मध्यप्रदेश व जातिवाद-सांप्रदायिकता : स्थापना दिवस में 8 दिन शेष
भले ही राजनैतिक दल बार-बार दावा करें कि मप्र में जाति आधारित राजनीति नहीं होती है और न ही सांप्रदायिक तत्व हावी हैं पर जमीनी असलियत यह है कि जातिवाद का जहर गहराई तक प्रवेश कर गया है, जातियों के समूह अपने-अपने कुनवों को बढ़ाने में ताकत लगा रहे हैं। जाति आधारित सम्मेलनों की बाढ़ आ गई है जिसमें खुलकर जातिवाद को बढ़ावा देने की पैरवी की जाती है। इसके खिलाफ जो बोलता है वह जाति विरोधी माना जा रहा है। इसके विपरीत सांप्रदायिकता के रोग ने तो एक विकट रूप ले लिया है। राज्य में अमन-चैन से रहने वाले लोगों को तब पीड़ा और तकलीफ होती है, जब अमन के विरोधी छोटे-छोटे मुद्दों को भी सांप्रदायिक रंग देने में माहिर हैं। सांप्रदायिकता का जाल धीरे-धीरे उन इलाकों में फैल गया है जहां पर धर्मनिरपेक्ष ताकतें मजबूती से खड़ी थी, लेकिन वहां भी सांप्रदायिक ताकतों ने अपने पैर जमा लिये हैं। यह एक दिलचस्प पहलू यह है कि जिन ताकतों को सांप्रदायिकता के खिलाफ ताल ठोकर खड़े होना चाहिए वह अपने-अपने घरों में कैद हो गये हैं। विशेषकर विरोधी दल की भूमिका अदा कर रही कांग्रेस ने तो सांप्रदायिकता के खिलाफ अपने आपको बयानबाजी तक सीमित कर लिया है। यही हाल बामपंथी दलों का है, यह दल तो बयानजारी करने में भी कोताही बरततें हैं। यूं तो मप्र में बामपंथी दल भाकपा और माकपा हैं इन दलों की ताकत उंगलियों पर गिनी जा सकती है, लेकिन यह दल भी सांप्रदायिक तत्वों के सामने बौने साबित होते हैं। यही वजह है कि सांप्रदायिक तत्वों ने अपने-अपने ढंग से पैठ बनाने के रास्ते खोज लिये हैं। कभी-कभार मीडिया अपने आक्रमक तेवर दिखाते हुए सांप्रदायिक संगठनों को चुनौती देता नजर आता है जिस पर यह तत्व थोड़ा ठंडे पड़ जाते हैं अन्यथा सरकार और प्रशासन को आंखे दिखाने में तो इन्हें मजा आता है। प्रशासन जब पीछे पड़ता है, तो फिर इन तत्वों को पसीना भी आ जाता है।
भले ही राजनैतिक दल बार-बार दावा करें कि मप्र में जाति आधारित राजनीति नहीं होती है और न ही सांप्रदायिक तत्व हावी हैं पर जमीनी असलियत यह है कि जातिवाद का जहर गहराई तक प्रवेश कर गया है, जातियों के समूह अपने-अपने कुनवों को बढ़ाने में ताकत लगा रहे हैं। जाति आधारित सम्मेलनों की बाढ़ आ गई है जिसमें खुलकर जातिवाद को बढ़ावा देने की पैरवी की जाती है। इसके खिलाफ जो बोलता है वह जाति विरोधी माना जा रहा है। इसके विपरीत सांप्रदायिकता के रोग ने तो एक विकट रूप ले लिया है। राज्य में अमन-चैन से रहने वाले लोगों को तब पीड़ा और तकलीफ होती है, जब अमन के विरोधी छोटे-छोटे मुद्दों को भी सांप्रदायिक रंग देने में माहिर हैं। सांप्रदायिकता का जाल धीरे-धीरे उन इलाकों में फैल गया है जहां पर धर्मनिरपेक्ष ताकतें मजबूती से खड़ी थी, लेकिन वहां भी सांप्रदायिक ताकतों ने अपने पैर जमा लिये हैं। यह एक दिलचस्प पहलू यह है कि जिन ताकतों को सांप्रदायिकता के खिलाफ ताल