गुरुवार, 24 मई 2012

86 साल बाद मप्र की 23 लोकभाषाओं का सर्वे

हर हाल में परंपरा को बनाये रखने की जिद कायम
        लोकभाषाओं का अस्तित्‍व लगातार समाप्‍त हो रहा है। मप्र में तो लोकभाषाएं अंतिम सांसे गिन रही है। अंग्रेजी और हिन्‍दी ने इन लोकभाषाओं को मटिया-मेट करने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी है। इसके बाद भी लोकभाषाओं को बचाने के लिए कई स्‍तरों पर काम हो रहा है। राज्‍य में आदिवासी लोक कला परिषद ने प्रदेश की विभिन्‍न आदिवासियों की भाषा, रहन-सहन, गीत, कथाओं और जीवन शैली पर काम किया है। यहां तक कि राज्‍य की लोकभाषाओं के गीतों का बॉलीबुड में भी उपयोग हुआ है। अब 86 साल बाद लोकभाषाओं को सहेजने और उनके विकास के लिए केंद्र सरकार की पहल पर गुजरात की भाषा शोध एवं प्रकाशन संस्‍थान बड़ोदा ने लोकभाषाओं को बचाने का अभियान छेड़ा है। इसके तहत मध्‍यप्रदेश की 23 भाषा और बोलियों का सर्वेक्षण किया जा चुका है तथा वर्तमान में एक दर्जन भाषाओं के सर्वे पर काम किया जा रहा है। इसके पीछे का मकसद यह है कि लोग भाषाओं में बच्‍चों को उन्‍हीं की भाषा में प्राइमरी स्‍तर पर पढ़ाई कराना है। 
हमें कोई देख न ले
          लोकभाषाओं के सर्वे के दौरान आदिवासियों के गीत, कथाएं, जीवन शैली, रंगों, संबंधों, जगह-स्‍थान तथा समय के साथ-साथ इतिहास, भूगोल को ध्‍यान में रखकर भाषाओं के अस्तित्‍व की सच्‍चाई का पता लगाया जा रहा है। मध्‍यप्रदेश में यह काम 50 लोगों की टीम कर रही है। अभी तक इस टीम ने 23 भाषाओं का सर्वे पूरा कर लिया है। जिन भाषाओं का सर्वे पूरा हो गया है उनमें बघेली, भिलाली, गौंड़ी, जादौ, माटी, बंजारी, भदावरी, भीली, ब्रज, बुंदेली, मालवी, नहाल, निमाड़ी, पंचमहली, पवारी, रजपूती, सहरयायी, सिकरवारी, कछवाहघारी, तोरधारी, जटवारी, कोरवी, कोरकू, लोधधारी जैसी भाषाओं का सर्वे पूरा हो चुका है, जबकि हलवी, कोल, खेरा, वेगानी, कंजर, मवासी, वडडर, पाली, लोधी के सर्वेक्षण का काम शुरू किया जा रहा है। दिलचस्‍प यह है कि लंबे समय बाद मप्र की लोकभाषाओं के सर्वे का कार्य हो रहा है। राज्‍य में भी कई स्‍तरों पर बोलियों को लेकर कार्य हुए हैं, लेकिन जिस तरह से सर्वे अब हो रहा है वैसा काम अभी तक नहीं हुआ है।

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