रविवार, 21 अक्तूबर 2012

विकास की पटरी पर दौड़ नहीं पा रहे मप्र के शहर

 
मध्‍यप्रदेश और शहर : स्‍थापना दिवस में 10 दिन शेष
         56 साल का सफर पूरा कर रहे मध्‍यप्रदेश के शहर आज भी विकास की पटरी पर दौड़ नहीं पा रहे हैं, न तो आम आदमी की बुनियादी सुविधाएं मिल पा रही हैं और न ही अधोसंरचनाओं का जाल फैल पा रहा है। दुर्भाग्‍यपूर्ण स्थिति यह हो रही है कि न तो शहरों चमक बढ़ रही है और न ही रोजगार के रास्‍ते खुल रहे हैं।
यह सच है कि राज्‍य के बड़े शहरों में कांक्रीट के जंगल जरूर नजर आते है पर उसे विकास नहीं माना जा सकता, क्‍योंकि बिल्‍डरों ने जंगलों में कॉलोनियां बना दी है, तो लोग उसमें रहने को विवश है ही पर जिस तरह से बंगले और कॉलोनियां बनी हैं उस हिसाब से आम आदमी को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। मप्र में करीब आधा दर्जन ही बड़े शहर माने जाते हैं जिसमें इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्‍वालियर और रीवा शामिल हैं। 
इन शहरों में भी सिर्फ विकास की दौड़ भोपाल और इंदौर में ज्‍यादा है, लेकिन उसका भी एक निर्धारित पैमाना है। सड़के चौड़ी की जा रही है पर उनका स्‍तर भी घटिया है। याता-यात के साधनों पर किसी का ध्‍यान नहीं है। आज भी पैदल और बसों पर चलने के लिए लोग मजबूर हैं। इंदौर को औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाता है जिसे मिनी मुंबई भी कहा जाता है, लेकिन तब भी विकास में जिस तेजी से आगे बढ़ना चाहिए वह गति अभी नहीं मिली है। इंदौर को आईटी सिटी के रूप में विकसित करने के लिए राज्‍य सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। यही वजह है कि इंफोसिस और टीसीएस जैसी कंपनियां आने की इच्‍छुक हुई हैं। अभी फिलहाल कंपनियां एक कदम आगे बढ़ी है। यह कंपनियां आने से इंदौर की छटा ही अलग हो जायेगी। निश्चित रूप से मप्र में महानगरों के रूप में सिर्फ इंदौर ही गिना जाता है बाकी अन्‍य शहर अभी महानगर की दौड़ में आये ही नहीं हैं। इन शहरों में भी बुनिया‍दी सुविधाओं का विस्‍तार करने की दिशा में न तो जनप्रतिनिधियों की कोई दिलचस्‍पी है और न ही प्रशासन ऐसी कोई योजनाएं बना रहा है। दुखद पहलू यह है कि इन शहरों में दस साल बाद कैसा विस्‍तार होगा इस पर कार्य योजना तक नहीं बन रही है। बार-बार हर शहर और कस्‍बे का मास्‍टर प्‍लान बनाने की बात होती है पर यह मास्‍टर प्‍लान इतनी धीमी गति से तैयार होते हैं कि उनकी समयावधि का पालन ही नहीं होता है। निश्चित रूप से शहरों के विकास का ब्‍लू प्रिंट सरकार के पास तैयार है, लेकिन वह जमीन पर नहीं उतर पा रहा है जिसके चलते प्रदेश के शहर अपने आप दम तोड रहे हैं और न ही कोई पहचान बना पा रहे हैं। 
                                      ''जय हो मप्र की''

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