भले ही मध्यप्रदेश की पूरी भाजपा सरकार सुबह-शाम गर्व से एक ही राग अलाप रही है कि राज्य की विकास दर लगातार बढ़ रही है। विकास का पैमाना बदल गया है। हर तरफ खुशिया ही खुशिया है पर शर्मनाम और दुखद पहलू यह है कि आज भी मप्र के हिस्सों से अगर यह स्वर सुनाई दे कि पेट की खातिर मां-बाप को अपने बच्चे बेचना पड़े, तो राज्य के विकास पर सवाल उठना स्वाभाविक है। प्रदेश में कल्याणकारी योजनाएं अनगिनत चल रही है। मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव लगातार इन योजनाओं की समीक्षाएं कर रहे हैं। लोगों को रोजगार और पलायन से रोकने के लिए महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना पिछले छह सालों से चल रही है इसके बाद भी अगर खरगौन जिले के आदिवासी परिवार अपने बच्चों को 2000 और 1500 रूपये में बेचने को तैयार है, तो यह हर मध्यप्रदेश वासी के लिए दिल दहलाने वाली घटना है। निश्चित रूप से मनरेगा ने गांव-गांव की तस्वीर बदली है, लेकिन फिर भी खरगौन जिले के एक गांव झिरिन्या के दो बच्चों को पेट की खातिर बेचने के मामले ने मनरेगा पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं। इससे पहले बुंदेलखंड में गरीबी और बेरोजगारी के कारण बच्चियों के बेचने के मामले सामने आये थे, तब भी राज्य के राजनेताओं ने इस मामले में न तो दिलचस्पी दिखाई और न ही कोई पहल की। यही वजह है कि आज भी हम गरीबी और भूखमरी के बीच जीने को विवश हैं। भले ही सपने स्वर्णिम राज्य बनाने के देख रहे हों। लेकिन यथार्थ कुछ और ही है। खरगौन जिले का जिला प्रशासन बेखबर है, न तो उसे बच्चों के बेचे जाने की सूचना है और न ही उन सूचनाओं को गंभीरता से अभी लिया गया है। कलेक्टर डॉ0नवनीत मोहन कोठारी ने अपने जनपद पंचायत सीईओ को निर्देश दिये हैं कि वे मनरेगा के तहत गांव की स्थिति का पता करें। पुलिस को भी कार्यवाही करने के निर्देश दिये हैं। भला हो राजस्थान के कोटा स्थित गैर सरकारी संगठन टावर बसेरा के कार्यकर्ताओं ने ग्राम झिरिंया के दो बच्चों दस वर्षीय दिलीप और आठ वर्षीय रूपाल सिंह को उनकी मां जमुना बाई तथा पति रूप सिंह के सुपुर्द कर दिया है। यह बच्चे मां-बाप ने भेड़ चराने वाले को दो वर्ष पहले बेच दिया था। दुखद पहलू देखिए कि बच्चे बेचने के बाद मां-बाप को पैसे नहीं मिले हैं। बार-बार बच्चे खरीदने वाला कहता है कि हम पैसे दे देंगे। मां-बाप ने यह बच्चे भेड़ चराने के लिए बेचे थे। निश्चित रूप से घटना चिंतनीय है। खरगौन निमाड़ अंचल का एक पापुलर जिला है जहां से सहकारी नेता सुभाष यादव अपनी राजनीति चमका चुके हैं और अब उनके बेटा अरूण यादव राजनीति कर रहे हैं। भाजपा में भी दिग्गज नेता है। इसके बाद भी अगर इलाके के ग्रामीण अंचलों से बच्चे पेट की खातिर बेचे जा रहे हैं तो यह राजनेताओं के लिए तो बेहद ही कलंकित करने वाला विषय है। निश्चित रूप से उन्हें अपनी राजनीति और उन तथ्यों पर सोचना चाहिए जिसकी वजह से यह नौबत बनी है। मप्र के लिए तो और भी शर्मनाक है । ऐसी तस्वीर अगर हमारे सामने आई है, तो भयावह है जिसका सामना सबको मिलकर करना होगा। सरकार को तो तेज दौड़ लगाने होगी, तभी हम इस प्रकार के शर्मनाक पहलू को थाम पायेंगे।
मप्र की जय हो
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