लगातार बीमारू और पिछडा राज्य की संज्ञा से नबाजे जाने के बाद भी मध्यप्रदेश के राजनीतिक दलों की नींद न खुलना आश्चर्यजनक लगता है। केंद्र सरकार के सामने अपने हको की बात करने के लिए ताकत के साथ राजनेता सामने नहीं आ रहे हैं, बल्कि अपने अपने इलाकों तक सीमित हैं। इन दिनों दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस में मध्यप्रदेश से जुडे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, उनका अपना एक मुकाम भी दलों में बना हुआ है, इसके बाद भी राज्य के विकास को लेकर एकमत नहीं हैं। अपने अपने ढंग से समय के अनुसार राजनीतिक लाभ लेने के लिए जरूर बातें की जाती हैं, लेकिन राज्य के समग्र विकास पर कोई चिंतित नहीं हैं। यही वजह है कि पांच दशक बाद भी प्रदेश रेल और विमान सेवाओं में आज भी पिछडा हुआ है। अभी तक हम एक ही स्थान पर अंतर्राष्टीय विमानतल को आकार नहीं दे सकें हैं। इसी के साथ ही औ़द्योगिक विकास, रोजगार की संभावनाए, क़षि उत्पादन, सूचना प्रौद्योगिकी, मानव विकास सहित आदि पहलूओं पर भी अन्य राज्यों से लगातार पिछड रहे हैं। राज्य में एक नई परंपरा और विकसित हो गई है कि केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार होने से केंद्र और राज्य के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाने की प्रव़त्ति तेजी से बढी है। यहां तक की विकास को लेकर कोई सार्थक पहल भी नहीं हो रही है। हकीकत से मुंह मोडना राजनेताओं की फितरत सी बन गई है। यह भी कहना उचित नहीं होगा कि सारे मामलों में राजनेता ही दोषी है, बल्कि इस प्रदेश के बुद्विजीवी, समाजसेवी, अखबारनबीसी और जागरूक नागरिक भी राज्य के विकास में बढ-चढकर हिस्सा नहीं ले रहे हैं। इसके अलावा राज्य के लोगों में निर्भरता की प्रव़त्ति भी बनी हुई है, जिसके चलते सब लोग हर बात के लिए राज्य सरकार की तरफ देखते हैं और अपने मन से कुछ करना नहीं चाहते है, इसके चलते प्रदेश का विकास कैसे होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। कांग्रेस और भाजपा को अपनी राजनीति करने का हक है, लेकिन जो छोटे दल है, वे भी विकास के पहलूओं को लेकर कोई गंभीर नहीं, बल्कि अपने संसाधन और सीमित लोगों का रोना ही रोते हैं, यह दल भी आगे बढकर विकास और उसके अवरोधक चिन्हों को फोकस तक नहीं करते है और न ही वे कोई राजनीतिक अपना फलक तैयार कर पा रहे है, सिर्फ कार्यालय में सिमटकर बयानबाजी तक सीमित रह गये हैं। पांच दशक के सफर में विकास का पहिया तो चला है, लेकिन जिस गति से राज्य को तेज दौडना था उसमें कामयाबी नहीं मिली है, अभी वक्त खत्म नहीं हुआ है, एक नया अध्याय शुरू किया जाना चाहिए जिसमें प्रदेश के बहु-आयामी विकास की परिकल्पनाएं की जाये। भाजपा सरकार ने भविष्य की योजनाओं को लेकर सपने तो बुने है, इसकी शुरूआत वर्ष 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती ने पंच-ज की शुरूआत की थी और उस अभियान को स्वर्णिम राज्य तक लाने का इरादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देखा है, लेकिन अभी भी इस दिशा में जिस रफतार से योजनाओं को आकार लेना चाहिए वैसी लडाकू प्रव़त्ति नजर नहीं आ रही है, जिसकी मध्यप्रदेश को सख्त जरूरत है। *जय हो मध्यप्रदेश की*
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