जिद और जुनून अगर किसी भी लक्ष्य के लिए कर लिया जाये, तो फिर उसे पाना कोई बड़ी कठिन राह नहीं होती है। यही रास्ता सिमाला प्रसाद ने भी चुना। रात-दिन की मेहनत और लगातार किताबों की जिंदगी में डूबे रहने से अंतत: आईपीएस बन ही गई। यह मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात है कि इस सरजमी की बच्ची ने अपने दम-खम पर आईपीएस पाई है। सिमाला ने आईपीएस की राह तक पहुंचने के लिए किसी भी कोचिंग संस्थान का सहारा नहीं लिया, बल्कि सेल्फ स्टडी को सफलता की सीढ़ी माना। भोपाल के बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी से उन्हें सोशियोलॉजी में पीजी के दौरान गोल्ड मैडल भी मिला था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जोसफ कोएड स्कूल ईदगाह हिल्स में हुई उसके बाद स्टूडेंट फॉर एक्सीलेंस से बीकॉम एवं बीयू से पीजी करने के बाद पुलिस अधिकारी बनने का सपना देखा और इसकी शुरूआत पीएससी की परीक्षा से की। संयोग देखिए कि पहली परीक्षा में ही पीएससी में सिलेक्ट हो गई और उनकी पहली नियुक्ति डीएसपी के रूप में हुई। सिमाला को सबसे पहले रतलाम में सीएसपी बनाया गया। यहां पर बड़े अफसरों ने उनकी घोर उपेक्षा की तथा कई बार अपमानित किया। इससे दुखी होकर सिमाला ने एक दिन तय किया कि वे अब आईपीएस बनेगी। रात-दिन नौकरी करते हुए अपनी शिक्षा-दीक्षा को बढ़ाते हुए सिमाला ने सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू की और वर्ष 2011 में उनका आईपीएस में चयन हो गया और अब वे हैदराबाद स्थित इंडियन पुलिस सर्विस अकादमी में ट्रेनिंग ले रही है। सिमाला के माता-पिता भोपाल में हैं। मां जानी-मानी लेखिका पदमश्री मेहरूनिशा परवेज है, तो पिता पूर्व आईएएस अधिकारी भागीरथ प्रसाद हैं। सिमाला की कामयाबी का राज उनके माता-पिता नहीं बल्कि उनकी अपनी शिक्षा-दीक्षा के प्रति जुनून और जज्वा है। हर आईएएस पिता की इच्छा होती है कि उसका पुत्र भी आईएएस बने, लेकिन ऐसा होता नहीं है फिर भी पूर्व आईएएस भागीरथ प्रसाद की बेटी सिमाला प्रसाद ने वह करिश्मा कर दिखाया है, जो कम ही बच्चियां कर पाती है।
''जय हो मप्र की''
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