रविवार, 14 अप्रैल 2013

जड़ जमा ली सामाजिक कुरीतियों ने मप्र में

        भागम-भाग की जिंदगी में अब मध्‍यप्रदेश के रहवासियों के बीच समाज की महत्‍ता धीरे-धीरे खत्‍म हो रही है। समाज का ताना-बाना तेजी से टूट रहा है जिसके फलस्‍वरूप सामाजिक कुरीतियां फिर से अपने पैर फैला रही हैं। उनकी जड़े इस कदर मजबूत हो गई हैं कि अब सामाजिक कुरीतियों का घिनौना रूप कभी भी राज्‍य के किसी भी हिस्‍से से सामने आ रहा है। भक्ति में डूबकर ईश्‍वर से जुड़ने की कामना को लेकर युवक ने बलि के रूप में अपनी गर्दन देवी प्रतिमा के सामने चढ़ा दी, तो शहडोल में युवती ने जीब काटकर मंदिर में चढ़ा दी, भोपाल में भी पुलिस सेवा में कार्यरत एक कर्मचारी नव दुर्गा उत्‍सव के दौरान जीब को काटने का उपक्रम करते हैं। यह कुरीतियं नहीं तो क्‍या है। माना कि वह आस्‍था में अंध भक्‍त हैं। निश्चित रूप से ईश्‍वर हमारे आसपास है, ईश्‍वर के बिना हम एक पल भी सांस नहीं ले सकते हैं। मप्र भी कोई बिरला राज्‍य नहीं है, जहां पर मंदिर न हों। इस राज्‍य में मंदिरों की संख्‍या लगातार बढ़ रही है, तो भक्‍त भी कम नहीं हो रहे हैं। ठीक है भक्ति की जाये, लेकिन शरीर का अंग ही चढ़ा दिया जाये, तो फिर जिस लक्ष्‍य के लिए हम जी रहे हैं, अगर वही खत्‍म हो जायेगा, तो फिर भक्ति किस काम की। यही स्थिति कटनी में देवी भक्‍त युवक ने अपनी गर्दन काटकर देवी के चरणों में अर्पित कर दी। हद तो तब हो गई, जब ग्रामीणों ने घायल युवक को अस्‍पताल ले जाने की बजाये, देवी स्थल पर ही लाल कपड़े से लपेडकर देवी के चरणों में अर्पित कर दिया। इस घटना के दौरान मंदिर के आसपास जन समुदाय उमड़ पड़ा। सुबह 9 बजे की घटना के बाद शाम को 4 बजे पुलिस पहुंची। जब पुलिस युवक को इलाज हेतु अस्‍पताल ले जाने लगी तो ग्रामीणों ने रोक दिया। यह घटना कटनी जिलेी ग्राम पंचायत सुड्डी की है, जहां पर महानदी के मुहाने पर एक देवी प्रतिमा स्‍थापित है। 35 वर्षीय युवक मोहन लाल केवट दो दिनों से मां भक्ति की आराधना में लीन था। इसी प्रकार की दूसरी घटना आदिवासी अंचल के केवलारी में हुई।  जहां पर ग्राम खुसरीपार में 16 वर्षीय युवती ने जीब काटकर देवी मां के चरणों में चढ़ा दी। यह युवती कु0अनसुईया मसकौले अपनी जीब देवी के चरणों में चढ़ाने के बाद आज पूरी तरह स्‍वस्‍थ है पर उसकी आवाज गायब हो चुकी है। 
अंध विश्‍वास खत्‍म नहीं हो रहा है : 
          दुखद पहलु यह है कि मप्र में अंधविश्‍वास की खाई आज भी फैलती जा रही है। डायन बताकर आदिवासी अंचलों से महिलाओं को पागल करार दिया जा रहा है। पिछले पांच साल में ऐसी एक दर्जन से अधिक घटनाएं हो चुकी है जिसमें महिला को पागल बताकर गांव से बाहर कर दिया जा रहा है। इसी के साथ ही आज भी बाल विवाह की कुप्रथा बरकरार है। चोरी-चुपके बाल विवाह हो रहे हैं। वर्षो पूर्व सतीप्रथा पूरे देश से भली खत्‍म हो गई हो, लेकिन मप्र के बुंदेलखंड अंचल में आज भी सती प्रथा कायम है। 90 से 2000  के दशक में एक महिला बुंदेलखंड में सती हो चुकी है। कुप्रथाएं आज भी हमारे सामने तेजी से फैलती जा रही है और इसमें समाज बौना साबित हो रहा है। अब तो समाज के नाम पर कुछ सामाजिक सम्‍मेलन हो जाते हैं, तो धार्मिक कार्यक्रमों के जरिये प्रवचन का लाभ ले लिया जाता है, यही समाजसेवा बच गई है। कहीं-कहीं रोटरी क्‍लब गरीब बच्‍चों, अनाथ परिवारों और कैम्‍प लगाकर अपनी समाज सेवा दिखा देता है। समाज को अब यह कुरीतियां नजर नहीं आ रही है, जो कि लगातार अपने पांव फैला रही हैं। इस दिशा में समाज को ही नई पहल करके कुरीतियों से लड़ना होगा। 
                                            ''मप्र की जय हो''

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