मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को लेकर हर समय कोई न कोई राजनीतिक कयासबाजी चलती ही रहती है। कभी उनके चिर-परचित विरोधी हमला बोलते हैं, तो कभी उनके निकट रहने वाले उनकी भूमिका पर सवाल खड़े करते हैं। इसके बाद भी दिग्विजय सिंह चर्चा के घेरे से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। कोई आठ सालों से केंद्र की राजनीति में कदम-ताल कर रहे दिग्विजय सिंह बार-बार कह चुके हैं कि अब वे केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बनकर रहेंगे, लेकिन उनकी मप्र में बढ़ती राजनीतिक रूचि से उनके विरोधी विश्वास नहीं करते हैं और समर्थक असमंजस्ा में रहते हैं। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तहलका नामक पत्रिका के 15 अगस्त के अंक में साफ-तौर पर कहा है कि अब वे मप्र की राजनीति नहीं करेंगे। उन्होंने अपने साक्षात्कार में कहा है कि ''मैं एक बात साफ कर दूं कि मैं अब कभी भोपाल की राजनीति में नहीं लौटूगा, बल्कि केंद्र की राजनीति में ही रहूंगा। मप्र में राज्य स्तरीय नेता है, जो अपना काम कर रहे हैं।''
दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2003 में जब 10 साल का शासन करने के बाद पराजय का स्वाद चखा था तब कहा था कि वे दस साल तक कोई पद नहीं लेंगे। इसके बाद वे कांग्रेस महासचिव बने। जब-तब भोपाल की इंडियन कॉफी हाउस में पत्रकारों से गपशप करने पहुंचने वाले दिग्विजय सिंह ने अनौपचारिक चर्चा के बाद स्वीकार किया था कि उन्होंने चुनाव में पराजय के बाद जो कहा था उस पर अमल किया। संगठन में काम करने के लिए कभी भी मना नहीं किया था, बल्कि सत्ता का कोई पद लेने से इंकार किया था, जिस पर आज भी कायम हूं और न ही चुनाव लड़ा। दस साल का संयास का समय वर्ष 2013 में समाप्त हो रहा है उसके बाद आलाकमान कहेंगा, तो लोकसभा चुनाव लड़ूगा। निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह के बयानों को लेकर भारी विवाद दिल्ली से लेकर भोपाल तक मचा रहता है।
इन दिनों क्यों हैं विवादों में :
दिग्विजय सिंह इन दिनों इंदौर की राजनीति को लेकर विवादों में हैं। उन पर भाजपा सांसद सुमित्रा महाजन ने साफ-तौर पर आरोप लगाया है कि उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय को बढ़ावा दिग्विजय सिंह सरकार में ही मिला है। इस बयान पर कांग्रेस सांसद सज्जन सिंह वर्मा ने सहमति जाहिर करते हुए यह तक कह दिया है कि दिग्विजय ने विजयवर्गीय को ताकतवर बनाया और हमें कमजोर किया। जिसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी मालवांचल में उठा रही है। दिग्विजय सिंह कांग्रेस और भाजपा की राजनीति के निशाने पर है उनके विरोधी उन्हें अब फिर से मप्र में सक्रिय होने पर सवाल खड़े कर रहे हैं, तो भाजपा भी समय का इंतजार कर रही है।
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