मध्यप्रदेश और सपनों का मायाजाल : स्थापना दिवस में 09 दिन शेष
हमारे मध्यवर्गीय समाज में एक बड़ी खामी है कि जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र का ग्राफ बढ़ता है तो लोगों की धारणा बदलने लगती है। बातचीत अक्सर 40 की उम्र से 50 की उम्र पार करते ही लोगों का नजरिया बदला-बदला नजर आता है। हर नई सोच और ऊर्जा कितनी ही प्रदर्शित कर दी जाये लेकिन सामने वाले की टिप्पणी यही होती है कि अब तो बूढ़े हो रहे हो, अब क्या करोंगे। यही स्थिति मप्र के साथ बन गई है। यह राज्य 56 साल की उम्र पार कर रहा है, लेकिन इसके अपने हसीन सपने है, नई दुनिया बसाने का इरादा है। यह सच है कि जो राज्य उसके सामने अवतरित हुए वे आज विकास की दौड़ में मप्र से आगे निकल गये हैं। यहां तक कि वर्ष 2000 में बड़े भाई से अलग होकर छोटे भाई की भूमिका में आये छत्तीसगढ़ राज्य आज 12 साल बाद प्रतिव्यक्ति आय में भी मप्र से दो कदम आगे है। इसके साथ ही छग में बुनियादी सुविधाओं के लिए नागरिकों को रोज-रोज सड़कों पर नहीं आना पड़ रहा है। नये ढंग से राज्य को गढ़ा जा रहा है। इसके साथ ही मप्र से पहले स्थापित हुए राज्य गुजरात, पंजाब, हरियाणा, नई दिल्ली, गोवा सहित आदि विकास की अग्रिम पंक्ति में तेज दौड़ रहे हैं। हर दिशा में इन राज्यों ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया है, लेकिन मप्र आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। यहां के अखबारों में नित-प्रति सड़कों का न होना, बिजली की हायतौबा मचाना, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का गायब होना, साक्षरता का प्रतिशत न बढ़ना, पीने के पानी के लिए एक-दूसरे की हत्या करना, कुपोषण, गरीबी, अन्याय, असमानता, सामाजिक मतभेद, दलित और आदिवासी को दरकिनार करना तथा बेरोजगारी जैसी अनगिनत समस्याएं फोकस होती हैं। नये सपने और उन्हें जमीन पर उतारने का ठोस इदारा राजनेताओं से गायब सा हो गया है। यह कहा जाने लगा है कि अब तो मप्र बूढ़ा होने लगा है, तब वह हसीन सपनों का जाल बिछा रहा है। निश्चित रूप से भले ही विकास की धारा में राज्य को पिछड़ा माना जाये, लेकिन जब नींद खुली तभी सबेरा मानना चाहिए। यह कहावत मप्र पर पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है, क्योंकि राज्य विकास की दौड़ में अब तेजी से चल पड़ा है। जहां-तहां उद्योगों का जाल फैल रहा है, विकास दर के फलक पर हम लगातार आगे ही बढ़ रहे हैं यानि नये सपनों को लेकर मैदान में खुलकर आ गये हैं। निश्चित रूप से मप्र में प्राकृतिक संपदा से भरपूर है और उसके संसाधन भी उपलब्ध हैं। यही वजह है कि अब मप्र आर्थिक धरातल पर ताकतवर हो रहा है। राज्य में विकास की नई कहानी लिखी जा रही है, कोई ऐसा क्षेत्र बाकी नहीं है, जहां विकास पर नये-नये सपने न बुने जा रहे हो। गांव से लेकर शहरों में विकास के लिए योजनाएं बन रही हैं और उन्हें जमीन पर उतारा जा रहा है। मप्र को स्वर्णिम राज्य बनाने का संकल्प लिया जा चुका है। उद्योगों का जाल फैलाने की कोशिश