गुटबाजी के रोग से अभी तक बची रही भाजपा अब एक बार फिर भंवरजाल में फंसती नजर आ रही है। यह आंकलन मीडिया का नहीं, बल्कि पार्टी के नेता भी इस तरह की कुशंका और आशंका आपसी चर्चाओं में कर रहे हैं। यूं तो मध्यप्रदेश भाजपा में गुटबाजी का बीजारोपण 90 के दशक में हो गया था, तब पटवा और जोशी आमने-सामने आ गये थे। जोशी के साथ पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा, रघुनंदन शर्मा, प्यारेलाल खंडेलवाल, नारायण प्रसाद गुप्ता एवं लक्ष्मीनारायण शर्मा सहित आदि दिग्गज हुआ करते थे, जबकि दूसरे गुट की अगुवाई पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के हाथों में होती थी, उन्हें आर्शीवाद पार्टी के पितृपुरूष कुशाभाऊ ठाकरे का रहा है। यही वजह है कि पटवा लंबे समय तक पार्टी के एक क्षत्र नेता रहे हैं। उनके साथ कदमताल करने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त रही है। यही वजह है कि पार्टी पर पटवा की तूती बोलती रही है। धीरे-धीरे पार्टी की तस्वीर बदली और गुटबाजी का रोग फैलता ही गया, लेकिन 2000 में फिर भाजपा ने एक साथ मिलकर कांग्रेस को उखाड़ने का संकल्प लिया और भाजपा नेता भी गुटबाजी को भूलकर आपस में एक हो गये थे। इसके बाद 2005 में फिर भाजपा में बंबडर आया और उमा भारती को पार्टी से अलग होना पड़ा, तब फिर गुटबाजी की गूंज सुनाई दी। इसके बाद वर्ष 2011 में उमा की फिर वापसी हो गई। इसके साथ उमा भारती ने अपने आपको मप्र की राजनीति से दूर रखा और हमेशा उत्तर प्रदेश की राजनीति में डूब गई। एक बार फिर वर्ष 2013 में भाजपा की राजनीति में उबाल आ गया है। इसकी वजह है उमा भारती को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाना है और दूसरी वजह पूर्व अध्यक्ष्ा प्रभात झा को भी उपाध्यक्ष बनाना है। इन दोनों नेताओं को वर्तमान में विरोधी गुट का माना जा रहा है। यह नेता बार-बार कह भी रहे हैं कि वे पूरी तरह से गुटविहीन है, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हो रहा है। 8 अप्रैल को प्रदेश भाजपा कार्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी बने नेताओं के स्वागत समारोह में भी सारे नेताओं ने एक स्वर से यह कहा कि हम शिवराज के नेतृत्व में हर हाल में सरकार बनायेंगे। इन मीठे-मीठे बयानों पर भाजपा के लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है। उमा भारती सात साल बाद भाजपा कार्यालय पहुंची और प्रभात झा को जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष पद से दरकिनार करके अलग किया गया था, वे भी फिर पार्टी कार्यालय पहुंचे। इन दोनों नेताओं के बयानों और बॉडी लेग्वेज पर हर बड़े नेता की नजर थी। आशंका यह जाहिर की जा रही है कि उमा भारती अपनी कड़वी यादे आसानी से भुला नहीं पायेगी, क्योंकि उन्हें भाजपा की राजनीति में भुला ही दिया गया था, जबकि प्रभात झा के साथ जो पर्दे के पीछे प्रतिघात हुआ है उसका दर्द उन्हें आज भी है जिसे वे समय-समय पर बयां भी कर रहे हैं। आने वाले समय में प्रदेश भाजपा की राजनीति का ध्रुवीकरण हो जाये, तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो हालात नजर आ रहे हैं, वे निश्चित रूप से चिंतनीय तो हैं ही साथ ही साथ भविष्य की राजनीति के संकेत भी बयां कर रहे हैं। मध्यप्रदेश की भाजपा का मिशन 2013 है और ऐसी स्थिति में गुटीय राजनीति अगर अपना रूप दिखायेगी,तो फिर मिशन में निश्चित रूप से कोई न कोई बाधाएं तो आयेगी ही। इस पर पार्टी और सरकार की नजर तो है, लेकिन राजनीति में कब क्या नया हो जाये, कोई कुछ नहीं कह सकता। यही वजह है कि एक बार फिर से मप्र की राजनीति करवट ले रही है, जो कि जल्दी ही सामने आयेगी।
स्वागत में नेताओं ने कहा -
- 2003 में कांग्रेस का संहार हुआ, 2008 में अंतिम संस्कार और 2013 में पिंडदान हो जायेगा। साढ़े सात साल बाद भाजपा कार्यालय के भवन से दूर रही, लेकिन जो भावना ठाकरे जी और राजमाता ने सिखाई उससे कभी अलग नहीं हो पाई। मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी आरोप में नहीं, बल्कि तिरंगे की शान में छोड़ी थी तिरंगे की शान, गाय की जान, नारी की आन, गंगा के मान के लिए शीश भी कटा सकती हूं। - उमा भारती, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा।
- मैं मध्यप्रदेश छोड़ने वाला नहीं हूं, भले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी दे दो। शिवराज निर्विवाद और सर्वमान्य नेता है, उन्हीं ने तोमर को ढाई साल के लिए केंद्र में भेज दिया था। उमा भारती का मप्र पर सर्वाधिक हक है। - प्रभात झा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा।
- हमें गर्व है कि पार्टी नेतृत्व ने मप्र को महत्वपूर्ण पद दिये हैं इन नेताओं के मार्गदर्शन और नेतृत्व में मिशन 2013 फतह करेंगे। - शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री मप्र।
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