ठोकर खड़े होना चाहिए वह अपने-अपने घरों में कैद हो गये हैं। विशेषकर विरोधी दल की भूमिका अदा कर रही कांग्रेस ने तो सांप्रदायिकता के खिलाफ अपने आपको बयानबाजी तक सीमित कर लिया है। यही हाल बामपंथी दलों का है, यह दल तो बयानजारी करने में भी कोताही बरततें हैं। यूं तो मप्र में बामपंथी दल भाकपा और माकपा हैं इन दलों की ताकत उंगलियों पर गिनी जा सकती है, लेकिन यह दल भी सांप्रदायिक तत्वों के सामने बौने साबित होते हैं। यही वजह है कि सांप्रदायिक तत्वों ने अपने-अपने ढंग से पैठ बनाने के रास्ते खोज लिये हैं। कभी-कभार मीडिया अपने आक्रमक तेवर दिखाते हुए सांप्रदायिक संगठनों को चुनौती देता नजर आता है जिस पर यह तत्व थोड़ा ठंडे पड़ जाते हैं अन्यथा सरकार और प्रशासन को आंखे दिखाने में तो इन्हें मजा आता है। प्रशासन जब पीछे पड़ता है, तो फिर इन तत्वों को पसीना भी आ जाता है।
जातिवाद का फैलता जहर :
मध्यप्रदेश को जाति विहीन राजनीति का गढ़ कहा जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे जातिवाद का जहर भीतर तक प्रवेश कर गया है। राजनीतिक दल चुनाव के समय जाति आधार पर टिकटों का वितरण करने लगे हैं। यहां तक कि सांसद और विधायकगण अपने-अपने क्षेत्रों में उन जातियों को खुश करने के उपक्रम करते रहते हैं, जो उन्हें थोक में वोट दिलाते हैं। जातिगत समीकरण के तहत पार्टियों में पद बांटे जाने लगे हैं। दुखद पहलू तो यह है कि प्राईवेट सेक्टर में भी जातिवाद तेजी से पनप रहा है। कई जगह देखने में आता है कि एक ही जाति के लोगों को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह से दवाब बनाये जाते हैं। प्रदेश में ऐसा कोई सप्ताह नहीं गुजरता है जब जातिगत सम्मेलन न होते हो। इन सम्मेलनों में जाति को फोकस किया जा रहा है और हर तरह से लुभावने सपनों का जाल फेंका जाता है। फिलहाल तो जातिवाद के खिलाफ किसी स्तर पर कोई मोर्चा नजर नहीं आता है।
सांप्रदायिकता का फैलता फन :
कभी-कभी लगता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो मप्र को स्वर्णिम राज्य बनाने का सपना दिखाते हैं और इसके लिए वह लगातार प्रयास भी कर रहे हैं पर उनके इस अभियान पर पानी फेरने की कोशिश सांप्रदायिक ताकतें करती रहती हैं। राज्य में इन दिनों धीरे-धीरे सांप्रदायिक ताकतें अपने पैर फैला रही है। यह जरूर है कि दंगे पिछले साल की अपेक्षा इस साल कम हुए है, लेकिन सांप्रदायिक ताकतों ने तनाव के जरिये समाज में सांप्रदायिकता का जाल फैलाया था। तनाव फैलाना तो अब इन ताकतों के लिए बाये हाथ का काम हो गया है। इसके पीछे उनकी मंशा यह है कि तनाव के जरिये समाज में भय बैठा दिया जाये, तो वह विरोध न कर सकें। इसके चलते विकास का पहिया तो थमता ही है साथ ही जो पूंजी निवेश के लिए राज्य सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगाती रहती है उसमें भी कामयाबी नहीं मिल पाती है।
''जय हो मप्र की''
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं