्ट्रीय वन उद्यान भी हैं। प्राकृतिक सौंदर्यता में पचमढ़ी, भेड़ाघाट, माधवगढ़, कान्हा जैसे स्थल अपनी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। प्राकृतिक सौंदर्य तो राज्य में चारो तरफ फैला हुआ है, प्रदेश की राजधानी भोपाल तो प्राकृतिक सौंदर्य की अंनूठी मिसाल है। इसके अलावा धार्मिक महत्व के स्थल भी भरपूर है, जिसमें उज्जैन, अमरकंटक, औंकारेश्व, महेश्वर, चित्रकूट, मैहर, सलकनपुर, ओरछा, हरसिंद्धि देवी मंदिर, जैन मंदिर, सोनागिरि, पन्ना का बलदाऊ और जुगलकिशोर मंदिर, रामघाट, भोजपुर मंदिर, जानकी कुण्ड आदि का अपना बढ़ा महत्व है। इन स्थलों पर समय समय मेले भी लगते रहते हैं।
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
लेखक की नजर में मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश की विकास गाथा इतिहास का ऐसा प़ष्ठ बन गया है, जिस पर वेदना के स्वर अधिक है, संतोष और सुख के व्यंजन कम हैं। वेदना इसलिए कि देश में मध्यप्रदेश ही एक ऐसा राज्य था, जहां बहुत कुछ किया जा सकता था, किन्तु उपलब्धि आशातीत नहीं रही। प्रक़ति ने हमारे साथ उदारता बरती, हमे उर्वर भूमि दी, खनिज दिये, वन दिये पर इस विटप सरिता गिरि धरनी वाले राज्य में हम प्रक़ति के वरदान को खुशहाली के रूप में सभी तक पहुंचाने में असफल रहे। हमनें आंकडो को छला और आंकडो ने हमें। नई सदी की दहलीज पर प्रदेश के नये सपनों के साथ हम फिर दस्तक दे रहे हैं।
विष्णुनागर 01 नवम्बर, 1999 में प्रकाशित लेख का अंश
मध्यप्रदेश और शिवराज सिंह चौहान
प्रदेश का विकास केवल सरकार के भरोसे नहीं हो सकता है। समाज भी साथ खडा हो तो विकास की गति को कई गुना बढाया जा सकता है। आम आदमी में यह जुनून पैदा होना चाहिए कि यह प्रदेश मेरा है और मुझे इसे गढना और बनाना है। हर नागरिक यदि अपना कर्त्तव्य पूरा करने लगे तो चमत्कार हो सकता है। हम रोजमर्रा के कामों के अलावा प्रदेश हित का कोई भी एक काम हाथ में ले मसलन पौधे लगाना, पानी और बिजली बचाना, साफ-सफाई, नशा-मुक्ति जैसे काम करके राज्य के हित में एक कदम आगे बढा जा सकता है। अपना मध्यप्रदेश अभियान के पीछे सिर्फ मकसद यही है कि हम संकल्प ले कि प्रदेश को बनाने में अपना सर्वश्रेट देंगे। यह अभियान पूरी तरह से गैर राजनीतिक है और राज्य का हर दल और हर नागरिक इसमें भागीदार बने।
गर्व है मध्यप्रदेश पर .....
प्राक़तिक संपदा से भरपूर राज्य पर गर्व है। विकास की गंगा बह रही है, गांव से लेकर शहरो तक विकास का पैमाना बदला है। सडके चौडी हो रही हैं, कही-कहीं कारखानों की गूंज सुनाई दे रही है,मिल-जुलकर रहने की संस्क़ति में हम रच-बस गये हैं, फिर भले ही अलग-अलग भाषाओं और बोलियों में हमने अपनी पहचान बनाने की कोशिश की है, यही वजह है कि हम वर्षो से अलग-अलग परिवेश और बोलियों के बीच रह रहे हैं, लेकिन मालवी, बुंदेलखण्डी, विंध्य, महाकौशलवासी और भोपाली और जब तक छत्तीसगढ नहीं तब तक छत्तीसगढिया और सभी अपने अपने को बढिया मानते रहे हैं। आज भी भले ही अलग अलग क्षेत्र और इलाकों की बात करें तब भी मध्यप्रदेश की जय हो की गूंज चारो तरफ गूंजने लगी है। इसकी ध्वनि और तेज होनी बाकी है। हमें इस बात पर गर्व है कि हिमालय से प्राचीन और उत्तर-दक्षिण का सेतू विंध्यांचल हमारा मुकुट है और गंगा से प्राचीन पवित्र नर्मदा हमारी प्राणदाहिनी है, काल पर विजय के प्रतीक महाकाल हमारे हैं और क़ष्ण ने सांदीपनी आश्रम में शिक्षा पाई थी, तो वनवासी राम का आश्रम स्थल मंदाकिनी का तट बना था, बौद्व का संदेश सांची से ही विश्व में गया है, अम़त घट क्षिप्रा की धारा में ही छलका है, इसलिए मध्यप्रदेश हमारे मन, तन,मस्तिष्क में अपनेपन के साथ अंतरधारा में प्रवेश कर गया है, जो कभी खत्म होने वाला नहीं है। इस राज्य की धरोहर हमारे आपकी सबकी है, जिसका संरक्षण करना सबका दायित्व है।
