यूं तो विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने का समय बाकी है पर भाजपा चुनावी गुणा-भाग में जुट गई है। एजेंसियों से विधायकों की जमीनी हकीकत पता कराने के लिए सर्वे कराये गये हैं। यह सर्वे भाजपा के लिए गले की फांस बन गये हैं, क्योंकि कई विधायकों की रिपोर्ट निगेटिव रही है। इसके चलते विधायकों को अपनी-अपनी स्थितियां सुधारने के फरमान दे दिये गये हैं। इससे विधायक विचलित हैं उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे अगले चुनाव में अपनी नैया कैसे पार लगायेंगे। मीडिया लगातार ये संकेत दे रहा है कि इस बार भाजपा गुजरात की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी करीब अस्सी से सौ विधायकों के टिकट बदलेगी। यह सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन जब इसको जमीन पर उतारा जायेगा, तो फिर बगावत के स्वर भी गूंजेंगे। इससे भाजपा विचलित होगी। इसलिए पहले से ही सारी स्थितियों का आंकलन किया जा रहा है। यह देखा जा रहा है कि अगर विधायक की टिकट काटने के बाद क्षेत्र में क्या स्थिति बनेगी और स्वयं विधायक भीतरघात किस स्तर तक कर सकते हैं। साथ ही कार्यकर्ताओं की क्या स्थिति रहेगी। इन सारे पहलुओं पर विचार करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा विधायकों को 3-4 अप्रैल को भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर बुलाया था। इस बैठक में उन्होंने विधायकों से वन-टू-वन चर्चा करके सर्वे रिपोर्ट की हकीकत बयां कर दी है। दिलचस्प यह है कि इस रिपोर्ट में विधायकों की पूरी कुंडली तैयार करके मुख्यमंत्री को सौंपी गई है। जब मुख्यमंत्री विधायकों से बात कर रहे थे, तब टेबिल पर सर्वे रिपोर्ट भी मौजूद थी। इस रिपोर्ट के आधार पर ही विधायकों से सवाल जवाब किये गये। अमूमन अधिकांश विधायकों को मुख्यमंत्री ने ताकीद कर दिया है कि वे तीन महीने में अपनी स्थिति सुधार लें अन्यथा उन्हें अगले चुनाव में मैदान में उतारना मुश्किल हो जायेगा। यही वजह है कि भाजपा विधायक भी क्षेत्रों में नये सिरे से लामबंद हो गये हैं और वे किसी न किसी तरह से अपनी टिकट भी बचाने के लिए मैदान में उतर आये हैं।
फिर राजनीति ने करवट ली :
मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति मार्च के अंतिम सप्ताह में एक बार फिर बदली-बदली नजर आ रही है। अब दो असंतुष्ट नेताओं को पार्टी नेत़ृत्व की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। यह दोनों नेता मुख्यमंत्री से खफा हैं। यही वजह है कि इनकी नियुक्ति के बाद भाजपा की राजनीति में भूचाल सा आ गया है। हर तरफ हाल ही में उपाध्यक्ष बनी उमा भारती और प्रभात झा की चर्चाएं हो रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उमा और झा पर्दे के पीछे एक हो गये हैं, जबकि यह संभव नहीं है। उमा भारती और झा की नियुक्ति के बाद अखबारों में जो विज्ञापन छप रहे हैं, वे भी भविष्य की राजनीति के संकेत दे रहे हैं, क्योंकि इन विज्ञापनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर गायब हैं। इसके साथ ही राजधानी में स्थान-स्थान पर होर्डिंगों की भरमार हो गई है। इनमें भी चौहान और तोमर नदारद हैं। कहीं-कहीं इन्हें भी महत्व मिला है। इससे साफ जाहिर है कि भविष्य में भाजपा की राजनीति में बेहद हलचल होनी है। दोनों नेता अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए लांबिग करेंगे,तो फिर चौहान और तोमर से टकराव होना स्वाभाविक हैं। इसके साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा भी धीरे-धीरे चौहान के खिलाफ मुखर होने लगे हैं। कुलमिलाकर भाजपा की राजनीति के बदले तेवर से न सिर्फ कार्यकर्ता अचंभित हैं, बल्कि उन्हें अहसास है कि चुनाव से पहले प्रदेश में काफी कुछ बदलेगा। इसका इंतजार हर कार्यकर्ता कर रहा है और उन्हें मालूम है कि इस बार तीसरी बार फतह करना इतना आसान नहीं है, जबकि मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष इस मुहिम को अंजाम देने के लिए जुट गये हैं। मगर उनकी राह में बाधाये भी कम नहीं है। ऐसी स्थिति में भाजपा की राजनीति नये-नये गुल खिलायेगी।
''मप्र की जय''
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