मिशन-2013 के विधानसभा चुनाव में फतह करने के लिए मात्र छह माह का समय रह गया है, लेकिन अभी भी कांग्रेसियों को लगता है कि कोई हवा चली तो वे डेढ़ सौ सीटे आसानी से जीत जायेंगे अन्यथा सरकार तो बना ही लेंगे। इन संकेतों से ऐसा लगता है कि कांग्रेसियों को अभी भी सत्ता की वापसी को लेकर संशय बना हुआ है। बार-बार वे जीत का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन सीटों के गुणा-भाग में उनका मन डामा-डोल हो जाता है। इसके उलट भाजपा पूरी ताकत से यह कहने से कभी नहीं चूकती है कि वे तीसरी बार फिर से हैट्रिक बनाने जा रहे हैं। भाजपा के लिए तो यह चुनाव आर और पार की लड़ाई बन गया है। यही वजह है कि संगठन और सरकार पूरी ताकत से मैदान में उतर आया है। अब तो चुनाव मैदान से अभी तक दूर रहने वाली उमा भारती भी अब मैदान में उतर आई हैं। वे सात साल बाद पार्टी कार्यालय जाकर अपने मौजूदगी दर्ज कर चुकी हैं। यूं तो भाजपा को कदम-कदम पर संघर्ष का रास्ता दिख रहा है, लेकिन वे अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए आतुर भी हैं। उसके गुणा-भाग में जुट गये हैं, उम्मीदवारों के लिए सर्वे करवा रहे हैं, होर्डिंगों का सहारा लेकर प्रचार का रास्ता अपना लिया है, कहीं-कही प्रचार अभियान में सरकारी माध्यम का भी उपयोग किया जा रहा है। भाजपा में गुटबाजी अभी तक तो नहीं है, लेकिन भविष्य में होने के संकेत बार-बार मिल रहे हैं। यही भाजपा के लिए बेहतर आसार नहीं है, लेकिन इसके बाद भी भाजपा यह मानकर चल रही है कि वे चुनाव आते-आते सारी स्थितियों को सुधार लेगी। लगातार दस साल से विपक्ष में रह रही कांग्रेस पार्टी को भी अब सत्ता पाने की बेचैनी होने लगी है। कांग्रेस के नेता हुंकार भी भर रहे हैं। इस बार चुनावी जंग में चेहरे बदल गये हैं अब आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के हाथों में संगठन की कमान है, तो विधायक दल की बागडोर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह संभाले हुए हैं। इन दोनों नेताओं को नेतृत्व दिग्विजय सिंह का है। फिलहाल तो दिग्विजय सिंह दिल्ली की राजनीति में सक्रिय है, लेकिन वे मध्यप्रदेश के हर पल घटित हो रही घटनाओं पर नजर रखे हुए हैं। किसी न किसी कार्यक्रम के जरिये कांग्रेस अपनी मौजूदगी दर्ज कर रही है। कांग्रेस ने परिवर्तन यात्रा शुरू कर दी है, इस यात्रा का एक दौर समाप्त होने के बाद भूरिया और सिंह ने 9 अप्रैल को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पत्रकारों से चर्चा करते हुए स्वीकार किया कि कांग्रेस को 135 से कम सीटें नहीं मिलेगी। यदि अंतिम दिनों में कोई हवा चली तो कांग्रेस 150 से ज्यादा सीटें जीतेगी। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का दावा है कि विंध्य में तो 30 सीटों में से 22 सीटें कांग्रेस जीतेंगी। उमा भारती ने अब फिलहाल तो अपनी मौजूदगी एक बयान से यह कहकर दिखा दी है कि अब वे कांग्रेस का पिंडदान करने आयेगी। इस पर कांग्रेस नेता भूरिया और सिंह ने तीखी नाराजगी जाहिर की है और पलटवार करते हुए यह तक कह दिया है कि उमा भारती कांग्रेस का पिंडदान नहीं, बल्कि शिवराज का पिंडदान करने आई हैं। उमा भारती जैसी नेत्री अपनी छवि का इस्तेमाल करके जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करती हैं, जबकि भाजपा नेताओं ने उनका पिंडदान करके मप्र से निर्वासित कर दिया था अब फिर उमा भारती अपने फिर वही तेवर दिखाना चाहती है, जो कि संभव नहीं है। उमा भारती का जादू मप्र में 2003 में खूब चला है, उन्हीं की अगुवाई में दो तिहाई बहुमत भाजपा को मिला था और कांग्रेस के दस साल की सत्ता को उखाड़ फेंका था। अब दस साल बाद तस्वीर बदल चुकी है। इस दौरान भाजपा में शिवराज सिंह चौहान का डंका बज रहा है और उमा भारती उनके पीछे खड़ी हैं। सामने सत्ता का सुख है जिससे वे वंचित रही हैं। वे कह भी चुकी है कि उन्होंने तो सत्ता लाने में अहम भूमिका अदा की और काजू-किशमिश कोई और खा रहा है। इस बयान से साफ जाहिर है कि उमा भारती अब 2003 की भूमिका में तो नहीं रहेगी। वैसे भी एक दशक के बाद प्रदेश की राजनीति में काफी पानी बह गया है और फिर से माहौल बनाना इतना आसान नहीं होगा। कुल मिलाकर भाजपा की राजनीति एक बार फिर करवट बदल रही है। इसमें उमा भारती कहां होगी, शिवराज की भूमिका बड़ी स्पष्ट है। वैसे तो उमा और शिवराज कह रहे हैं कि हम साथ-साथ चुनाव लड़ेगे। दूसरी ओर कांग्रेस में फिलहाल गुटबाजी कम नहीं हुई है, अब तो कांग्रेसी नेता यह भी दबी जुबान कहने लग हैं कि हमारे कई नेताओं की भाजपा से सांठगांठ हो गई है और वे भीतर ही भीतर भाजपा के नेताओं से मिले हुए हैं। यह बात भी कांग्रेस नेताओं के कहने से यह तो जाहिर हो गया है कि कहीं न कहीं मिली भगत का दौर चल रहा है। इसके बाद भी कांग्रेस नये सिरे से तैयारियों में जुटी हुई है। अब देखना यह है कि मिशन 2013 पर फतह कौन करता है।
''मप्र की जय हो''
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