सांस्क़तिक पर्वो का आदर्श मध्यप्रदेश :
म.प्र. का विविधता पूर्ण सांस्क़तिक स्वरूप पूरे देश में अनूंठा है यहा न सिर्फ एक से दूसरे छोर बल्कि हर 40 किमी के फासले पर भिन्न-भिन्न परम्परा, जीवनशैली, बोली का साक्षात्कार होता है। देश का ह़दय प्रदेश होने का गौरव हासिल करने वाले राज्य में सांस्क़तिक पर्वो ने अपनी एक अनूंठी छबि जनमानस में छोडी है। सम़द्व और प्रतिष्ठित सांस्क़तिक कार्यक्रम की धरोहर हर हिस्से में आज भी सुरक्षित है। इस विशिष्ट सांस्क़तिक पहचान को बनाये रखने के लिए हर संभव प्रयास हो रहे है, वैसे भी राज्य में संगीत, रंगमंच, साहित्य, चित्रकला का शानदार अतीत रहा है। भोपाल में सांस्क़तिक केंद्र भारत भवन की अपनी अनूंठी छबि है। इसके कार्यक्रमों ने देश में एक अलग सांस्क़तिक प्रतिष्ठा हासिल की है फिर भले ही पिछले एक दशक से भारत भवन अपने अतीत से बाहर नहीं निकल पा रहा है और न ही इस तरह के प्रयास हो रहे हैं। संस्क़ति विभाग ने राष्टीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए फिल्म सिटी बनाने का सपना बुना है, तो रंगमंडल को नया रूप दिया जा रहा है, इसके अलावा राज्य के विभिन्न हिस्सों में जो सांस्क़तिक धरोहर है, उसको भी बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं।
मंगलवार, 26 अप्रैल 2011
'' मध्यप्रदेश को पहचान का संकट ''
आबादी, क्षेत्रफल और प्राक़तिक संपदा से भरपूर मध्यप्रदेश को आज भी पहचान का संकट का सामना करना पड् रहा है। कदम-कदम पर समस्याओं का अम्बार है। दुखद पहलू यह है कि प्रदेश 54 साल का सफर पार कर चुका है, लेकिन आज भी पहचान का संकट कायम है। सबका अपना-अपना राग है। राजनीति के दाव-पेंच मैदान में तो नजर आते नहीं है बस बयानों के जरिए इधर-उधर प्रहार हो रहे हैं। राज्य को नई उचाईयों पर ले जाने का सपना हर राजनेता के दिल और दिमाग में है, पर इसके लिए पहल किसी स्तर पर नहीं हो रही है। केंद्र सरकार के सामने भी राजनैतिक गुणा-भाग के तहत अपने तर्क गढे जा रहे है। प्रदेश आज भी सड्क, बिजली, पानी, रोजगार, असमानता, गरीबी, पिछडापन से जूझ रहा है। न तो बडे-बडे कारखाने राज्य में आ रहे हैं और न ही रोजगार के कोई बडे द्वार खोले जा रहे हैं। राजनैतिक दलों की बागडोर संभाले नेत़त्व भी अपनी गति से चल रहा हैं, लेकिन उन्हें राज्य की विकास यात्रा को नया आयाम देने की चिंता नहीं है। मध्यप्रदेश एक सर्वाधिक संभावना वाला प्रदेश है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना प्रदेश बनाने का जो संकल्प लिया है, उससे एक शुभ संकेत के द्वार खुले हैं वह अपनी सभाओं में जय मध्यप्रदेश का नारा भी लगवाते हैं और पहली बार उनकी पहल पर मध्यप्रदेश पर आधारित गीत भी तैयार हुआ है। यह निश्िचत रूप से राज्य के लिए एक अच्छा संकेत है, लेकिन अभी भी एक अलग पहचान स्थापित करने के लिए सबको आगे आना ही होगा, तभी राज्य पहचान के संकट से बाहर निकल पायेगा। अभी तो पहचान का एक बडा संकट हमारे आसपास मडरा ही रहा है।
कुशाभाउ ठाकरे और मध्यप्रदेश ...
प्रक़ति ने मध्यप्रदेश को क्या नहीं दिया। क्षेत्रफल में सबसे बडा, उर्बरा धरती, बहुमूल्य खनिज संपदा, हरियाली बिखरते जंगल, बिपुल जलराशि समेटे कल-कल करती नदियां, शांति प्रिय लोग एवं देश के अन्य भागो में व्यप्त जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसी बीमारी से कम प्रभावित लोग, इतना सब कुछ होने के बाद भी विकास की दौड में सबसे नीचे खडा है मध्यप्रदेश। क्या यह विरोधाभाष नहीं है। इसको तोडने की जरूरत है। क्या इसके लिए हम सब दोषी नहीं है। विकास का पैमाना हमें गांव गांव ले जाना होगा। प्रदेश में अपार जल संपदा है फिर भी बिजली का उत्पादन खपत और क्षमता के अनुरूप नहीं है।
यह टिप्पणी राज्य पर 1984 के एक साक्षात्कार से
अर्जुन सिंह और मध्यप्रदेश...
