मप्र की राजनीति यूं भी ठंडी ही रहती है कभी कभार ही उसमें उबाल आता है अगर कभी ज्यादा उबाल आ जाए तो एकाध पखवाडा जरूर उस पर बहस चलती है, यहां की राजनीति की एक खासियत बात यह है कि यहां दलों के बीच आपस में मतभेद की दीवारें कम ही है,परदे के पीछे भी अभियान चलाने वाले नेता भी कम ही है, यही वजह हे कि यहां पर विकास को लेकर कोई भी राजनेता दिल्ली में आंखे तक नहीं दिखाता है कभी कभार सीएम शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र के खिलाफ आवाज तेज कर राज्य के विकास में उपेक्षा का आरोप लगा चुके है पर कांगेसी कभी विकास को लेकर दिल्ली में सक्रिय नही रहते,यहां तक कि अपने अपने क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यो को लेकर भी केंद्रीय मंत्रियों से संवाद नही करते , यहां पर लडाकू तेवर गायब से ही है, कभी कभार ही तीखे तेवर दिखते है, अब देखिए विधानसभा चुनाव में मात्र छह माह का समय बाकी है पर अब भी राजनेताओं के तेवर आक्रमक नहीं हुए है, यहां तक कि वे अपनी अपनी ढपली और अपने राग अलाप कर रहे है इस वजह से राजनेता भी जिस तरह से सक्रिय होना चाहिए वे नहीं हो पा रहे है, कांग्रेस में तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिधिया लगातार क्षेत्रों में सभाएं और सम्मेलन कर रहे है जबकि भाजपा की तरफ यह जिम्मेदारी सीएम अकेले ही संभाल रहे है,चौहान लगातार कार्यक्रमों में भाग ले रहे है जबकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष् नरेंद सिंह तोमर भी सक्रिय हुए है, भाजपा में फिलहाल कम नेता ही सक्रिय हुए है हाल ही में विरोधी गुट से ताकतवर हुए संगठन में उमा भारती और प्रभात झा की नई नियुक्ति से भी भाजपा के ताने बाने में बदलाव आने के संकेत मिलने लगे है इससे यह आभास होता है कि भविष्य की राजनीति में उबाल आने के साथ ही माहौल गर्म होगा है जिसे भाजपा और काग्रेस नेता ही हवा देगे तब राजनीति की दिशा बदलेगी
मप्र की जय हो
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