शनिवार, 6 अप्रैल 2013

शून्‍य से शिखर तक के सफर में दौड़ती-हांफती मप्र भाजपा

  वाकई में तीन दशक से अधिक के सफर में भाजपा ने मप्र में अपनी जड़े न सिर्फ मजबूत कर ली है, बल्कि शाखाएं इस कदर ताकतवर हो गई हैं कि उन्‍हें अब कोई आसानी से हिला-डुला नहीं सकेंगा। भाजपा के इस फैलाव में पार्टी के दिग्‍गज नेताओं का त्‍याग और बलिदान तो है ही साथ ही साथ उन हजारों कार्यकर्ताओं की भागीदारी है जिन्‍होंने तन, मन, धन से डूबकर पार्टी को ताकत दी है। यही वजह है कि 80 के दशक में अपना सफर शुरू करने वाली भाजपा ने अपने शुरूआती दौर में धीरे-धीरे पार्टी को गति दी। कभी भाजपा तेज दौड़ती नजर आई, तो कभी हांफते-हांफते दम फूंलने लगा। फिर थोड़े समय रूकी और फिर अपनी गति से चल पड़ी। इस अभियान को अंजाम देने में सबसे अ‍हम भूमिका अदा करने वाले नेताओं में कुशाभाऊ ठाकरे, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, प्‍यारेलाल खंडेलवाल, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, वीरेंद्र कुमार सकलेचा, नारायण प्रसाद गुप्‍ता सहित आदि शामिल हैं। त्‍यागी और तपस्‍वी ठाकरे ने तो अपने जीवन का अमूल्‍य समय पार्टी को देकर न सिर्फ मध्‍यप्रदेश में कई चेहरों को मुख्‍यधारा के मैदान में उतारा और उन्‍हें पार्टी नेतृत्‍व भी सौंपा। ठाकरे जी ने हमेशा उन नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की जो कि किसी न किसी माध्‍यम से जनता पर अपनी छाप छोड सके। ऐसा नहीं है कि 80 से 2013 के कालखंड में भाजपा कमजोर न हुई हो और बिखरी न हो, लेकिन फिर भी पार्टी नेताओं ने गुटबाजी और मतभेद जब भी उभरे तो उन्‍हें आपस में बैठकर ही दूर किया। संघर्ष, जुझारूपन और लगातार सड़कों की लड़ाई लड़ने का जज्‍वा लेकर भाजपा ने पहली बार 1990 में अपनी स्‍पष्‍ट बहुमत की सरकार प्रदेश में बनाई। यह सरकार ढाई साल का ही सफर तय कर पाई और उसके बाद राष्‍ट्रपति शासन लग गया।
 फिर भाजपा को 1998 से 2002 तक संघर्ष का रास्‍ता अपनाना पड़ा और उसके बाद हिन्‍दू ब्रांड नेता उमा भारती के नेतृत्‍व में 2003 में फिर भाजपा की सरकार बनी। फिर तो दूसरी बार 2008 में भी भाजपा ने अपना झंडा गाड़ा और अब तीसरी बार 2013 में भाजपा एक बार फिर तीसरी बार सत्‍ता पर काबिज होने के लिए पूरी तरह से जोर-आजमाईश करने में लगी हुई है। अब नेतृत्‍व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में है, जो कि अपनी छवि के सहारे प्रदेश में फिर से सरकार बनाने के लिए न सिर्फ बेताब है, बल्कि उसके लिए सक्रिय भी हैं। सरकार बनेगी अथवा नहीं यह तो वक्‍त ही बतायेगा, लेकिन फिर भी भाजपा ने अपने मिशन को गति तो दी है, जो कि मीडिया से लेकर सड़कों तक देखाई दे रही है। भाजपा में निश्चित रूप से अच्‍छाई होने के साथ-साथ सत्‍ता आने के बाद वे गुण भी आ गये हैं, जो सत्‍ता के साथ स्‍वाभाविक रूप से आ जाते हैं। इसके चलते नेताओं पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लग रहे हैं, सरकारी साधनों के दुरूपयोग की कहानियां सामने आ रही हैं, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा खुलकर हो रही है, सिंद्वांतों को दरकिनार किया जा रहा है जिस लक्ष्‍य को लेकर भाजपा जनता के बीच पहुंची थी उसमें कहीं न कहीं भटकाव भी साफ तौर पर नजर आता है। इस भंवरजाल से भी भाजपा बाहर निकलने के लिए भीतर ही भीतर बेचैन हैं। अब कैसे निकलेगी यह तो वक्‍त ही बतायेगा, लेकिन भाजपा मिशन 2013 को फतह करने के लिए कमर कस चुकी है। निश्चित रूप से भाजपा के सामने कई चुनौतिया है, लेकिन फिर भी वह अपने लक्ष्‍य को लेकर एक कदम बढ़ चुकी है। 
                                            ''मप्र की जय हो''

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