मैं मध्यप्रदेश को एक थिरकते हुए जीवंत राज्य के रूप में देखना चाहता हू मध्यप्रदेश से जहां मेरा राजनीतिक संबंध है वहीं भावनात्मक भी है। इन दोनों रंगों से मेरे स्वप्नों की रचना होती है, एक प्रकार से म0प्र0 क्षेत्रीय, सांस्क़तिक और प्राक़तिक विविधताओं का संगम है, विकास की विभिन्न अवस्थाओं में जी रहा है, किसी भी सच्चे मध्यप्रदेशवासी का यह स्वप्न होगा कि उसका प्रदेश इन विविधताओं के मध्य सुर-ताल-लय को बनाये रखते हुए प्रगति विकास के पथ पर दौडे। प्रदेश को एक आधुनिक और विकसित राज्य बनाना है।
यह बयान वर्ष 1984 में एक साक्षात्कार से
सोमवार, 25 अप्रैल 2011
जब अलग-अलग विभागों के आला अधिकारी मुख्यमंत्री के अभियानों पर पाठ पढ़ा रहे थे तब स्वयंसेवी संगठन के कार्यकर्ता मोबाइल पर एसएमएस कर रहे थे।
जब अलग-अलग विभागों के आला अधिकारी मुख्यमंत्री के अभियानों पर पाठ पढ़ा रहे थे तब स्वयंसेवी संगठन के कार्यकर्ता मोबाइल पर एसएमएस कर रहे थे।
यह आलम रवींद्र भवन सभागृह में सोमवार को देखने को मिला। यह कार्यक्रम मप्र जन अभियान परिषद ने आयोजित किया था। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के अभियान जलाभिषेक, खरीफ जन अभियान, स्कूल चलो एवं स्पर्श अभियान पर विस्तार से पाठ पढ़ाने के लिए हर जिले कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया था। राज्य शिक्षा केंद्र के आयुक्त मनोज झालानी और किसान कल्याण तथा कृषि विकास संचालक डॉ.डीएन. शर्मा जब अपने विभाग से जुड़े अभियान के पहलुओं को विस्तार से बता रहे थे तब सभागृह में मौजूद कार्यकर्ता अपने-अपने मोबाइल की दुनिया में डूबे हुए थे। यहां तक कि परिषद के उपाध्यक्ष अजय मेहता स्वयं भी मोबाइल पर एसएमएस करने में व्यस्त थे।
जन अभियान परिषद के एक दिवसीय कार्यकर्ता सम्मेलन का उद्यान पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने किया। भार्गव ने कहा कि उनके विभाग के अभियानों से स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं को जुडऩा चाहिए। यह ऐसे अभियान है जिनसे जनता को सीधा नाता रिश्ता है। राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त मनोज झालानी ने स्कूल चलो अभियान की जरूरत पर प्रकाश डाला जबकि कृषि संचालक डॉ.डीएन. शर्मा ने खरीफ फसल अभियान के बारे में बताना शुरू किया तो स्वयंसेवी कार्यकर्ता धीरे - धीरे सभागृह से बाहर आने लगे। वैसे तो चर्चा के दौरान कुछ प्रतिनिधि तो रवींद्र भवन के बाहर ही टहलते नजर आए अथवा अपने मोबाइल में डूबे रहे।
राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर से मिलकर अपने अधिकारों की सुरक्षा की गुहार
राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर से मिलकर अपने अधिकारों की सुरक्षा की गुहार
विश्वविद्यालय कार्यपरिषद सदस्यों के अधिकारों में की जा रही कटौती के विरोध में सोमवार को ईसी मेम्बरों ने कुलाधिपति एवं राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर से मिलकर अपने अधिकारों की सुरक्षा की गुहार लगाइ्र्र। श्री ठाकुर ने सदस्यों को आश्वस्त किया है कि उनके अधिकारों पर पुनर्विचार किया जाएगा।
लगातार प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से कार्यपरिषद सदस्यों द्वारा विवि. के कामकाज हस्तक्षेप की शिकायतें उच्च शिक्षा विभाग को मिल रही थी। इन शिकायतों के आधार पर ही उच्च शिक्षा विभाग ने कार्यपरिषद सदस्यों के अधिकारों में कटौती का प्रस्ताव तैयार किया है जो कि कभी भी लागू हो सकता है। प्रत्येक विवि. में करीब 12 कार्यपरिषद सदस्य होते है इनकी कुलाधिपति नियुक्ति करते है।
विभिन्न विश्वविद्यालयों के कार्यपरिषद सदस्यों का एक दल ने राज्यपाल से मिलकर अपने कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। इन सदस्यों ने कहा कि वे नि:शुल्क सेवाएं विवि को दे रहे थे तब भी विवि. से सहयोग की बजाय असहयोग की शिकायत मिलती है। प्रत्येक प्रतिनिधि का प्रयास होता है कि लोकतांत्रिक प्रणाली से कार्य कर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करें। इसके बाद भी अधिकारों में कटौती की जा रही है। इस पर कुलाधिपति ठाकुर ने आश्वस्त किया कि वे इस संबंध में अधिकारियों से पुनर्विचार करने के निर्देश देंगे कि अधिकारों में कटौती न की जाए
चुंगी से जुटाएगी सड़को, के लिए सरकार पैसा
चुंगी से जुटाएगी सड़को, के लिए सरकार पैसा
सूबे की सरकार सड़कों, बड़े-बड़े पुलों और रेलवे ओवर ब्रिज बनाने के लिए
चुंगी के जरिए राशि जुटाने की कवायद कर रही है। लोक निर्माण िवभाग ने
प्रदेश में ऐसे पुल, सड़क, ओवर ब्रिज चिन्हित किये है, जिनसे चुंगी कर की
व्यवस्था की जा सकती है। इस संबंध में आवश्यक अध्ययन का प्रस्ताव तैयार
हो रहा है। इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बारबार बैठकों के
दौरान निर्देश दे चुके हैं कि राज्य में व्यापार, व्यवसाय और आम आदमी की
तरक्की के लिए सड़कों और पुलों का जाल फैलाया जाये। ताकि उद्योगपति पूंजी
निवेश में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। अप्रैल 2011 में एक बैठक के दौरान
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि सारे निर्माण कार्य एक साथ किए जाने चाहिए।
इससे समय के साथ-साथ पैसे की बचत तो होती ही है, जनता को भी बार-बार
