''राई नृत्य में मशगूल महिलाएं'' |
मध्यप्रदेश का अति पिछड़ा इलाका बुंदेलखंड राई नृत्य में अपनी पहचान अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बना चुका है। कई बड़े समारोह में आज भी राई नृत्य के आयोजन गरिमा के साथ हो रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे राई नृत्य के अर्थ बदलने लगे हैं, जो नई उम्र की नृत्यांगनाएं राई के क्षेत्र में आ रही है, वे नृत्य के साथ-साथ नवधनाढय को आकर्षित करने के लिए कोई भी कदम आगे बढ़ा देती हैं। इसके चलते राई नृत्य धीरे-धीरे जिस्म फरोशी का माध्यम भी बनता जा रहा है, जो कि संस्कृति और परंपरा के लिए शर्मसार है। मप्र के सागर जिले में सबसे ज्यादा राई नृत्य की नृत्यांगनाएं अपने कौशल का प्रदर्शन कर रही हैं। इस जिले में पथरिया, हबला, लुहारी, फतेहपुर, राहतगढ़, चौकी, कोरासा, मनेशिया, लिधोरा सहित आदि गांवों में राई की नृत्यांगनाएं निवास करती हैं। यह नृत्यांगनाएं लंबे समय से राई नृत्य में डूबी हुई हैं। बेडि़या समाज की महिलाएं आज भी रूढि़वादी परंपराओं में जकड़ी हुई है, जो कि आज भी अपना जीवनयापन का आधार और पुश्तैनी व्यवसाय राई नृत्य मानती हैं निश्चित रूप से राई नृत्य की पहचान कई स्तरों पर है, लेकिन धीरे-धीरे इस नृत्य में कुछ ऐसे कीटाणू प्रवेश कर गये हैं जिसकी वजह से राई नृत्य को भी व्यवसाय की तरह देखा जाने लगा है। राई नृत्य बुंदेलखंड की शान है, लेकिन सरकार ने कभी भी इस नृत्य के बढ़ावा पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि जो परंपरा है उसी को विकसित होने दिया। आज भी सरकारी और गैर सरकारी आयोजनों में शान के साथ राई नृत्य कराया जाता है। जब बुंदेलखंड की युवतियां राई नृत्य करती है, तो एक अलग ही शमा बंध जाता है।
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