गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

मध्‍यप्रदेश में गांव के गरीबों को मिलेगा अपना घर

         मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गांव के गरीबों की जहां झोपड़ी है वहीं जमीन देने का एलान करके हजारों ग्रामीणजनों का दिल जीत लिया है। चौहान की इस घोषणा से एक नई बहस भले ही शुरू हो जाये कि मुख्‍यमंत्री आखिरकार क्‍या वोट बैंक के खातिर ऐसा कर रहे हैं अथवा पूर्व मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह की राह पर चल पड़े हैं। श्री सिंह ने भी 1982 में झुग्‍गीवासियों को मालिकाना हक देकर गरीबों के मसीहा बन गये थे। बस फर्क यह है कि दोनों का इलाका अलग-अलग है। चौहान ने गांव-गांव में रह रहे गरीबों को जमीनों का मालिकाना हक देने का एलान किया है, तो अर्जुन सिंह ने शहरों में रह रहे झुग्‍गीवासियों को एक दिन में मालिकाना हक देकर उनका दिल जीत लिया था। इस घोषणा से राज्‍य में अब एक नई बहस शुरू हो जायेगी कि आखिरकार एक तरफ तो सरकार के सामने जमीन का संकट है, तो दूसरी तरफ सरकार निजी जमीनों पर जमीन का पट्टा दे नहीं सकती है, तो ऐसी स्थिति में गांव-गांव में वर्ग संघर्ष होने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। कई स्‍थानों पर ग्रामीणजनों ने अपनी मजदूरी की खातिर छोटे-छोटे झोपड़े मालिकों के खेतों के ईद-गिर्द बना लिये हैं, ऐसी स्थिति में अगर उन्‍हें मालिकाना हक मिलेगा, तो एक बड़ा बबाल होना तय है, क्‍योंकि कोई भी मालिक अपने खेत की रखवाली तो गरीब से करा रहा है, लेकिन उसे जमीन की पार्टनशिप के लिए तैयार नहीं होगा। ऐसी स्थिति में खूनी संघर्ष हो जाये, तो कोई आश्‍चर्य नहीं होगा। अब सरकार के ऊपर निर्भर है कि वह अपनी घोषणा पर अमल कराये। 
क्‍या है घोषणा - 
  • मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमेरिका से लौटने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं को स्‍वागत करते हुए कहा था कि गांव का गरीब जहां रह रहा है वहां उसे जमीन दी जायेगी। इस घोषणा का उतना मीडिया में स्‍थान नहीं मिला और न ही चर्चा हुई, लेकिन 10 अक्‍टूबर, 2012 को अपनी आगरा यात्रा के दौरान चौहान ने फिर से एलान कर दिया कि गांवों का गरीब जिस झोपड़े में रह रहा है वही उसकी जमीन और मालिकाना हक होगा। 31 दिसंबर, 2011 से पहले जमीन पर जिनका कब्‍जा है उन्‍हें इसका लाभ मिलेगा। गरीबों का पट्टा देने की यह घोषणा  राजधानी के मीडिया में प्रमुखता से फोकस हुई है। 
वोट बैंक पर नजर तो नहीं - 
  • यह घोषणा उन ग्रामीणजनों के लिए एक नई ऊर्जा का संचार है, जो कि जैसे-तैसे अपना जमीन गुजर बसर कर रहे  हैं। इससे प्रदेश के उन हजारों लोगों को जमीन का पट्टा मिल जायेगा, जिनके पास जमीन नहीं है। इस घोषणा ने एक बार फिर मप्र में चुनावी माहौल को गर्म कर दिया है, क्‍योंकि राज्‍य में अगले साल चुनाव होना है और एक बड़े वोट बैंक पर चौहान की नजर टिक गई है। अब विपक्ष के सामने यह मुसीबत होगी कि वे आखिरकार इस घोषणा के विरोध में क्‍या बोले। 
याद आये अर्जुन सिंह - 
  •  वर्ष 1982 में राज्‍य के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह ने भी अचानक विधानसभा में झुग्‍गीवासियों को मालिकाना हक का पट्टा देकर गरीबों के मसीहो बन गये थे फिर भले ही उनकी पार्टी का इसका राजनैतिक लाभ न मिला हो, लेकिन हजारों शहरों में निवास कर रही गरीब जनता आज भी अर्जुन सिंह को याद करती है, क्‍योंकि उन्‍होंने ही उन्‍हें दो गज जमीन दी है। इस पट्टे को लेकर एक नया विवाद राज्‍य में खड़ा हो गया था और देखते ही देखते करीब 20 हजार झुग्गियां अवैध बन गई थी। 
क्‍या है प्रावधान - 
  •  मध्‍यप्रदेश ग्रामों की दखल रहित भूमि अधिनियम 1970 के तहत भी गांवों के आवासहीन व्‍यक्तियों को स्‍वामित्‍व देने का प्रावधान है। इसके तहत सरकारी जमीन पर कब्‍जे दिये जाते हैं। पहले यह काम 23 जून 1980 तक के कब्‍जेधारियों के लिए किया गया था अब 31 दिसंबर 2011 की स्थिति में कब्‍जे दिये जायेंगे। इसके लिए तहसीदारों को अधिकार है। मप्र वास स्‍थान दखल कार्य (भूमि स्‍वामी अधिकारों का प्रदाय किया जाना) अधिनियम 1980 के तहत गांवों के आवासहीन भूमि स्‍वामित्‍व देने का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत प्राइवेट जमीन पर कब्‍जे दिये जाते हैं। इसके लिए एसडीएम अधिकृत हैं। निश्चित रूप से अब शासन को नये सिरे से जमीन को लेकर विचार मंथन करना पड़ेगा।
कहीं वर्ग संघर्ष तो नहीं होगा - 
  •  जो गरीब दो वक्‍त की रोटी को पाने के लिए किसी मालदार आदमी के यहां सुबह-शाम की जी-हजूरी कर रहा है, अगर रहने के लिए जमीन दे दी है, तो फिर अगर सरकार पट्टा देगी तो कोई भी मालिक इसके लिए तैयार नहीं होगा। ऐसी स्थिति में गांव-गांव में वर्ग संघर्ष होने के आसार बढ़ेगे। यह हो सकता है कि कहीं-कहीं जहां सरकारी जमीनों पर गरीबों ने कब्‍जे कर रखे हैं, वहां पट्टे देने में कोई परेशानी न आये, लेकिन उन गरीबों के लिए तो एक नई मुसीबत खड़ी हो ही गई है, जो कि अपने मालिक के खेत में मकान बनाकर रह रहे हैं और वे किसी भी स्थिति में मालिकाना हक लेने के लिए तैयार नहीं होंगे, लेकिन तब विवाद सरकार करायेगी, ऐसी स्थिति में गरीब मजदूर का ही बुरा होना है, जबकि राज्‍य के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का इरादा सिर्फ गरीबों को उनके लिए आशियाना उपलब्‍ध कराना है। 
                                     जय हो मप्र की

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