तकलीफ नहीं उठाना पड़ती। आम तौर पर यह देखने में आता है कि सड़क बन गई तो
पुल बनाने के लिए उसकी फिर खुदाई की जाती है। यह ठीक नहीं है और समग्र
योजना बनाकर ही निर्माण के कार्य किए जाने चाहिए। इस बैठक में मध्यप्रदेश
सड़क विकास निगम की टोल-बीओटी और एन्यूटी मोड के जरिए 2073 किलोमीटर लंबी
73 सड़कों के निर्माण की मंजूरी दी गई।
इस कार्य पर 3,312 करोड़ रूपये से अधिक राशि का व्यय अनुमानित है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए
व्यवस्थागत सुधारों में अग्रणी राज्य हे। इस व्यवस्था को और अधिक मजबूत
बनाने के लिए लोेक निर्माण विभाग में भुगतान की व्यवस्था ई-पेमेंट के
जरिए पारदर्शी बनाई जा सकती है। उन्होंने निर्माण कार्यो की प्रगति की
नियमित अॉन लाइन मॉनीटरिंग के लिए तैयार किए जा रहे सॉफ्टवेयर की जानकारी
भी ली। केंद्रीय सड़क निधि के तहत इस वर्ष प्रदेश को 170 करोड़ रूपये का
आवंटन प्राप्त होगा। गत वर्ष के बकाया 72 करोड़ रूपये सहित कुल 242 करोड़
रूपये की राशि इस निधि के अंतर्गत उपलब्ध रहेगी।
जनपद पंचायतः न अधिकार, न बजट, न काम
जनपद पंचायतः न अधिकार, न बजट, न काम
मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत राज की महत्वपूर्ण कड़ी जनपद पंचायतें
प्रदेश में मात्र शो पीस बनकर रह गई हैं, न तो इनके पास बजट है, न काम
स्वीकृत करने का अधिकार। इसके अलावा आय का भी कोई स्त्रोत नहीं है। ऐसी
स्थिति में जनपद अध्यक्षों ने तो इन पंचायतों को भंग करने तक की गुहार
लगाई है।
स्थिति यह है कि जनपद पंचायतों के अध्यक्ष एवं कायर्पालन अधिकारी अपनी
भूमिका डािकया तक ही सीमित समझते हैं। इनमें से अधिकांश कहते हैं कि जिले
की डाक को ग्राम पंचायत तक पहुंचाना ही उनका काम रह गया है। थोड़ा बहुत
जो कुछ काम बचा है उसमें पेंशन वितरण, जनजागृति शिविर, जनसमस्या निवारण
शिविर, पंच, सरपंच सम्मेलन करान आदि प्रमुख हैं। इन पंचायतों के पास न तो
कोई योजना है, न ही कर वसूलने का अधिकार है। जनपद पंचायतों को अपना खर्च
चलाने तके लिए मुद्रांक शुल्क और खनिज रॉयल्टी पर निर्भर होना पड़ता है।
इसमें भी तुर्रा यह कि खनिज रॉयल्टी की राशि समय पर नहीं मिल पाती। भोपाल
जिल की दोनों जनपद पंचायतों फंदा और बैरसिया को दिसंबर माह तक रॉयल्टी
नहीं मिल पाई। हाल ही में जनपद पंचायतो का महीने भर वान चालने का अधिकार
मिला है, लेकिन इसके लिए पेट्रोल की राशि कहां से मिलेगी इसका अभी खुलासा
नहीं किया गया है। उधर वाहन भी पूरे नहीं हैं। वर्ष 1998 में विकास खंड
स्तर के सारे वाहन बेचे जा चुके हैं । पहले जनपद पंचायतों के अधीन 29
विभाग थे, लेकिन अब यह अधिकार भी समाप्त कर दिया गया है। एक जनपद अध्यक्ष
नेे नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वर्ष 1994 से 2000 के बीच जनपद
पंचायतों को सारे अधिकार थे, लेकिन वर्ष 2005 से यह अधिकार सीमित कर दिए
गए हैं। आय की स्थिति यह है कि मुद्रांक शुल्क से एक जनपद को पांच से दस
लाख की राशि वर्ष भर में मिल पाती है, लेकिन यह राशि कर्मचारियों के
वेतन, जनपद के रखरखाव एवं स्टेशनरी पर ही खर्च हो जाती है। अधिकार और
सुविधाओं से वंचित हुए जनपद अध्यक्ष नए वर्ष में एकजुट होकर मुख्यमंत्री
से मिलने का मन बना रहे हैं। इस दौरान जनपद पंचायतों को भंग करने पर जोर
डाला जाएगा।
रविवार, 24 अप्रैल 2011
शनिवार, 23 अप्रैल 2011
मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय का आरोप प्रदेश की भाजपा सरकार हर मोर्च पर विफल
भोपाल।किसानों के खेत और गरीबों के पेट खाली, गाय, आदिवासी दलित को भूली सरकार, भगवा रंग में डूबी संघ परिवार की बैशाखियों पर भाजपा सरकार। कुल मिलाकर हर मोर्चे पर प्रदेश की भाजपा सरकार विफल। यह आरोप मप्र विधानसभा में नवनियुक्त नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने शनिवार 23 अप्रैल 2011 को कांग्रेस मुख्यालय भोपाल में अपनी पहली पत्रकारवार्ता में लगाये।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार हर मोर्च पर नकारा और असफल साबित हुई है। आम आदमी परेशान है, किसान आत्महत्या करने को विवश है और गरीब का पेट खाली है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आओ बनायें मध्यप्रदेश, 70 संकल्प और वनवासी यात्रा सिर्फ नाटक है। इससे राज्य की जनता का कुछ भी भला नहीं हो रहा है।
उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है। भाजपा सरकार के अनेक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के मामले भी लोकायुक्त में चल रहे हैं। केन्द्रीय योजनाओं में करोड़ों का घोटाला लगातार हो रहा है। कांग्रेस पार्टी भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रमक लड़ाई लड़ेगी। हर वह चेहरा और व्यवस्था उजागर होगी जो भ्रष्टाचार में लिप्त है।
