हर साल बारिश होती है और उसके बाद नदी-नाले उफान पर आते फिर सड़कों पर लबालब भरे पानी के बीच बस और चीप निकलने का साहस करते हैं जिसके फलस्वरूप वे फिर पानी में ही फंस जाते हैं। ऐसे समय जिंदगी कितनी असहाय हो जाती है, यह तो उन्हीं लोगों से समझा जा सकता है, जो मौत के निकट पहुंच जाते हैं। समझ से परे है कि हर साल बारिश के बाद भी सड़कों पर न तो जिला प्रशासन नजर आता है और न ही परिवहन विभाग की कोई भूमिका दिखती है। हर साल की तरह इस वर्ष भी पानी के भंवर जाल में लोगों के फंसने की कहानियां सामने आ रही हैं। 10 अगस्त, 2012 की रात्रि में जब पूरा देश कान्हा के जन्म उत्सव की धूम में डूबा हुआ था, तब मप्र के शिवपुरी जिले में महुअर नदी के तेज बहाव में एक निजी ट्रेवल्स की बस जा फंसी जिसमें 20 यात्री शामिल थे। बस पुल पर आगे बढ़ी ही थी कि गड्डे में जाकर फस गई और नदी का पानी बस की छत के करीब गुजर रहा था। जैसे-तैसे यात्री बस के छत पर पहुंचे और अपनी जान बचाने का प्रयास किया। इसके बाद शिवपुरी के कलेक्टर आरके जैन ने रेसक्यू टीम तैनात की तब जाकर यात्रियों को सुरक्षित निकाला जा सका।
इसी प्रकार एक अन्य घटना सतना जिले की जिगनहट नदी में 09 अगस्त को घटना सामने आई जहां पर रात में एक जीप नदी में पार करने के लिए उतरी और उतरते ही जीप गहरे पानी में समा गई। इस जीप में चार लोग सवार थे। यह लोग एक आदिवासी परिवार की महिला को प्रसूति के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराने के लिए ले जा रहे थे और रास्ते की नदी में जीप बुरी तरह से फंस गई। कहां जा रहा है कि जीप पुरानी थी और नदी में बाढ़ थी तथा पानी पुल के ऊपर बह रहा था जिसका अनुमान वाहन चालक नहीं लगा पाया और जैसे ही जीप पुल के बीच से गुजरी कि अचानक जीप बंद हो गई। बार-बार स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन स्टार्ट नहीं हो पाई। पुल पर लगातार पानी चढ़ता ही जा रहा था। इन चारों यात्रियों में से किसी के पास भी मोबाइल नहीं था। जैसे ही जीप बहने वाली थी कि गांव के लोगों ने अचानक उन लोगों को बचा लिया और जीप को जैसे-तैसे बाहर निकाला गया। निश्चित रूप से उन बहादुर लोगों को नमन जिन्होंने नदी में डूबने की कगार पर पहुंचे लोगों को बचा लिया। यहां पर यह सवाल अभी भी यथावत बना हुआ है कि आखिरकार हर साल बारिश होती है फिर भी सरकार के विभाग पहले से उन मार्गों को चिन्हित क्यों नहीं करते हैं, जहां पर नदी नाले सड़कों पर उफान मारते हैं और लोग बेमौत मारे जाते हैं। इस बारे में बार-बार नीति बनाने की बाते होती है, लेकिन उन पर कोई गौर नहीं करता है। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है और लगता है कि अभी भी चलता रहेगा।
''जय हो मप्र की''
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