हो रही है, लेकिन फिर भी राज्य के 50 जिलों में से 23 जिले उद्योगविहीन है मगर इसके बाद भी प्रदेश को आगे ले जाने की जिजीविषा लोगों में साफ तौर पर दिखती है। पूंजी निवेश के नाम पर बड़े-बड़े उद्योगपति प्रदेश में निवेश करने की इच्छा तो जाहिर कर रहे हैं, छोटे शहर और कस्बे बड़े आकार ले रहे हैं, शिक्षा के क्षेत्र में कॉलेज, स्कूल नये खुल रहे हैं, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, परिवहन सुविधाओं में विस्तार हुआ है यानि हर क्षेत्र में प्रगति दस्तक दे रही है बस इन सब कार्यों का संयोजन और नियोजन करने की आज नेतृत्व की जरूरत है।
मध्यप्रदेश दूसरे राज्यों में किस स्थान पर :
समय-समय पर मध्यप्रदेश के विकास को लेकर अन्य राज्यों से तुलना होती है, तो उसमें मप्र आज भी फिसड्डी है। 16 नवंबर, 2011 में हुए एक सर्वे के अनुसार मप्र सर्वांगीण विकास में अन्य राज्यों में 20वें स्थान पर है।
- सर्वांगीण प्रगति - 20वां स्थान
- खेती और किसान - तीसरा स्थान
- उपभोक्ता बाजार - 13वां स्थान
- शिक्षा का जाल - 19वां स्थान
- शासन करने की प्रक्रिया - 20वां स्थान
- स्वास्थ्य सुविधाएं - 18वां स्थान
- बुनियादी ढाचा - 9वां स्थान
- औद्योगिक निवेश - 18वां स्थान
- वृहद अर्थव्यवस्था - 8वां स्थान
यह सपने हमने देखे :
- प्रदेश को स्वर्णिम राज्य बनाने का इरादा
- विधानसभा में 74 संकल्प पारित हुए
- सामाजिक बदलाव की दिशा में एक कदम आगे बढ़े
- पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 कलाम ने विकास के 11 सपने सुझाये
पुराना मप्र वर्ष 1956 से पहले :
वर्ष 1956 में मप्र की स्थापना हुई है, लेकिन इससे पहले मप्र राज्य अलग-अलग राज्यों में विभाजित था। इन्हें एक करके मप्र बनाया गया। इसमें अलग-अलग भाषा, संस्कृति, पहनावा, बोलचाल और रहन-सहन आज भी साफ झलकता है, लेकिन फिर भी मप्र आज देश का एक चमकता हुआ राज्य है।
- महाकौशल - बालाघाट, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, नरसिंहपुर, जबलपुर, सागर, दमोह, होशंगाबाद, बैतूल, खंडवा।
- पूर्व भोपाल राज्य - भोपाल, सीहोर, रायसेना
- विंध्य प्रदेश - रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, टीकमगढ, छतरपुर, पन्ना एवं दतिया।
- मध्य भारत - भिंड, मंदसौर, मुरैना, धार, ग्वालियर, झाबुआ, गुना, खरगौन, शिवपुरी, राजगढ़, विदिशा, शाजापुर, देवास, उज्जैन, इंदौर, रतलाम।
मध्यप्रदेश और आज :
मध्यप्रदेश आज तेजी से विकास की तरफ बढ़ रहा है संभाग, जिला, तहसील, नगर की संख्या में लगातार इजाफा भी हो रहा है।
- कुल जिले - 50
- संभाग - 10
- तहसील - 342
- विकासखंड - 313
- आदिवासी विकासखंड - 89
- नगर -476
- नगर निगम - 14
- नगर पालिका - 97
- नगर परिषद - 258
- पंचायत 23,012
- कुल आबाद गांव - 54,903
- मुख्य भाषा - हिन्दी
- क्षेत्रीय भाषा - बुंदेली, बघेली और निमाड़ी
- राजधानी - भोपाल
- बड़े शहर - इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सतना
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