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश में भगवा राज्य कायम हो गया है। सरकारी योजनाओं के कामकाज संघ परिवार के समर्थकों को मिल रहे हैं। सरकार की मिली भगत से सरकारी जमीनों की बंदरबांट और लूटमार मची है। संघ परिवार का सरकार के कामकाज पर तेजी के साथ हस्ताक्षेप बढ़ा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सांप्रदायिक ताकतों का जाल फैल गया है। हर दूसरे-तीसरे महीने सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश शांति का टापू कहा जाने वाला राज्य है। लेकिन अब अपराधियों का गढ़ बन गया है। कानून व्यवस्था चौपट हो गई है। अपहरण उद्योग तेजी से पनपा है। महिलाओं और बालिकाओं से बलात्कार की घटनाएं तो आम बात हो गई हैं। प्रदेश में दलित महिलाओं को अपमानित करना और उनके साथ बलात्कार की घटनाओं में इजाफा, भू माफिया, रेत माफिया, दवा माफिया, बिजली माफिया, शिक्षा माफिया, मानव शरीर बेचने वाला माफिया ने राज्य सरकार पर कब्जा करने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि इन लोगों की राज्य में तूती बोल रही है।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार हर मोर्च पर नकारा और असफल साबित हुई है। आम आदमी परेशान है, किसान आत्महत्या करने को विवश है और गरीब का पेट खाली है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आओ बनायें मध्यप्रदेश, 70 संकल्प और वनवासी यात्रा सिर्फ नाटक है। इससे राज्य की जनता का कुछ भी भला नहीं हो रहा है।
उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है। भाजपा सरकार के अनेक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के मामले भी लोकायुक्त में चल रहे हैं। केन्द्रीय योजनाओं में करोड़ों का घोटाला लगातार हो रहा है। कांग्रेस पार्टी भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रमक लड़ाई लड़ेगी। हर वह चेहरा और व्यवस्था उजागर होगी जो भ्रष्टाचार में लिप्त है।
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश में भगवा राज्य कायम हो गया है। सरकारी योजनाओं के कामकाज संघ परिवार के समर्थकों को मिल रहे हैं। सरकार की मिली भगत से सरकारी जमीनों की बंदरबांट और लूटमार मची है। संघ परिवार का सरकार के कामकाज पर तेजी के साथ हस्ताक्षेप बढ़ा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सांप्रदायिक ताकतों का जाल फैल गया है। हर दूसरे-तीसरे महीने सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश शांति का टापू कहा जाने वाला राज्य है। लेकिन अब अपराधियों का गढ़ बन गया है। कानून व्यवस्था चौपट हो गई है। अपहरण उद्योग तेजी से पनपा है। महिलाओं और बालिकाओं से बलात्कार की घटनाएं तो आम बात हो गई हैं। प्रदेश में दलित महिलाओं को अपमानित करना और उनके साथ बलात्कार की घटनाओं में इजाफा, भू माफिया, रेत माफिया, दवा माफिया, बिजली माफिया, शिक्षा माफिया, मानव शरीर बेचने वाला माफिया ने राज्य सरकार पर कब्जा करने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि इन लोगों की राज्य में तूती बोल रही है।
राशन दुकानों से किनारा किया जानी मानी कंपनियों ने
प्रदेश भर की राशन दुकानों से देश की जानी मानी कंपनियों ने किनारा कर लिया। न तो कंपनियां अपना सामान राशन दुकानों पर उपलब्ध करा रही और न ही राशन दुकानदार दिलचस्पी ले रहे है। इसके चलते राशन दुकानों की तस्वीर बदलने की योजना अधर में लटक गई है। दो वर्षों में सिर्फ 200 राशन दुकानों ने इस योजना का लाभ लिया है बाकी दुकानों ने इससे कन्नी काट ली है।
क्या थी योजना : राज्य की राशन दुकानों पर रोजाना उपयोग में आने वाली वस्तुओं को बेचने की योजना खाद्य विभाग ने वर्ष 2009 से शुरू की थी। इस योजना के तहत राशन दुकानों पर प्रतिष्ठित कंपनियों के साबुन, हेयर कलर, शेविंग क्रीम,टेल कम पाउडर, सहित मोबाइल सेवा, हैंडसेट और सिम बेचने की योजना थी। इस योजना के तहत देश की प्रतिष्ठित कंपनी गोदरेज एवं ब्रिटानिया से अनुबंध हुआ जो कि अभी भी जारी है लेकिन इन कंपनियों को महत्व नहीं मिलने पर कंपनियां भी सुस्त हो गई।
योजना लागू करने की वजह : इस योजना को राशन दुकानों में लागू करने के पीछे एक मात्र मकसद राशन दुकानों का कायाकल्प करना था। योजना में यह प्रावधान किया गया था कि निर्धारित कंपनियों की सील बंद वस्तुएं ही दुकान से बेची जाए।
फ्लाप रही योजना : खाद्य विभाग ने जिस धूमधाम से योजना का श्रीगणेश किया था पर उसके परिणाम नगण्य ही रहे। दो वर्ष बाद भी योजना का विस्तार नहीं हुआ बल्कि 200 राशन दुकानों से अधिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ी दुकानों ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। दुकानदार दुखी मन से कहते है कि राशन दुकानों से प्रतिष्ठित कंपनियों की सामग्री खरीदने वाले उपभोक्ता कम ही आ पाते है। यहां तक कि जिन दुकानों ने गोदरेज एवं ब्रिटानिया कंपनियों के सामान अपनी राशन दुकानों पर रखे जरूर पर वे बिक नहीं पाए। इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि जिन कंपनियों के सामान दुकानों पर मौजूद थे उस पर उपभोक्ताओं ने कोई रूचि नहीं दिखाई। कंपनी सूत्रों का भी कहना है कि राशन दुकानों से सामान बेचने का प्रयोग गति नहीं पकड़ पाया।
क्या थी योजना : राज्य की राशन दुकानों पर रोजाना उपयोग में आने वाली वस्तुओं को बेचने की योजना खाद्य विभाग ने वर्ष 2009 से शुरू की थी। इस योजना के तहत राशन दुकानों पर प्रतिष्ठित कंपनियों के साबुन, हेयर कलर, शेविंग क्रीम,टेल कम पाउडर, सहित मोबाइल सेवा, हैंडसेट और सिम बेचने की योजना थी। इस योजना के तहत देश की प्रतिष्ठित कंपनी गोदरेज एवं ब्रिटानिया से अनुबंध हुआ जो कि अभी भी जारी है लेकिन इन कंपनियों को महत्व नहीं मिलने पर कंपनियां भी सुस्त हो गई।
