मध्यप्रदेश व बाहरी नेताओं का प्रवेश : स्थापना दिवस में 06 दिन शेष
इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अपनी स्थापना के 55 साल से अधिक का सफर पार कर चुके मध्यप्रदेश में आज भी ''अपनापन और हमारा राज्य'' की भावनाओं से ओत-प्रोत नहीं हो पाया है। फलस्वरूप राज्य के प्रति जो प्रेम और अपनतत्व की तस्वीर नजर आनी चाहिए वह गायब है। इसकी वजह राज्य नेताओं और नौकरशाहों का राज्य के प्रति लगाव न होना है। राजनेताओं के लिए तो अफसोस की बात है, क्योंकि वे इसी जन्म भूमि में पल-बढ़कर जनता के सुख दुख के साथ कदम-ताल करते हैं उन्हें तो राज्य के प्रति प्रेम बार-बार दर्शाना ही चाहिए पर ऐसा लगता है कि उनकी राजनीति के हिस्से में राज्य प्रेम का अध्याय ही गायब है पर ऐसा नहीं है कि सारे राजनेताओं की डायरी से राज्य प्रेम गायब हो गया । ऐसे बिरले राजनेता भी है, जो कि राज्य के प्रति बेहद लगाव बार-बार दर्शाते हैं, उनमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी है, उन्होंने सबसे पहले वर्ष 2009 में ''अपना मध्यप्रदेश बनाओ'' और स्वर्णिम राज्य का नारा दिया है। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने भी राज्य को नई तस्वीर देने में न सिर्फ अहम भूमिका अदा की, बल्कि उल्लेखनीय कार्य भी किये हैं। इससे अलग हटकर विकास की धुरी में मुख्य भूमिका अदा करने वाले नौकरशाह जरूर राज्य के प्रति वह प्रेम नहीं दर्शा पाते हैं, जो कि उन्हें दिखाना चाहिए, वे अपने आपको परदेशी मानते हैं और इसी के चलते उनकी जड़े मध्यप्रदेश में जम नहीं पाती हैं। ऐसे परदेशी मध्यप्रदेश की भूमि में अपने जड़े जमाने में कतई रूचि नहीं रखते। इन परदेशियों में राजनेता भी है, जो कि अन्य राज्यों से आकर मध्यप्रदेश में राजनीति कर रहे हैं, यहां तक कि मुख्यमंत्री जैसे ओहदे पर भी पहुंचे है, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू और बाबूलाल गौर भी शामिल हैं। तथ्यों के अनुसार काटजू का जन्म 17 जून 1887 को जावरा जिला रतलाम में हुआ। यहां उनकी नानी रहती थी, लेकिन काटजू की शिक्षा-दीक्षा उप्र में हुई तथा वे वकालत भी उप्र में करते थे। इसी प्रकार बाबूलाल गौर का जन्म भी उप्र में हुआ पर वे युवाकाल में ही मप्र आ गये थे, जो कि आज राज्य के बड़े नेता हैं। इसी प्रकार वर्तमान में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा भी बिहार के निवासी हैं, लेकिन झा भी युवा काल में ग्वालियर आ गये थे और अधिकतर समय ग्वालियर में बीता है। यह नाम तो सबके सामने हैं, लेकिन प्रदेश के कई हिस्से में छोटी-छोटी राजनीति करने वाले और व्यापार में शिरकत करने वाले व्यापारी भारी तादाद में हैं। यह भी एक सुखद पहलू हैं कि मध्यप्रदेश में अभी तक कहीं भी महाराष्ट्र की तरह यह भावना लोगों में नहीं आई है कि हमारे राज्य में आकर दूसरे राज्य के लोग राज्य करें। शांत प्रवृत्ति के वांशिंदों ने हमेशा लोगों को अंगीकार किया है। कहीं कोई विरोध नजर नहीं आता है। सबसे अधिक नौकरशाह दक्षिण भारत के मप्र में हैं जिसमें तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल आदि शामिल हैं। इन राज्यों के नौकरशाह परदेशी के रूप में काम करते हैं और इन पर समय-समय पर विभिन्न आरोप भी लगे, लेकिन दिलचस्प यह भी है कि कई नौकरशाह अब मप्र में ही बस गये हैं जिसके फलस्वरूप यह कहना कि परदेशी छोड़कर चले जाते हैं गलत है। कुल मिलाकर राज्य में परदेशियों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन फिर भी यहां पर यह सवाल अभी गूंजा नहीं है कि परदेशी राज्य के साथ अन्याय कर रहे हैं।
जय हो मप्र की
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG