सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

शिवराज और उमा भारती के बीच दूरिया कम हुई

            राजनीति में कोई किसी का दुश्‍मन नहीं होता है। वक्‍त-वक्‍त के साथ राजनीति भी अपना चेहरा बदलती रहती है बदलते दौर में राजनेता भी समय के अनुसार बदलाव करने में एक पल की देरी भी नहीं करते। अब देखिए न मध्‍यप्रदेश में भाजपा की राजनीति में गहरे तक प्रवेश कर चुके मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती के बीच अब फिर दूरिया कम होने लगी हैं। पिछड़े वर्ग की राजनीति करते-करते दोनों आज राजनीति के शिखर पर हैं। बस रास्‍ते अलग-अलग हैं। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश की बागडोर संभाले हुए हैं, तो पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती राजनीति में गोते लगाते-लगाते उत्‍तरप्रदेश की राजनीति की धारा बदलने की जद्दोजहद में लगी हुई हैं। मध्‍यप्रदेश में वर्ष 2003 में कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब रहने वाली साध्‍वी उमा भारती बमुश्किल 8 महीने ही मुख्‍यमंत्री रह पाई थी और उनके बाद बाबूलाल गौर मुख्‍यमंत्री बने और उसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने मुख्‍यमंत्री पद की कमान संभाली। इसके बाद चौहान ने पीछे पलटकर नहीं देखा और वे आज तीसरी बार राज्‍य में सरकार बनाने का सपना पाले हुए हैं। दूसरी बार तो उन्‍होंने अपने दम-खम पर 2008 में सरकार बना ली थी, लेकिन तीसरी बार 2013 में चुनौतियों की लंबी कतार है। ऐसी स्थिति में चौहान ने राजनीतिक पांसा थोड़ा से पलटा है और अब वे अपने विरोधियों को भी गले लगाने में एक पल भी हिचक नहीं रहे हैं। यही वजह है कि 9 फरवरी, 2013 को होशंगाबाद जिले में नर्मदा समग्र पर चल रहे सेमीनार में चौहान और उमा भारती एक मंच पर थे। इस दौरान चौहान और भारती के बीच गुप्‍तगू भी हुई। दोनों खूब खिल-खिलाए भी जिसकी तस्‍वीरे मीडिया में चमकी भी पर राजनीतिक पंडितों को इस पर कोई आश्‍चर्य नहीं हुआ। क्‍योंकि राजनीति में हर पल तो बदलाव होता है। भाजपा में वापसी के बाद उमा भारती चौहान की पहली बार एक मंच पर मौजूदगी थी। इससे पहले 2012 में यूपी चुनाव के दौरान चौहान और शिवराज के बीच मुलाकातें हुई हैं, लेकिन आमना-सामना ही हुआ है और मंच पर कम बैठे हैं। इस बार दोनों की मुलाकात नदी महोत्‍सव में होने से साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मामला भीतर ही भीतर कुछ पक रहा है।
  उमा भारती संघ परिवार से बेहद निकट से जुड़ी हुई हैं और संघ परिवार अब उमा भारती को मुख्‍य धारा में लाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। ऐसी स्थिति में उमा भारती ने भी पुराने गिला-शिकवा भुलाकर अब फिर से अपनी नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही हैं। निश्चित रूप से मप्र की राजनीति में उमा और शिव की जोड़ी अगर भविष्‍य में बनती भी है, तो यह भाजपा के लिए सुखद ही होगा, जो कि चुनाव में भी वोट प्रतिशत तो बढ़ायेगा ही। ऐसी स्थिति में अगर दो दुश्‍मन गले मिल जाये, तो फिर राजनीति तो होगी ही। यही उमा और शिव के मुलाकात में हुआ होगा। इस पर ज्‍यादा गहराई से जाने की जरूरत नहीं है। 
                                        ''मप्र की जय हो''

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