मध्यप्रदेश की जो भौगोलिक संरचना है उसमें हर साल प्राकृतिक आपदाएं अपना रौद्र रूप दिखा रही हैं। कभी बाढ़ की विभीषिका घेर लेती है और फिर ऐसा उल्टा चक्र चलता है कि महीनों बाढ़ से प्रभावित आम आदमी पटरी पर आ ही नहीं पाता है। कभी ओले की मार पड़ती है, तो कभी फसलों को प्रकृति निगल लेती है। यह सिलसिला अनंत काल से चला आ रहा है पर फिर भी सरकार की नींद प्राकृतिका आपदा आने पर ही खुल रही है। मप्र में वर्ष 2006 में हुई बारिश में राजधानी को बाढ़ की चपेट में ले लिया था। नदियों ने कई गांवों को डुबो दिया था। इसके बाद सरकार ने कोई एक्शन-प्लान नहीं बनाया और न ही इस दिशा में विचार तक किया। प्रकृति की मार छह साल बाद फिर राज्य के वाशिंदे झेल रहे हैं। वर्ष 2012 अगस्त महीने की बारिश ने बाढ़ का विहंगम दृश्य उभार दिया है। अब सरकार अगले साल तक दक्ष रिस्पांस टीम बनाने की बात कर रही है, जबकि प्रदेश की बाढ़ से 23 मौते हो गई हैं, 245 पशुधन हानि हुई है, 1000 मकान और भवन टूटकर बिखर गये हैं, चम-चमाती सड़कों पर करोड़ों रूपये फूंकने के बाद प्रदेश के 16 जिलों में 85 सड़के और 06 राष्ट्रीय राजमार्गों में स्थान-स्थान पर गड्डे हो गये हैं। इसके साथ ही 04 पुल भी धरासाही हो गये हैं इसके अलावा एक दर्जन पुल स्थान-स्थान से क्षतिग्रस्त हो गये हैं, जो कभी भी बड़ी घटना के साक्षी बन सकते हैं।
हर साल बारिश होती है पर बाढ़ का रौद्र रूप हर बार देखने को नहीं मिलता है इस साल मानसून ने अपना असली चेहरा फोकस कर दिया जिसकी वजह से प्रदेश के दो दर्जन से अधिक जिलों में बाढ़ ने न सिर्फ जन जीवन अस्त-व्यस्त किया, बल्कि प्रदेश के विकास को में भी विराम लगाया है। हालात इस कदर बिगड़ गये हैं कि रायसेन जिले में राहत कार्यों के लिए सेना बुलानी पड़ी। इसके साथ ही करीब एक दर्जन से अधिक जिलों में मुख्य मार्गों पर जगह-जगह चक्काजाम जैसी नौबत बन गई है, जो वाहन जहां खड़ा था वहीं 24 घंटे तक खड़ा रहा है। बाढ़ के बाद अब राहत कार्यों को लेकर सरकार ने अपनी सक्रियता दिखाई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार बाढ़ पीडि़त क्षेत्रों का दौरा कर रहे है, उन्होंने अफसरों को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया है। डे-टू-डे जिला प्रशासन से रिपोर्ट मंगाई जा रही है। अब हमेशा की तरह सीएम ने केंद्र से विशेष पैकेज की मांग भी कर डाली है पर इससे पहले कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया और सुरेश पचौरी ने पीएम से मिलकर मप्र को विशेष पैकेज देने के लिए ज्ञापन सौंप दिया है यानि बाढ़ और राहत अब कांग्रेस और भाजपा के लिए एक राजनीतिक मोहरा बन गया है, जबकि आम आदमी आज भी बाढ़ से राहत के लिए जदो-जहद कर रहा है। कई जगह पेड़ पर लोग रात गुजार रहे हैं। न तो खाने को रोटी मिल रही है और न ही पीने को शुद्व पानी। बस सड़कों पर बहते पानी से लोग रूबरू हो रहे हैं। इसके साथ ही सरकार ने प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए स्टेट डिजास्टर मैनजमेंट अथोरिटी गठित करने की मंशा जाहिर की है। यह फोर्स इमरजेंसी में काम करेंगा। आठ महीने में यह टीम तैयार हो जायेगी, जो कि सेना की तरह काम करेगी। चलिए बार-बार आ रही प्राकृतिक आपदा के बाद सरकार की नींद तो खुली है। बाढ़ से फिलहाल किसानों की फसलों को कोई खास नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन शहरों में बाजारों में व्यापारियों के चेहरे उतरे हुए हैं, क्योंकि उनका बाजार इन दिनों शांत है। बारिश में लोगों को अपने घरों तक कैद कर दिया है।
हर साल बारिश होती है पर बाढ़ का रौद्र रूप हर बार देखने को नहीं मिलता है इस साल मानसून ने अपना असली चेहरा फोकस कर दिया जिसकी वजह से प्रदेश के दो दर्जन से अधिक जिलों में बाढ़ ने न सिर्फ जन जीवन अस्त-व्यस्त किया, बल्कि प्रदेश के विकास को में भी विराम लगाया है। हालात इस कदर बिगड़ गये हैं कि रायसेन जिले में राहत कार्यों के लिए सेना बुलानी पड़ी। इसके साथ ही करीब एक दर्जन से अधिक जिलों में मुख्य मार्गों पर जगह-जगह चक्काजाम जैसी नौबत बन गई है, जो वाहन जहां खड़ा था वहीं 24 घंटे तक खड़ा रहा है। बाढ़ के बाद अब राहत कार्यों को लेकर सरकार ने अपनी सक्रियता दिखाई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार बाढ़ पीडि़त क्षेत्रों का दौरा कर रहे है, उन्होंने अफसरों को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया है। डे-टू-डे जिला प्रशासन से रिपोर्ट मंगाई जा रही है। अब हमेशा की तरह सीएम ने केंद्र से विशेष पैकेज की मांग भी कर डाली है पर इससे पहले कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया और सुरेश पचौरी ने पीएम से मिलकर मप्र को विशेष पैकेज देने के लिए ज्ञापन सौंप दिया है यानि बाढ़ और राहत अब कांग्रेस और भाजपा के लिए एक राजनीतिक मोहरा बन गया है, जबकि आम आदमी आज भी बाढ़ से राहत के लिए जदो-जहद कर रहा है। कई जगह पेड़ पर लोग रात गुजार रहे हैं। न तो खाने को रोटी मिल रही है और न ही पीने को शुद्व पानी। बस सड़कों पर बहते पानी से लोग रूबरू हो रहे हैं। इसके साथ ही सरकार ने प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए स्टेट डिजास्टर मैनजमेंट अथोरिटी गठित करने की मंशा जाहिर की है। यह फोर्स इमरजेंसी में काम करेंगा। आठ महीने में यह टीम तैयार हो जायेगी, जो कि सेना की तरह काम करेगी। चलिए बार-बार आ रही प्राकृतिक आपदा के बाद सरकार की नींद तो खुली है। बाढ़ से फिलहाल किसानों की फसलों को कोई खास नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन शहरों में बाजारों में व्यापारियों के चेहरे उतरे हुए हैं, क्योंकि उनका बाजार इन दिनों शांत है। बारिश में लोगों को अपने घरों तक कैद कर दिया है।
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