योजना लागू करने की वजह : इस योजना को राशन दुकानों में लागू करने के पीछे एक मात्र मकसद राशन दुकानों का कायाकल्प करना था। योजना में यह प्रावधान किया गया था कि निर्धारित कंपनियों की सील बंद वस्तुएं ही दुकान से बेची जाए।
फ्लाप रही योजना : खाद्य विभाग ने जिस धूमधाम से योजना का श्रीगणेश किया था पर उसके परिणाम नगण्य ही रहे। दो वर्ष बाद भी योजना का विस्तार नहीं हुआ बल्कि 200 राशन दुकानों से अधिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ी दुकानों ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। दुकानदार दुखी मन से कहते है कि राशन दुकानों से प्रतिष्ठित कंपनियों की सामग्री खरीदने वाले उपभोक्ता कम ही आ पाते है। यहां तक कि जिन दुकानों ने गोदरेज एवं ब्रिटानिया कंपनियों के सामान अपनी राशन दुकानों पर रखे जरूर पर वे बिक नहीं पाए। इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि जिन कंपनियों के सामान दुकानों पर मौजूद थे उस पर उपभोक्ताओं ने कोई रूचि नहीं दिखाई। कंपनी सूत्रों का भी कहना है कि राशन दुकानों से सामान बेचने का प्रयोग गति नहीं पकड़ पाया।
मप्र विधानसभा में कांग्रेस भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी, ब्लेक पेपर भी जारी होंगे- अजय सिंह नेताप्रतिपक्ष
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है। भाजपा सरकार की विफलताओं एवं ध्वस्त कानून व्यवस्था और आम आदमी से विधानसभा चुनाव में किये गये वायदों के साथ खिलवाड़ को उजागर करने के लिये राज्य विधानसभा में कांग्रेस पार्टी अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। यह जानकारी मप्र विधानसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने शनिवार 23 अप्रैल 2011 को कांग्रेस मुख्यालय भोपाल में एक संवाददाता सम्मेलन में दी।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस पार्टी भाजपा सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा के संपन्न होने वाले दो सत्रों के बीच में ही लाने का प्रयास करेगी। नेता प्रतिपक्ष ने पत्रकारों को बताया कि सरकार की खामियों और नकारापन पर विचार करने के लिये कांग्रेस के विधायकों की समिति गठित की जाएगी। सरकार की कमजोरियां, भ्रष्टाचार की बहती नदियां, नकारापन, दोहराचरित्र, जनता के साथ किये गये वायदों से मजाक सुशासन भी कुशासन में बदला, बिजली, सड़क, पानी के अधूरे वायदें और स्वर्णिम राज्य बना दिखावा सहित अनेक बिन्दुओं पर केन्द्रित समय-समय पर ब्लेक पेपर कांग्रेस पार्टी द्वारा जारी किये जायेंगे।
नेता प्रतिपक्ष ने बताया कि हालही में 2500 करोड़ की बिजली राज्य सरकार ने बिना टेंडर के खरीदी है। उन्होंने कहा कि आठ साल में राज्य में तीन सीएम भाजपा ने दे दिये हैं। यह मुख्यमंत्री किस दिशा में प्रदेश को ले जाना चाहते हैं समझ के परे है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की राज्य सरकार की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस पार्टी भाजपा सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा के संपन्न होने वाले दो सत्रों के बीच में ही लाने का प्रयास करेगी। नेता प्रतिपक्ष ने पत्रकारों को बताया कि सरकार की खामियों और नकारापन पर विचार करने के लिये कांग्रेस के विधायकों की समिति गठित की जाएगी। सरकार की कमजोरियां, भ्रष्टाचार की बहती नदियां, नकारापन, दोहराचरित्र, जनता के साथ किये गये वायदों से मजाक सुशासन भी कुशासन में बदला, बिजली, सड़क, पानी के अधूरे वायदें और स्वर्णिम राज्य बना दिखावा सहित अनेक बिन्दुओं पर केन्द्रित समय-समय पर ब्लेक पेपर कांग्रेस पार्टी द्वारा जारी किये जायेंगे।
नेता प्रतिपक्ष ने बताया कि हालही में 2500 करोड़ की बिजली राज्य सरकार ने बिना टेंडर के खरीदी है। उन्होंने कहा कि आठ साल में राज्य में तीन सीएम भाजपा ने दे दिये हैं। यह मुख्यमंत्री किस दिशा में प्रदेश को ले जाना चाहते हैं समझ के परे है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की राज्य सरकार की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है।
राज्यपाल मप्र से केन्द्रीय मंत्री सिंधिया और कांग्रेस नेता वोरा मिले
राज्यपाल मप्र से केन्द्रीय मंत्री सिंधिया और कांग्रेस नेता वोरा मिले, राज्य में कांग्रेस नेता सक्रिय हुये
भोपाल।मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेता सक्रिय हो गये हैं। मप्र के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर से केन्द्रीय वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने शुक्रवार 22 अपै्रल 2011 को भोपाल में राजभवन पहुंचकर मुलाकात की।
राज्यपाल से कांग्रेस नेताओं ने सुबह मुलाकात की। यह मुलाकात लगभग पौने दो घंटे तक चली। कांग्रेस नेता वोरा और केन्द्रीय राज्यमंत्री सिंधिया राजधानी भोपाल आये थे। वे विदिशा में कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद भोपाल रूके। श्री वोरा ने राजभवन के गेस्ट हाउस में विश्राम किया। वहीं सिंधिया एक निजी होटल में रूके थे। बताया जाता है कि राज्यपाल मप्र से सबसे पहले कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा मिले। तदोपरांत केन्द्रीय राज्यमंत्री भी चर्चा में शामिल हो गये।
