मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

दलित उत्‍पीड़न पर न राजनीतिक दल उत्‍तेजित होते हैं और न ही समाज में आक्रोश

          मध्‍यप्रदेश में विषम परिस्थितियों के बीच दलित वर्ग अपना जीवन-यापन कर गुजर बसर कर रहे हैं, लेकिन उन्‍हें कदम-कदम पर उत्‍पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। न तो उत्‍पीड़न के खिलाफ राजनीतिक दल अपना गुस्‍सा दिखाते हैं और न ही सामाजिक सरोकार रखने वाले संगठन इस दिशा में सक्रिय होते हैं,जिसके चलते दलित वर्ग पर उत्‍पीड़न का सिलसिला थम ही नहीं रहा है। उत्‍पीड़न भी छोटी-छोटी बातों को लेकर किया जा रहा है। दुखद पहलू यह है कि पुलिस में शिकायत की जाती है, तो उत्‍पीड़न करने वाले दबंगों के हाथ सत्‍ता तक इस कदर जुड़े होते हैं कि उन पर कार्यवाही तो दूर की बात है, उनसे पूछताछ तक नहीं करती है। पुलिस और शासन के अधिकारी दबंगों के दबाव में काम करें यह तो समझ में आता है कि उनके अपने स्‍वार्थ होते हैं, लेकिन अगर राजनीति दल मुंह फेर लें, तो फिर क्‍या समझा जाये। भले ही सत्‍तारूढ़ दल से जुड़े दल इस विषय पर कोई बात न करें, लेकिन कम से कम उत्‍पीड़न रोकने की दिशा में कोई कदम से उठा सकते हैं, लेकिन ऐसे प्रयास होते दिखते नहीं हैं। वही दूसरी ओर जिन दलों को विपक्ष की राजनीति करने का जनता ने मौका मुहैया कराया है, अगर वे भी दलित उत्‍पीड़न पर मुंह मोड़ लें, तो फिर बेचारा दलित समाज चुपचाप अत्‍याचार सहने के अलावा क्‍या करेंगा। 
दलित उत्‍पीड़न और मप्र - 
        राज्‍य में दलित उत्‍पीड़न को लेकर घटनाएं तो आये दिन मीडिया के जरिये सामने आती ही रहती हैं। राज्‍य सरकार दलित वर्ग के उत्‍थान के लिए नये-नये सपने दिखा कर ढेरो योजनाएं चलती है। यह सच है कि उत्‍पीड़न रोकने के लिए सरकार की तरफ से अजा थाने भी कार्यरत हैं, लेकिन इन थानों में संसाधनों का अभाव होने के कारण वह भी जैसी कार्यवाही करना चाहिए, वह नहीं कर पाती है। दबंग और सवर्ण वर्ग का एक आरोप बार-बार सुनने को मिलता है कि दलित वर्ग झूठी शिकायतें करता है, लेकिन अगर वह शिकायतें झूठी करता है तो उसकी जांच कर कार्यवाही की जानी चाहिए पर मप्र में तो ऐसा सप्‍ताह भर में कोई दिन होता होगा, जब राज्‍य के किसी हिस्‍से में दलित वर्ग पर अत्‍याचार की घटनाएं मीडिया में फोकस न होती हों। इन घटनाओं पर विराम न लगने की एक बड़ी वजह राजनीतिक निष्क्रियता है। अगर राजनैतिक चेतना इन मामलों को लेकर सक्रिय हो जाये, तो उत्‍पीड़नों की घटनाओं को रोका जा सकता है, पर राजनीतिक दल तो अपने वोटों के गुणा-भाग में लगे रहते हैं उन्‍हें दलित उत्‍पीड़न से कोई सरोकार नहीं है इसीलिए उत्‍पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। 
                                    जय हो मप्र की 

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