सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

विकास योजनाओं में करोड़ों के हो रहे हैं बारे-न्‍यारे मप्र में

          जो योजनाएं दलित-आदिवासी और अल्‍पसंख्‍यक वर्ग की जिंदगी में नई खुशियां ला सकती हैं पर उसका लाभ उन्‍हें नहीं मिल रहा है, क्‍योंकि सरकारी दफ्तरों में काम कर रहे बिचौलिए ऐसा कुचक्र रचते हैं कि सारे घोटाले और गड़बडियां करके उसका लाभ स्‍वयं लेते हैं। जब भ्रष्‍टाचार की परते खुलती हैं, तो फिर लाखों और करोड़ों रूपया अधिकारी/कर्मचारी के निवास से उंगलने लगते हैं। मप्र में पिछले दस महीनों में यही खेल चल रहा है। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसियां उन लोगों के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं, जो कि सरकारी योजनाओं में घुन की तरह चिपक गये हैं और अपने स्‍वार्थ के लिए करोड़ों के बारे-न्‍यारे कर रहे हैं। इस राज्‍य में बीते महीनों में चपरासी से लेकर बाबू और अफसर से लेकर आईएएस अफसर तक के यहां छापों में करोड़ों रूपये मिल रहे हैं। निलंबित आईएएस अफसर जोशी दम्‍पत्ति के यहां तो आयकर विभाग को छापों में इतने नोट मिले थे कि नोटों को गिनने के लिए मशीन बुलानी पड़ी थी। उज्‍जैन में एक नगर निगम के चपरासी के यहां करोड़ों रूपये मिल चुके हैं यानि अब सरकारी अधिकारी/कर्मचारियों के यहां छापों में धन लक्ष्‍मी बरस रही है। वैसे तो राज्‍य के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने इन भ्रष्‍ट अधिकारी/कर्मचारियों की सम्‍पत्ति राजसात करने के लिए कानून बना दिया है। फिलहाल उसकी जद में कई अधिकारी/कर्मचारी आ भी रहे हैं पर अभी तक कोई बड़ा मगरमच्‍छ जाल में फंसा नहीं है। 
अब दो करोड़ का आसामी निकला जनरल मैंनेजर : 
        अधिकारी/कर्मचारियों के यहां छापों के चल रहे सिलसिले के चक्र में अब 14 अक्‍टूबर को मप्र अनुसूचित जाति वित्‍त विकास निगम मे जनरल मैंनेजर भूपेंद्र सिंह भाटी के निवास से लोकायुक्‍त ने दो करोड़ की सम्‍पत्ति जप्‍त की है। इन महाशय ने सरकारी योजनाओं में जमकर घोलमाल किया है, क्‍योंकि यह लेखाधिकारी थे और योजनाओं की राशि आवंटन का अधिकार इनके पास था। इन्‍होंने आय से अधिक सम्‍पत्ति अर्जित कर ली थी जिसकी लगातार शिकायते मिल रही थी। छापे में दो करोड़ की चल-अचल सम्‍पत्ति का खुलासा हुआ है। उनके चार मकान एवं दस एकड़ भूमि की भनक भी लगी है। इसके अलावा एलआईसी और बैंकों में भी काफी राशि का निवेश किया है। उनके पास दो वाहन हैं तथा दो बेटे मेडीकल कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी वार्षिक आय लगभग छह लाख है, जबकि दोनों बेटों की पढ़ाई में अभी तक 30 लाख खर्च हो गये हैं। यह महाशय अनुसूचित जाति वित्‍त विकास निगम को ही खोखला करने में लगे हुए थे।  
निगम की योजनाओं का लाभ किसे : 
          दिलचस्‍प यह है कि अनुसूचित जाति वित्‍त विकास निगम का मुख्‍य काम अनुसूचित जाति के उत्‍थान का है। पर इस निगम में उस वर्ग के विकास की योजनाओं का लाभ अधिकारी खा रहे हैं और दलित वर्ग को लाभ नहीं मिल रहा है। वर्ष 2007-08 में लाखों रूपये के ट्रेक्‍टर बांट दिये गये जिसका आज तक हिसाब-किताब नहीं मिल पा रहा है। वही ट्रेनिंग के नाम पर भी गोलमाल किये जाने की सूचनाएं हैं इस बारे में भी कोई कार्यवाही फिलहाल किसी स्‍तर पर नहीं हो रही है। यानि यह निगम घोटालों का केंद्र बन गया है। लोकायुक्‍त के छापों ने तो सारी पोल खोलकर सामने रख दी है।

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