इस दौरान केन्द्रीय राज्यमंत्री अरूण यादव द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक सभा को बीच में ही छोड़कर चले जाने की घटना से कांग्रेस नेता नाराज हैं। कांग्रेस नेता मुख्यमंत्री मप्र द्वारा की गई उपेक्षा को राजनीतिक मुद्दा बनाने में लगे हैं। इसी सिलसिले में श्री वोरा और सिंधिया की राज्यपाल से चर्चा हुई है। श्री वोरा और सिंधिया सुबह 10 बजे नियमित विमान से आज दिल्ली चले गये।
बताया जाता है कि राज्यपाल से वोरा और सिंधिया ने मध्यप्रदेश कांग्रेस में हुये बदलाव पर चर्चा हुई है। उल्लेखनीय है कि 15 अप्रैल को मध्यप्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने पदभार ग्रहण किया है। तब से सुस्त पड़ी मध्यप्रदेश कांग्रेस जागृत हो गई है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में भूरिया की नियुक्ति ने नया जोश भर दिया है।
श्री भूरिया की नियुक्त की बाद से राज्य में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सक्रियता देखते बन रही है। कांगेस कार्यकर्ता 2013 में संपन्न होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से तैयारी करने में जुट गये हैं।
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भोपाल।मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेता सक्रिय हो गये हैं। मप्र के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर से केन्द्रीय वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने शुक्रवार 22 अपै्रल 2011 को भोपाल में राजभवन पहुंचकर मुलाकात की।
राज्यपाल से कांग्रेस नेताओं ने सुबह मुलाकात की। यह मुलाकात लगभग पौने दो घंटे तक चली। कांग्रेस नेता वोरा और केन्द्रीय राज्यमंत्री सिंधिया राजधानी भोपाल आये थे। वे विदिशा में कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद भोपाल रूके। श्री वोरा ने राजभवन के गेस्ट हाउस में विश्राम किया। वहीं सिंधिया एक निजी होटल में रूके थे। बताया जाता है कि राज्यपाल मप्र से सबसे पहले कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा मिले। तदोपरांत केन्द्रीय राज्यमंत्री भी चर्चा में शामिल हो गये।
इस दौरान केन्द्रीय राज्यमंत्री अरूण यादव द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक सभा को बीच में ही छोड़कर चले जाने की घटना से कांग्रेस नेता नाराज हैं। कांग्रेस नेता मुख्यमंत्री मप्र द्वारा की गई उपेक्षा को राजनीतिक मुद्दा बनाने में लगे हैं। इसी सिलसिले में श्री वोरा और सिंधिया की राज्यपाल से चर्चा हुई है। श्री वोरा और सिंधिया सुबह 10 बजे नियमित विमान से आज दिल्ली चले गये।
बताया जाता है कि राज्यपाल से वोरा और सिंधिया ने मध्यप्रदेश कांग्रेस में हुये बदलाव पर चर्चा हुई है। उल्लेखनीय है कि 15 अप्रैल को मध्यप्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने पदभार ग्रहण किया है। तब से सुस्त पड़ी मध्यप्रदेश कांग्रेस जागृत हो गई है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में भूरिया की नियुक्ति ने नया जोश भर दिया है।
श्री भूरिया की नियुक्त की बाद से राज्य में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सक्रियता देखते बन रही है। कांगेस कार्यकर्ता 2013 में संपन्न होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से तैयारी करने में जुट गये हैं।
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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
मध्यप्रदेश राज्य अधिकारी संघ का पंाचवां अधिवेशन 24 अप्रैल को
मध्यप्रदेश राज्य अधिकारी संघ का पंाचवां अधिवेशन 24 अप्रैल को दीनदयाल परिसर स्थित सभागृह में होगा। प्रशासनिक परिवेश और नीतिगत विसंगतियों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। कार्यक्रम को भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री बैजनाथ राय मुख्य वक्ता होंगे। संघ के पदाधिकारियों के अनुसार कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जनसंपक्र मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, सामान्य प्रशासन मंत्री कंहैयालाल अग्रवाल तथा मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के अध्यक्ष व विधायक विश्वास सारंग को आमंत्रित किया गया है।
शुक्रवार 22 अपै्रल 2011 को भोपाल में पत्रकारों से बातचीत करते हुये संघ के प्रांताध्यक्ष डॉ. आरके. चौरसिया व महामंत्री बीआर. विश्वकर्मा ने कहा कि समानता, सहयोग और कार्य संस्कृति को बढ़ाने के लिये उनका संगठन कार्य करता है। अधिवेशन में संस्कृति व जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा विशेष अतिथि होंगे। बार - बार अधिकारी, प्रोफेसर,चिकित्सक पर हो रहे हमलों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अधिकारियों को संरक्षण देने के लिए प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाए ताकि अधिकारी निष्पक्ष ढ़ंग से काम कर सके।
उन्होंने कहा कि अधिवेशन में छठवां वेतनमान जस का तस लागू करने पर जोर दिया जाएगा। पिछले कई वर्षो से विभागों में विभागीय अधिकारी को विभागाध्यक्ष पद पर पदोन्नत करने की मांग की जा रही है। कृषि विभाग में तकनीकी अधिकारी के स्थान आईएएस अधिकारी को नियुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है। इसका तीव्र विरोध किया जाएगा। लगभग दस पंद्रह वर्षों से नियुक्ति का माध्यम परिवर्तित कर संविदा, तदर्थ, अतिथि विद्वान प्रोफेसर, दैनिक वेतन भोगी सहित आदि पदों पर नियुक्तियां की जा रही है। पीएससी के जरिए नियुक्तियां नहीं हो रही है।
