उच्च न्यायालय जबलपुर की तरफ से समय-समय पर सरकार को फटकार तो मिलती रहती है पर हाईकोर्ट ने 17 अगस्त, 2012 को ऐसा दूरगामी फैसला सुनाया जो कि जाने कितने परिवारों में खुशियों की बयार आ गई है। इस फैसले के तहत अब किडनी के प्रत्यारोपण में आ रही कानूनी अड़चनों को आसानी से दूर किया जा सकेगा तथा कोई भी शुभचिंतक अपने मरीज को किडनी दान दे सकता है। यह शुभचिंतक इच्छा अनुसार किडनी का दान कर सकेगा। कोर्ट ने अपने आदेश में जिला मेडीकल बोर्ड को मरीज के हक में तत्काल प्रभाव से एनओसी प्रदान की एवं औपचारिकताएं पूर्ण करने के निर्देश दिये हैं। कोर्ट को यह मामला इसलिए सुनना पड़ा कि जबलपुर जिले के भेड़ाघाट पंचवटी निवासी और किडनी मरीज प्रतीक गुप्ता के मामले में आरएस झा की एकलपीठ ने सुनाया है, क्योंकि प्रतीक को उनका परिचित किडनी देने को तैयार था, लेकिन अस्पताल के कानून आनाकानी कर रहे थे। अब कोर्ट ने इस प्रक्रिया का खुलासा कर दिया है। इस मामले को अदालत में जोरदार तरीके से पैरवी करने वाली अधिवक्ता स्मिता अरोणा ने सुप्रीमकोर्ट के मामलों को भी कोर्ट में प्रस्तुत किया और किडनी मरीज को राहत देने के पक्ष में विभिन्न दलीले दी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में एक परिवार के सदस्य का ब्लेडग्रुप मैच न करने की सूरत में किसी अन्य करीबी शुभचिंतक या रिश्तेदार की किडनी उसकी इच्छा होने पर प्रत्यारोपित की गई है। अंतत: कोर्ट ने वकील के तर्कों को स्वीकार किया एवं सरकारी वकील से सरकार का पक्ष जानना चाहा, तो उनकी भी सहमति मिली। इसके साथ ही अब मप्र में कोई भी शुभचिंतक किसी को अपनी किडनी दान कर सकेगा। निश्चित रूप से न्याय के इतिहास में यह अपने आप में एक अलहदा व मानवीयता पूर्ण फैसला सुनाया है, जो कि दूरगामी साबित होगा। इस फैसले से जाने कितने परिवारों की खुशिया लौट आई है। प्रतीक गुप्ता परिवार में तो खुशिया फिलहाल आ ही गई है, क्योंकि उनके घर के चिराग की दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं, जो कि डायलिसिस पर जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है।
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