मध्यप्रदेश और मेट्रो कल्चर : स्थापना दिवस के 02 दिन शेष
जैसे-जैसे बाजार के पांव फैलते जा रहे हैं। वैसे-वैसे शहर महानगर हो रहे हैं और धीरे-धीरे की उनकी शक्ल बदल रही हैं। इस बदलाव ने मप्र की नौजवान पीढ़ी को खुलापन और आजादी दे दी है एवं कहीं कोई बंदिश नहीं है। खुले आकाश में पूरी ताकत से अपना जौहर दिखाने का उन्हें पूरा मौका मिला हुआ है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि राज्य की नई युवा पीढ़ी अपने दमखम पर कस्बे से शहर और शहर से महानगर में दस्तक देकर मेट्रो में विचरण कर रही है। ज्ञान के दीप ने उन्हें अब न सिर्फ देश के मेट्रो शहरों में प्रमुख स्थानों पर अहम भूमिका अदा करने का मौका दे दिया है, बल्कि सात समुंदर पार जाकर भी युवा पीढ़ी अपने ज्ञान का जौहर दिखा रही है। इससे न सिर्फ मध्यप्रदेश को एक नई ताकत मिल रही है, बल्कि अब धीरे-धीरे शहरों और महानगरों में बदलाव कदम-कदम पर नजर आने लगे हैं।
जैसे-जैसे बाजार के पांव फैलते जा रहे हैं। वैसे-वैसे शहर महानगर हो रहे हैं और धीरे-धीरे की उनकी शक्ल बदल रही हैं। इस बदलाव ने मप्र की नौजवान पीढ़ी को खुलापन और आजादी दे दी है एवं कहीं कोई बंदिश नहीं है। खुले आकाश में पूरी ताकत से अपना जौहर दिखाने का उन्हें पूरा मौका मिला हुआ है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि राज्य की नई युवा पीढ़ी अपने दमखम पर कस्बे से शहर और शहर से महानगर में दस्तक देकर मेट्रो में विचरण कर रही है। ज्ञान के दीप ने उन्हें अब न सिर्फ देश के मेट्रो शहरों में प्रमुख स्थानों पर अहम भूमिका अदा करने का मौका दे दिया है, बल्कि सात समुंदर पार जाकर भी युवा पीढ़ी अपने ज्ञान का जौहर दिखा रही है। इससे न सिर्फ मध्यप्रदेश को एक नई ताकत मिल रही है, बल्कि अब धीरे-धीरे शहरों और महानगरों में बदलाव कदम-कदम पर नजर आने लगे हैं।
आज से दस साल पहले भोपाल और इंदौर में मॉल का नाम सुनकर ही लोग चौंक जाते थे, लेकिन बदली परिस्थितियों में अब मॉल की चकाचौंध में जहां-तहां लोग विचरण करते दिख ही जायेंगे। अब तो दिल्ली और मुंबई को भी इन शहरों के मॉल चुनौती दे रहे हैं। युवा पीढ़ी में न सिर्फ अपने रहन-सहन में बदलाव आया है, बल्कि चाल-चलन और आधुनिक संसाधनों का उपयोग करने की कला में उनका कोई शान ही नहीं है, मोबाइल, पॉमटॉव, ग्लैक्सी मोबाइल और लैपटॉप पर जब उनकी उंगलियां तेजी से चलती है तो वह एक क्षण में दुनिया के किसी भी कौने में बात करते नजर आते हैं।
इससे साफ जाहिर है कि आज की पीढ़ी ने अपने आप में भारी बदलाव करके यह साबित कर दिया है कि हम किसी से कम नहीं हैं, जबकि आज से एक दशक पहले मप्र की नौजवान पीढ़ी को मौके और अवसर नहीं मिल पाते थे, लेकिन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में धीरे-धीरे राज्य में फैलाव हुआ। यह दौर 90 के दशक से शुरू हुआ और इस पर 1993 से परवान चढ़ना शुरू हुआ जिसके परिणामस्वरूप शहरों और महानगरों में कॉलेजों की बाढ़ आ गई। हो सकता है कि शिक्षाविद यह सवाल उठा सकते हैं कि आज भी मप्र में ऐसी कोई यूनिवर्सिटी नहीं है जिसकी देश भर में धाक हो, लेकिन धीरे-धीरे विवि का बजूद तो बन रहा है जिसे इंकार नहीं किया जा सकता है।
बदलाव का दौर :
मध्यप्रदेश में बदलाव का यह दौर कोई एक दिन की बात नहीं है, बल्कि इसके लिए राज्य निर्माताओं की पीढि़यों ने लंबा समय दिया है जिसके फल अब मिलने लगे हैं और अब एक कदम आगे जाने की चाहत भी बढ़ी है। देश के किसी भी कौने में अब मध्यप्रदेश के लोग रोजगार करते या किसी संस्थान में नौकरी करते मिल जायेगे, अन्यथा इससे पहले मप्र के वांशिंदे राज्य से बाहर नौकरी करने से घबराते थे, सिर्फ मजदूर वर्ग रोजगार की तलाश में हर साल पलायन करता था, लेकिन वर्ष 2000 के बाद से एकदम तस्वीर ने करवट ली और अब दस से बारह साल के भीतर देश के मेट्रो शहरों के साथ-साथ विदेशों में भी नौजवान अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इससे हमें संतुष्ट हो जाना चाहिए, बल्कि लगातार इस दिशा में सक्रिय रहने की जरूरत है तभी और आगे की मंजिल तय होगी।
विशेषकर जो शहर महानगर से अब मेट्रो की तरफ बढ़ रहे हैं उनमें अब और विस्तार करने की जरूरत है, जो बुनियादी सुविधाएं ज्ञान के विस्तार में उपलब्ध कराई जा रही हैं उनमें इजाफा करने की जरूरत है। यह सिलसिल चल भी रहा है, जो कि अब थमने का नाम नहीं लेने वाला है, क्योंकि परिवर्तन के दौर में राज्य चल पढ़ा है, जो कि नई ऊंचाईयों में पहुंचकर ही दम लेगा।
''जय हो मप्र की''
पूर्व मुख्यमंत्री जोशी की नजर में मध्यप्रदेश :
राज्य में जनता पार्टी की सरकार में मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी का कहना है कि मेरा सपना है कि मप्र विकास के नये आयाम स्थापित करें इस दिशा में राज्य ने अपने कदम बढ़ाये हैं। विकास की गंगा भी बह रही है। प्राकृतिक संपदा का पूरा उपयोग किया जा रहा है। श्री जोशी भाजपा के वरिष्ठ नेता है, वे पार्टी के अध्यक्ष भी रहे हैं, वे राज्य के हर इलाके से वाकिफ हैं तथा वर्तमान में भोपाल संसदीय क्षेत्र से सांसद है। उनका कहना है कि प्राकृतिक संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से दोहन किया जाना चाहिए, प्रशासन में जनता की भागीदारी बढ़े, खेती वैज्ञानिक तरीकों से की जाये, जो भूमि उपलब्ध है उसका अधिक से अधिक उपयोग हो।
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