मंगलवार, 17 मई 2011

बांध विस्‍थापितों के लिए फिर मैदान में मेघा पाटकर

            नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेघा पाटकर को सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने फिर से बांध विस्‍थापितों की लडाई छेडने का हथियार दे दिया है। इससे मेघा पाटकर नये सिरे से नर्मदा इलाके में विस्‍थापितों के पक्ष में खडी हो गई है। वैसे तो सुश्री पाटकर करीब दो दशक से नर्मदाघाटी से जुडे विस्‍थापन को लेकर जमीनी संघर्ष कर रही हैं, उन्‍होंने विस्‍थापितों के पक्ष में जोरदार लडाई लडी है, कई बार उनकी टकराहट सरकार से सीधी हुई है, कांग्रेस सरकार में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह से उनके रिश्‍ते बेहतर थे, लेकिन तब भी वे बडवानी से लेकर भोपाल तक आंदोलन करने में पीछे नहीं रहती थी, उस दौरान अब सेवानिव़त्‍त हो चुके आईएएस अधिकारी शरदचंद्र बेहार भी एक मध्‍यस्‍थ की भूमिका अदा करते थे। अब स्थितियां बदली हुई हैं। भाजपा सरकार को तो मेघा पाटकर और उसका आंदोलन एक पल भी रास नहीं आता है। 
कोर्ट से मिली मेघा को नई संजीवनी : 
        सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने पिछले सप्‍ताह नर्मदाघाटी से विस्‍थापित होने वाले परिवारों के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिसमें नर्मदा बांध में विस्‍थापितों को दो हैक्‍टेयर जमीन मिलेगी। यह फैसला इंदिरा सागर, महेश्‍वर, मान तथा आदि परियोजनाओं पर भी लागू होगा। इस फैसले से खुश मेघा पाटकर कहती हैं कि विस्‍थापितों के लिए मध्‍यप्रदेश सरकार  की पुनर्वास नीति में जमीन के बदले जमीन, न्‍यूनतम दो हैक्‍टेयर का स्‍पष्‍ट प्रावधान है फिर भी आज तक यह अधिकार किसी को भी नहीं दिया है। इसके चलते विस्‍थापित दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं। विस्‍थापित इस बात से खुश है कि उन्‍हें अब जमीन मिल जायेगी, लेकिन नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण का कहना है कि बांध से विस्‍थापितो का पुनर्वास हो चुका है, जबकि हकीकत यह है कि विस्‍थापित होने वाले लोग आज भी अपने ही घर में रह रहे हैं और जमीनों पर  खेती कर रहे हैं। मैदानी कब्‍जा आज भी डूब प्रभावितों का है। अब नर्मदाघाटी इन लोगों से जमीन खाली कराने के लिए 90 दिन का सूचना पत्र भी दे रही है। 
भूख, गरीबी, अपमान यानि विस्‍थापित : 
           जब बडे बांधों और परियोजनाओं का निर्माण होता है, तो उससे विस्‍थापन की एक नई समस्‍या खडी हो जाती है, इसी के साथ ही फिर शुरू होता है, विस्‍थापित लोगों की भूख, गरीबी और अपमान का सिलसिला। यह सच है कि जब जब लोगों को उनके मूल स्‍थान से हटाया जाता है, तो उनके सामने समस्‍याओं का एक नया आकाश खुल जाता है और दुनिया उजड जाती है। विस्‍थापन का अपना दर्द है। इन विस्‍थापितों को मुआवजा तो भरपूर मिलता है, लेकिन जमीन और रोजगार की कभी व्‍यवस्‍था नहीं होती है, इसके चलते विस्‍थापन के सामने भूख, गरीबी से लडने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं रहता है। यह सिलसिला अनबढत जारी है। लाखों की संख्‍या में विस्‍थापित आज भी दर दर भटक रहे हैं, कुछ लोगों ने शहरों में पलायन करके अपनी जिंदगी नये ढंग से जीना शुरू कर दिया है, तो किसी को अपना पुराना आशियाना ही रास आ रहा है। विस्‍थापन एक बडा सवाल है, इसक हल खोजने के लिए कई स्‍तर पर चर्चाएं हुई है, इसके बाद भी कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। नर्मदा बांध से विस्‍थापित हजारों लोग आज भी अपना दर्द लिए भटक रहे हैं, इनकी पीडा पर मरहम लगाने का काम मेघा पाटकर ने किया है। बार बार कोर्ट की समझाइश के बाद भी राज्‍य सरकार विस्‍थापितों का दर्द दूर नहीं कर पा रही है। 
मेघा फिर मैदान में :    
         नर्मदा बचाओं आंदोलन की नेत्री मेघा पाटकर लंबे समय बाद फिर से विस्‍थापितों की लडाई लडने के लिए मैदान में उत्‍ार आई हैं और उन्‍होंने बडवानी में मोर्चा संभाल लिया है। वे कहती हैं कि नर्मदाघाटी क्षेत्र में डूब से प्रभावित होने वालों का पुनर्वास आज तक नहीं किया गया है। एनव्‍हीडीए लगातार झूट बोल रहा है। इस बार मेघा पाटकर को आंदोलन करने में पसीना आ जायेगा, क्‍योंकि भाजपा सरकार किसी की स्थिति में मेघा पाटकर को फिर से मैदानी मोर्चा संभालने नहीं देगी। इसकी रणनीति बन रही है, पर मेघा पाटकर भी चुप बैठने वाली नहीं है, अब तो उसके साथ मैदान में खडे होने वाली हस्तियों की संख्‍या लंबी फेहरिस्‍त हैं। मेघा पाटकर और भाजपा सरकार किसी भी दिन आमने सामने का मोर्चा संभाल सकते है।
फिर मोर्चे पर : मेघा पाटकर एक बार फिर से मैदान में उतरी 

चुप नहीं बेढूगी : मेघा पाटकर अपने तींखे तेवर के लिए जानी जाती है।
 
 

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