विकास को तरसते बुंदेलखण्ड में नई सुबह की दस्तक हुई है। पहली बार बुंदेलखण्ड में एक बडे कारखाने को प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह 20 मई को देश को समर्पित करेंगे । इस कारखाने की नीव 16 साल पहले कांग्रेस राज्य में ही पूर्व प्रधानमंत्री पी0वी0 नरसिंहराव ने रखी थी आज बीना रिफायनरी की शुरूआत हो रही है। निश्चित रूप से बुंदेलखण्ड के लिए यह एक नई शुरूआत है इससे इलाके में विकास का एक नया पहिया तेजी से घूमेंगा। कोई दो दशक से बुंदेलखण्ड में बडे उद्योग स्थापित नहीं हुए थे और न ही जो पारंपरिक उद्योग थे उन पर ध्यान दिया गया। जिसके चलते बुंदेलखण्ड लगातार पिछडता ही गया। यहां तक बुंदेलखण्ड का बीडी उद्योग भी सिमटकर रह गया है1 क्षेत्र से लगातार रोजगार के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं। दुखद पहलू यह है कि बुंदेलखण्ड से गरीब और भुखमरी के चलते युवतियां भी बेची जा रही थी, जो कि सबसे दुखद पहलू है, इसके बाद ही कांग्रेस और भाजपा के स्थापित नेताओं ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई और न ही इलाके में रोजगार के साधन विकसित करने पर विचार किया। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने बुंदेलखण्ड पैकेज देकर विकास की एक नई रोशनी दिखाई। इस पैकेज पर राजनीति तो खूब हो रही है, लेकिन कांग्रेसी नेताओं को इतनी फुर्सत नहीं है कि वे जमीन पर जाकर यह देख सके कि आखिरकार पैकेज की राशि का उपयोग क्या हो रहा है । अब इस मुहिम को इलाके की जमीन से जुडे पत्रकार दीपक तिवारी ने अपने हाथ में लिया है और उन्होंने एक प्रयास शुरू किया है। वैसे भी बुंदेलखण्ड में विकास की छट-पटाहट न तो नेताओं में और न ही आम आदमियों में नजर आती है। भाजपा सरकार के दो बडे मंत्री गोपाल भार्गव और जयंत मलैया से उम्मींदे थी, लेकिन सागर में एक मेडीकल कॉलेज के अलावा कोई बडी सौगात क्षेत्र में दूर-दूर तक नजर नहीं आती है। बुंदेलखंड के नाम पर राजधानी में कई पत्रकार राजनेताओं और नौकरशाहों के सामने बडी बडी बातें करते हैं, लेकिन पिछडे और विकास से दूर हो रहे इलाके पर सवाल तक नहीं करते हैं। निश्चित रूप से बीना रिफायनरी बुंदेलखण्ड के लिए नई सौगात है। यह इकाई 12208 करोड लागत की है, जो कि भारत पेटोलियम कॉर्पोरेशन, ओमान आयल कार्पोरेशन तथा अन्य कंपनियों की भागीदारी से बनी है। बुंदेलखंड में कांग्रेस ने तो अपनी जमीन तलाशने के लिए नये सिरे से प्रयास शुरू कर दिये हैं, लेकिन इसमें कई बधाये हैं, कांग्रेस का जमीन आधार खत्म सा हो चुका है। ऐसे नेताओं पर कांग्रेस ने दाव खेल रही है, जो कि अपने क्षेत्र में ही पहचान खो चुके हैं और फिर से 2013 में चुनाव लडने के लिए पार्टी नेत़त्व के आगे-पीछे घूम रहे हैं। ऐसे नेताओं से कांग्रेस दूर रहेगी तभी कोई भला हो पायेगा अन्यथा कांग्रेस कितनी भी मेहनत कर ले ज्यादा सफलता मिलने की उम्मीद नगण्य ही है। बेहतर है कि नये चेहरो पर दाव लगाये। दूसरी ओर भाजपा की जमीन पूरी तरह तैयार है और वे लगातार बुंदेलखण्ड में अपना अभियान चलाये हुए हैं यानि वर्ष 2013 की जंग बुंदेलखण्ड से ही लडी जायेगी अब वहां की जनता को तय करना है कि उनका कौन भला करेगा ।
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