फिलहाल तो मध्यप्रदेश में चुनावी मौसम आने में अभी छह माह का समय बाकी है, लेकिन राजनेता अभी से विकास के मुददे पर बयानों के जरिये जंग को आकार देने लगे हैं। अपने-अपने दावे और इरादों को जाहिर किया जा रहा है। मप्र की सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर दावा कर रहे हैं कि मप्र विकास दर में कई राज्यों से अव्वल है। तब स्वाभाविक है कि दस साल तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह को विकास दर नागवार गुजरेगी। ऐसी स्थिति में वे भी शिवराज सिंह चौहान को चुनौती न दें यह कैसे हो सकता है। 10 अप्रैल को अपनी भोपाल यात्रा के दौरान जब पत्रकारों ने उन्हें मप्र की विकास दर पर सवाल दागा तो उन्होंने तत्काल मुख्यमंत्री को चुनौती भरे अंदाज में कहा कि मैं कभी भी, कहीं भी विकास के मुद्दे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बहस करने को तैयार हूं। उन्होंने तो यहां तक कहा कि उनके दस साल के कार्यकाल में विकास की जो बुनियाद रखी गई थी, उसकी का लाभ आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उठा रहे हैं। कुल मिलाकर मप्र में एक बार फिर विकास बनाम बहस शुरू हो गई है। यह शुभ संकेत राज्य के लिए बेहतर हैा यह सिलसिला 2002 में शुरू हुआ था, तब उमा भारती ने राज्य के विकास पर बहस छेड़ी थी। इस बहस को मुख्यमंत्री चौहान ने अंजाम दिया। अब वे भी लगातार एक ही बात कह रहे हैं कि भाजपा सरकार के राज्य में लगातार विकास के नये रास्ते खुले हैं। प्रदेश ने विकास में नये कदम बढाये हैं तब विपक्ष को तखलीफ क्यों हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 10 अप्रैल को स्वास्थ्य विभाग के 'ममता अभियान' का शुभारंभ करते हुए कहा कि उन्होंने प्रदेश में सड़के बनाई और उन्हें सुधार भी दिया, नागरिकों को 24 घंटे बिजली दे दी है अब उनकी प्राथमिकता शिक्षा और स्वास्थ्य है। उन्होंने यह भी कहा कि जब मुख्यमंत्री बना था, तब प्राथमिकता कुछ और थी अब प्राथमिकताएं बदल गई हैं। निश्चित रूप से विकास की बयार तो बही है यह बात आम आदमी भी कहता है, लेकिन कांग्रेसियों को विकास दिख नहीं रहा है, तो बहस का एक नया मुद्दा उन्हें मिल गया है यह राज्य के लिए एक शुभ संकेत हैं और विकास पर बहस होना ही चाहिए, तो प्रदेश नये सौपान गढ़ेगा।
''मप्र की जय हो''
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