गुरुवार, 5 मई 2011

अनाथ बच्‍चों का दर्द समझा

अनाथ, असहाय, विकलांग बच्‍चों के दर्द की पीडा पर हर कोई मरहम नहीं लगाता है। आज भी राज्‍य के कई हिस्‍सों में अनाथ और असहाय बच्‍चे इधर-उधर मेहनत करके अपना पेट भर रहे हैं। इन बच्‍चों के लिए कहीं कहीं सामाजिक संगठनों ने आश्रम खोले हैं। अगर राज्‍य सरकार अनाथ बच्‍चों की परवरिश पर गोर करें तो चौंकाने वाली बात होती है। अप्रैल 2011 के अंतिम सप्‍ताह में शिक्षा विभाग ने वर्षो बाद एक अच्‍छा निर्णय लिया है, जिसकी जितनी सराहना की जाये वह कम होगी। इस विभाग ने आदेश जारी करके कहा है कि अनाथ बच्‍चों को सरकारी होस्‍टलों में पहले प्रवेश दिया जायेगा। इस आदेश की कापी संभागीय संयुक्‍त संचालकों, जिला शिक्षा अधिकारियों और कलेक्‍टरों को भेजी गई है। सरकारी आवासीय होस्‍टलों में न सिर्फ प्रवेश मिलेगा, बल्कि ग्रीष्‍मावकाश में भी उन अनाथ बच्‍चों को आवास की सुविधा रहेगी। स्‍कूल में पडने वाले बच्‍चों को दो महीने छोडकर दस महीने की सुविधा रहती है, लेकिन अनाथ बच्‍चों के लिए यह सुविधा पूरे सालभर रहेगी। इन बच्‍चों को मुक्‍त खान-पान की व्‍यवस्‍था भी कराई जा रही है। निश्चित रूप से मध्‍यप्रदेश के शिक्षा विभाग ने एक उल्‍लेखनीय कदम उठाया है, इस निर्णय की लगातार मॉनीटिंग करने की जरूरत है, क्‍योंकि अनाथ बच्‍चों का कोई नहीं होता है और सरकारी होस्‍टल के कर्मचारी भी उन्‍हें उपेक्षित नजर से देखते हैं, इसलिए आवश्‍यकता इस बात की है कि अनाथ बच्‍चों की परवरिश पर पूरी नजर रखी जाये और उनके विकास के लिए हर संभव मदद दी जाये ताकि वे भी समाज की मुख्‍य धारा में रहकर अपना जीवन जी सके।

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