फैलता भ्रष्टाचार मध्यप्रदेश के विकास में एक बड़ी बाधा बन गया है। ऐसी कोई योजना नहीं है, जहां भ्रष्टाचार के कीटाणु न मिले। यहां तक कि अधोसंरचना से संबंधित कार्यों में तो खुलकर भ्रष्टाचार हो रहा है जिसके फलस्वरूप निर्माण कार्य थोड़े समय में ही धराशाही होने लगते हैं। भ्रष्टाचार पर अब राज्य में खूब बहस होने लगी है। विपक्ष हल्ला मचाने में पीछे नहीं है, सरकार के लोग दबी जुबान में स्वीकारते तो हैं, लेकिन कार्यवाही करने से बचते हैं। इसके चलते भ्रष्ट तबको को खुली छूट मिल गई है। विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही मध्यप्रदेश में भाजपा का दस साल का शासन पूरा होने के कारण अब राजनैतिक दलों के साथ-साथ आम आदमी भी भाजपा और कांग्रेस शासनकाल की तुलना करने लगा है। इसमें सबसे ज्यादा बहस का विषय भ्रष्टाचार है। यह कहा जाने लगा है कि शिवराज और दिग्विजय सरकार में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार किसके कार्यकाल में रहा। इस सवाल का जवाब तो किसी के पास नहीं है, लेकिन राजनीतिक नजरिये से राजनेता अपने-अपने तीर छोड़ रहे हैं। राष्ट्रीय विचारक और कभी भाजपा में बड़े पद पर रहे गोविंदाचार्य ने भ्रष्टाचार पर एक नई बहस छेड़ दी है, उन्होंने 31 मार्च, 2013 को अपने ग्वालियर प्रवास के दौरान कहा कि मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार पूर्व शासित कांग्रेस की दिग्विजय सरकार से ज्यादा भ्रष्ट है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार को रोकने में असफल साबित हुए हैं। भाजपा और कांग्रेस एक जैसी पार्टियां हैं। देश से भ्रष्टाचार मुक्ति की लड़ाई लड़ी जा रही है। गोविंदाचार्य के विचारों से भाजपा विचलित नहीं होती है, लेकिन संघ परिवार आज भी उनके विचारों को महत्व देता है और कभी-कभी संघ परिवार से जुड़े लोग उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाते भी हैं। इसलिए बार-बार मध्यप्रदेश आकर भाजपा सरकार की असलियत का आईना जनता को दिखाने में कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।
निश्चित रूप से भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या राज्य के लिए बन गई है। वर्ष 2011 में पहली बार कांग्रेस द्वारा भाजपा सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव में भी नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने विधानसभा में भ्रष्टाचार को ही अपना मुख्य हथियार बनाया था। अब कांग्रेस चुनाव अभियान में भी भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है। इसके साथ ही अन्य दलों के साथ-साथ भाजपा में भी कभी-कभी बैठकों के बीच बड़े नेता शासन में फैले भ्रष्टाचार पर उंगली तो उठाते हैं और उस पर चिंतन भी होता है, लेकिन आगे क्या कार्यवाही होती है यह सबके सामने है तथ्य आ चुके हैं। भ्रष्टाचार रोकने के लिए राज्य में आधा दर्जन से अधिक एजेंसियां सक्रिय हैं, जो कि किसी न किसी माध्यम के जरिये सरकारी विभागों और अफसरों पर नकेल कसने का काम भी कर रही हैं। पिछले दो-तीन सालों से अफसरों के यहां जो छापे पड़ रहे हैं, उसमें भी अकूत सम्पत्ति बंगलों से बाहर आ रही है। इन प्रसंगों से साफ जाहिर है कि भ्रष्टाचार तो योजनाओं में ही हो रहा है, भ्रष्टाचार की गंगोत्री हर उन योजनाओं में बह रही है, जहां से राहे मिल रही हैं। इसमें जिसे मौका मिल रहा है वह डुबकी लगा रहा है, किसी को प्रदेश के विकास की चिंता नहीं सता रही है, तभी तो भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले हो रही है।
''मध्यप्रदेश की जय हो''
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