संगठन महामंत्री बीआर. विश्वकर्मा ने कहा कि विभाग में कार्य का बोझ बढ़ता जा रहा है। नई- नई योजनाएं लागू की जा रही है लेकिन नए पद निर्मित नहीं किए जा रहे है। इससे काम पर भी असर पड़ रहा है। अधिकारी मर्यादा, अनुशासन, समन्वय से कार्य कर रहे है, फिर भी अधिकारियों की उपेक्षा की जा रही है। अपनी मांगों पर सरकार से लगातार चर्चा हो रही है, उम्मीद है कि मांगों का निराकरण हो जाएगा।
संघ के अध्यक्ष श्री चौरसिया ने बताया कि भाजपा शासन काल में किसी भी संगठन को राज्य सरकार ने मान्यता नहीं दी है। उन्होंने बताया कि 19 संगठनों को मान्यता 2003 से पहले मिली है। उसके बाद से किसी कर्मचारी संगठन को राज्य सरकार ने मान्यता नहीं दी है।
उन्होंने बताया कि राज्य के चार विभाग ऐसे हैं जहां विभागीय लोग विभागाध्यक्ष होते हैं। वे भोपाल हैं पशुपालन, तकनीकी शिक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा। इसके अलावा राज्य के तीन विभाग ऐसे हैं जहां विभागीय अधिकारी सचिव होता है। यह विभाग हैं जल संसाधन, पीडब्ल्यूडी तथा पीएचई।
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शुक्रवार 22 अपै्रल 2011 को भोपाल में पत्रकारों से बातचीत करते हुये संघ के प्रांताध्यक्ष डॉ. आरके. चौरसिया व महामंत्री बीआर. विश्वकर्मा ने कहा कि समानता, सहयोग और कार्य संस्कृति को बढ़ाने के लिये उनका संगठन कार्य करता है। अधिवेशन में संस्कृति व जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा विशेष अतिथि होंगे। बार - बार अधिकारी, प्रोफेसर,चिकित्सक पर हो रहे हमलों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अधिकारियों को संरक्षण देने के लिए प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाए ताकि अधिकारी निष्पक्ष ढ़ंग से काम कर सके।
उन्होंने कहा कि अधिवेशन में छठवां वेतनमान जस का तस लागू करने पर जोर दिया जाएगा। पिछले कई वर्षो से विभागों में विभागीय अधिकारी को विभागाध्यक्ष पद पर पदोन्नत करने की मांग की जा रही है। कृषि विभाग में तकनीकी अधिकारी के स्थान आईएएस अधिकारी को नियुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है। इसका तीव्र विरोध किया जाएगा। लगभग दस पंद्रह वर्षों से नियुक्ति का माध्यम परिवर्तित कर संविदा, तदर्थ, अतिथि विद्वान प्रोफेसर, दैनिक वेतन भोगी सहित आदि पदों पर नियुक्तियां की जा रही है। पीएससी के जरिए नियुक्तियां नहीं हो रही है।
संगठन महामंत्री बीआर. विश्वकर्मा ने कहा कि विभाग में कार्य का बोझ बढ़ता जा रहा है। नई- नई योजनाएं लागू की जा रही है लेकिन नए पद निर्मित नहीं किए जा रहे है। इससे काम पर भी असर पड़ रहा है। अधिकारी मर्यादा, अनुशासन, समन्वय से कार्य कर रहे है, फिर भी अधिकारियों की उपेक्षा की जा रही है। अपनी मांगों पर सरकार से लगातार चर्चा हो रही है, उम्मीद है कि मांगों का निराकरण हो जाएगा।
संघ के अध्यक्ष श्री चौरसिया ने बताया कि भाजपा शासन काल में किसी भी संगठन को राज्य सरकार ने मान्यता नहीं दी है। उन्होंने बताया कि 19 संगठनों को मान्यता 2003 से पहले मिली है। उसके बाद से किसी कर्मचारी संगठन को राज्य सरकार ने मान्यता नहीं दी है।
उन्होंने बताया कि राज्य के चार विभाग ऐसे हैं जहां विभागीय लोग विभागाध्यक्ष होते हैं। वे भोपाल हैं पशुपालन, तकनीकी शिक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा। इसके अलावा राज्य के तीन विभाग ऐसे हैं जहां विभागीय अधिकारी सचिव होता है। यह विभाग हैं जल संसाधन, पीडब्ल्यूडी तथा पीएचई।
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महिलाओं के लिये खुशखबरी.. अब महिला उत्पीड़न का मुकाबला वेबसाइट के जरिए
महिलाओं के लिये खुशखबरी.. अब महिला उत्पीड़न का मुकाबला वेबसाइट के जरिए होगा। सड़कों पर होने वाली छेड़छाड़ को खत्म करने को समर्पित एक वेबसाइट http://www.ihollaback.org/ पर महिलायें इस आनलाइन मंच पर अपने अनुभव साझा कर सकेंगी। साथ ही फोटो भी अपलोड कर सकती हैं। ’’सड़कों पर होने वाली छेड़छाड एक ऐसा अपराध है जिसे शायद ही कभी गंभीरता से लिया जाता है। चाहे आप दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों न रहते हों’’ यह एक वैश्विक महामारी है। भारत में इस वेबसाइट http://mumbai.ihollaback.org/ की शुरूआत मुंबई से जनवरी में हुई है। ’’सड़कों पर होने वाली छेड़छाड़ भारत में एक गंभीर समस्या है। यहां यह आमतौर पर ’ईव टीजिंग’ के नाम से जाना जाता है। ’टीजिंग’ शब्द उस ओछे कृत्य को कुछ हल्का कर देता है। जिसके दंश की पीड़ा इसे झेलने वाली औरत ही जानती है। उसके लिये इस टीजिंग का अर्थ अलग-थलग करने वाला, पीड़ादायक व कुंठित करने वाला कृत्य है।’’ सड़कों पर सिटियों, उपहास और भद्दे संकेतों से आजिज आकर कुछ सहासिक महिलाओं ने इस महामारी से मुकाबला करने का बीड़ा उठाया है तकनीक के सहारे। अब महिलायें नई तकनीक के माध्यम से न केवल महिला उत्पीड़न का मुकाबला कर रही हैं। किन्तु समस्त प्रकार की जानकारियां और अनुभवों को वीडियो व तस्वीरों के जरिए साझा कर रही हैं।
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