मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

उमा भारती के बदले-बदले तेवर

          साध्‍वी और भाजपा नेत्री उमा भारती के तेवर फिर बदले-बदले नजर आने लगे हैं। उनकी राजनीति करने का अंदाज विरला ही है, वे जो करती हैं वह डंके की चोट पर सबको दिखाकर करती हैं। वे राजनीति पर्दे के पीछे नहीं, बल्कि खुलकर करती है, जिसका खामियाजा उन्‍होंने राजनीति में लंबे समय तक भुगता भी है वे संवेदनशील भी हैं, तो गरीबों और उत्‍पीड़न वर्ग के साथ कदमताल करने में भी पीछे नहीं रहती हैं। धर्म-कर्म पर उनका विश्‍वास है आज भी पूजा-पाठ डूबकर करती हैं। ईश्‍वर में अगाध विश्‍वास है। गाय और गरीब उनके दिल में रहते हैं। बुंदेलखंड के सामती ताकतो को चुनौती उन्‍होंने ही दी थी और खुलकर वे लड़ी भी और हर बार जीतकर आई। वर्ष 2002 में मध्‍यप्रदेश की राजनीति में राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व ने उन्‍हें दिग्विजय सिंह को सत्‍ता से उखाड़ फेंकने की जिम्‍मेदारी थी और वे उसमें कामयाब भी हुई। इसके साथ ही उन्‍होंने इतिहास रचा और वे मध्‍यप्रदेश की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनी।
इससे पहले कोई महिला नेत्री मुख्‍यमंत्री पद तक नहीं पहुंची थी। राजनीति वे करती खूब हैं,लेकिन षड़यंत्र उन्‍हें आते नहीं है, जिसके चलते वे मुख्‍यमंत्री बनते ही फिर एक ऐसे जंजाल में फंसी कि अंतत: उन्‍हें मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देना पड़ा। उसके बाद उनका समय उनके हाथों से निकल गया और फिर वे लगातार संघर्ष के रास्‍ते पर चल पड़ी। उनकी यह संघर्ष यात्रा लंबी चली, पार्टी ने भी साथ छोड़ दिया, उनके अपने भी धीरे-धीरे उनसे दूर होते गये, जिनके लिए वे खूब लड़ी, उन्‍होंने भी उनका दामन छोड़कर विरोधियों के घर में पनाह पा ली। इसके बाद भी उमा भारती टूटी नहीं और लगातार अपनी मंजिल की ओर बढ़ती रही और अंतत: उनकी वर्षो बाद भाजपा में फिर वापसी हुई और आज फिर राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व के आर्शीवाद से भाजपा के शिखर पर आगे बढ़ रही हैं। उनका मुख्‍यमंत्री पद छोड़ने की कसक 1 अप्रैल को टीकमगढ़ में फिर जुबान पर आ गया। उन्‍होंने कहा कि वे राजनीतिक दांव-पेंच की कमी के कारण मुख्‍यमंत्री पद से हटना पड़ा, भाजपा को 2003 में तीन चौथाई बहुमत से जीत दिलाई थी, लेकिन राजनीति में रहकर भी चलाकी नहीं सीखी। इसलिए कड़ी मेहनत से प्राप्‍त किया मुख्‍यमंत्री का पद भी छोड़ दिया था, वे कहती है कि मैंने हर परिस्थिति में चुनौती स्‍वीकार कर राजनीति की है, आगे भी राजनीति करूंगी, खूब करूंगी और जमकर करूंगी। यही तो उमा भारती की कला है। वे कभी अपनी राह से पीछे नहीं हटती है और अपनी मंजिल पाने के लिए उन्‍हें कोई रोक भी नहीं सकता, क्‍योंकि वे एक आंधी हैं और यह रास्‍ता उन्‍होंने खुद चुना है जिस पर वे चल पड़ी हैं। 
                                        ''मप्र की जय हो'' 

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