गुरुवार, 23 अगस्त 2012

खत्‍म हो रहा है मप्र में बाघों का कुनवा

 
          कभी हम मध्‍यप्रदेशवासी बाघ स्‍टेट पर गौरव किया करते थे, लेकिन अब बाघों का कुनवा धीरे-धीरे खत्‍म हो रहा है। यहां भी माफिया ने अपने पैर जमा लिये हैं जिसके फलस्‍वरूप धीरे-धीरे जंगलों से बाघों को निशाना बनाकर खत्‍म किया जा रहा है। पिछले दस साल में मप्र में 24 बाघ और 99 पेंथर का शिकार हुआ है। इसके बाद भी वन विभाग की नींद नहीं खुली है। न तो शिकारियों पर कोई कार्यवाही हुई हैं और न ही बाघों को बचाने के लिए कोई मुहिम शुरू हो पाई है। आलम यह हो गया है कि बाघो की गणना को लेकर भी मप्र में बढ़ा विवाद घिर गया है। इसी गणना के चलते कहा गया कि मप्र में बाघों की संख्‍या वर्ष 2004 में 713 हो गई है पर केंद्र सरकार की रिपोर्ट में इस पर पानी फेरते हुए मप्र में वर्ष 2005 में बाघों की संख्‍या 390 बताई गई है। इस रिपोर्ट से साफ जाहिर हो गया कि शेष 323 बाघ कहा चले गये। इससे साफ जाहिर है कि बाघों को लेकर एक बड़ा गिरोह मप्र में काम कर रहा है जिसका चक्रव्‍यूह तोड़ने के लिए राज्‍य सरकार किसी भी स्‍तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं कर रही है। 
        मप्र में 9 नेशनल पार्क और 25 अभ्‍यारण्‍य हैं। इन अभ्‍यारण्‍यों के लिए केंद्र औ राज्‍य सरकार करीब 40 करोड़ से अधिक का फंड वन्‍य प्राणियों की सुरक्षा के लिए मुहैया करा रही है। इसके बाद भी वन्‍यप्राणियों की संख्‍या लगातार घट रही है। चौंकाने वाले तथ्‍य तो यह है कि वन्‍य अभ्‍यारण्‍यों में भी शिकारी पहुंच गये हैं, जो कि बाघों का शिकार करने की कला में ऐसे माहिर है कि वे शिकार भी कर रहे हैं और उसके प्रमाण भी नहीं छोड़ रहे हैं। एक अन्‍य रिपोर्ट के अनुसार 1989 से 2010 के बीच 13 बाघों का शिकार हुआ और वर्ष 2012 में बढ़कर इसकी संख्‍या 24 हो गई। अभ्‍यारण्‍यों को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर पर्यटकों की आवाजाही पर रोक लगा दी है। यह याचिका प्रयत्‍न संस्‍था के अजय दुबे ने लगाई है। इसके चलते मप्र समेत पूरे देश के अभ्‍यारण्‍यों पर पर्यटकों की आवाजाही पर रोक लग गई है। इस मामले को लेकर मप्र के सीएम ने आपत्ति जाहिर की है, तो केंद्र सरकार ने भी उच्‍चतम न्‍यायालय में आवेदन लगाकर अभ्‍यारण्‍यों में पर्यटकों पर रोक लगाने पर नाराजगी जाहिर की है। अब अदालत को तय करना है कि अभ्‍यारण्‍य में पयर्टक प्रवेश कर पायेंगे या नहीं। फिलहाल तो वन विभाग ने रोक लगा दी है। इससे पर्यटन व्‍यवसाय प्रभावित होने की बाते कहीं जा रही है। इससे भी हटकर बाघों के बचाने पर जितना जोर राज्‍य सरकार को देना चाहिए उस दिशा में प्रयास नहीं हो रहे हैं। इससे हम मप्र वासी टाइगर स्‍टेट का जो तमंगा लगाये घूम रहे हैं वह हमसे छिनता जा रहा है, जो कि बेहद चिंता का विषय है। इस दिशा में सरकार और विपक्ष को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

EXCILENT BLOG