शुक्रवार, 6 मई 2011

बच्‍चों पर कभी नीति बनेगी

                मध्‍यप्रदेश सरकार हर वर्ग के लिए नीतियां बनाती है, लेकिन बच्‍चों पर आज तक नीति नहीं बनी है और न ही इस दिशा में सरकार विचार कर रही है। केंद्र की पहल पर राज्‍य में बाल अधिकार संरक्षण आयोग बना है, यह आयोग भी बच्‍चों की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं कर पाया है। बच्‍चों को लेकर शिक्षा में उपेक्षा, उत्‍पीडन, कुपोषण, बाल अपराध, स्‍वास्‍थ्‍य का परीक्षण न होना, मनोवैज्ञानिक अध्‍ययन का अभाव, शिशु म़त्‍युदर, बाल विवाह, लिंगानुपात में कमी सहित आदि समस्‍याएं सामने आती रही हैं इसके बाद भी राज्‍य सरकार ने बच्‍चों को लेकर अभी तक किसी प्रकार की नीति बनाने की पहल नहीं की है। राज्‍य में महिला एबं बाल विकास विभाग करीब  दो दशक से कार्य कर रहा है, लेकिन फिर भी इस विभाग की नजर बच्‍चों पर तो है, पर जो प्रयास किये जाने चाहिए उस तरह के परिणाम आज तक नहीं मिल पाये है।
             मप्र में 2006 में बच्‍चों की संख्‍या 2 करोड 40 लाख थी, जो 2010-11 में  30 करोड तक पहुंच जाएंगी। हाल ही में चाइल्‍ड राइटस ऑब्‍जरवेटरी (सीआरओ) के आलोक रंजन चौरसिया ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें वर्ष 2009 तक के  आधार पर बच्‍चों की शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, पोषण, अपराध, शिशु म़त्‍युदर, बाल सुरक्षा आदि मुददों पर अध्‍ययन किया है।  रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में बच्‍चों की स्थिति में देश में अभी भी पिछडे पांच राज्‍यों में शामिल है। पिछले 40 वर्षो में गुजरात  पिछडेपन से निकलकर सक्षम विकसित राज्‍य की स्थिति में आ गया, जबकि मप्र वहीं का वहीं है। इसका प्रमुख कारण प्रदेश स्‍तर पर बच्‍चों के विकास के लिए कोई नीति नहीं बनाना है। केंद्र स्‍तर की नीतियां ही प्रदेश में लागू हो रही है। इसका भी पर्याप्‍त क्रियान्‍वयन नहीं होने से बच्‍चों के हालात दिन व दिन खराब होते जा रहे है। 
           रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्‍यों के अनुसार प्रदेश में बच्‍चों पर होने वाले अपराधों पर आज भी पूरे देश में अपराधों का 43 फीसदी  है। राष्‍टीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो 2007  तक प्रदेश में 4290 अपराध दर्ज किये जब कि मप्र पुलिस रिकार्ड 2008 के अनुसार बच्‍चों पर 5173 अपराध दर्ज हुए हैं। इनमें सबसे ज्‍यादा मामले नाबालिंग ल‍डकियों के साथ बलात्‍कार के सामने आये है। निश्चित रूप से अबौध बालिकाओं के साथ बलात्‍कार के मामले भाजपा सरकार में बढे हैं। विशेषकर महानगरों और शहरों में इसका बढता ग्राफ चौंकाने वाला है। मां-बाप अपनी बालिकाओं को अकेले छोडकर जाने पर विश्‍वास बंद कर दिया है, जिन बालिकाओं के साथ वर्ष 2005 और 2006 के बीच बलात्‍कार हुए थे, उन परिवारों ने भोपाल ही छोड दिया है, इससे साबित होता है कि बालिका के मनोभावों पर जो असर पडा था उसको लेकर परिवारजनों को घर और द्वार व अपना इलाका ही छोडकर जाना पडा। इस दिशा में न तो सरकार ने कोई कदम उठाये और न ही स्‍वयंसेवी संगठनों ने कोई विशेष अभियान चलाया, सब मूकदर्शक बने रहे। आज भी बालिकाओं के साथ बलात्‍कार की घटनाएं हो रही हैं, जिससे हर राज्‍य के बाशिंदे का सिर शर्म  से झुक रहा है लेकिन महिला एवं बाल विकास राज्‍यमंत्री श्रीमती रंजना बघेल को कोई चिंता नहीं है, उन्‍हें तो अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढाने  में दिलचस्‍पी है। इसी प्रकार एक और गंभीर समस्‍या शिक्षा को लेकर है। आज भी शैक्षणिक स्थिति में मप्र का 35 राज्‍यों में 26 वां स्‍थान है। प्राथमिक स्‍तर पर 60 प्रतिशत बच्‍चे स्‍कूल जाते है। वर्ष 2010 में हुए एक सर्वे के अनुसार 10 लाख बच्‍चे आज भी बाल श्रमिक है। बच्‍चों में टीकाकरण का आंकडा 30 प्रतिशत से उपर नहीं जा पा रहा है, शिशु म़त्‍युदर पर भी चौंकाने वाले आंकडे सामने आ चुके हैं। हाल ही में जनगणना के आंकडो में भी बालिकाओं की संख्‍या घटने की जानकारी उजागर हो चुकी है, इसके बाद भी अगर सरकार की नींद नहीं खुल रही है, तो फिर भी 'जय हो मध्‍यप्रदेश की'     
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