कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का मॉडल युवा कांग्रेस में खूब चर्चा का विषय है, पर मध्यप्रदेश में युवक कांग्रेस संगठन चुनाव और शपथ से पहले युवा इंकाइयो ने जो धमाल पार्टी कार्यालय में मचाया है, उससे तो साबित हो गया कि राहुल गांधी का मॉडल युवाओं ने कितना गले लगाया है। 3 0 मई को युवक कांग्रेस पदाधिकारियों का शपथ समारोह था, पर उससे पहले युवा कांग्रेस अध्यक्ष प्रियव्रत सिंह की मौजूदगी में लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष आपस में भिड गये। जमकर लात-घूसे चले और एक-दूसरे पर कुर्सिया फेंकी गई। अब सारे मामले की जांच कराने की बात प्रियव्रत सिंह कर रहे हैं और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को यह अनुशासनहीनता पसंद नहीं आई है, वे भी कार्यवाही की बात कर रहे हैं। मध्यप्रदेश युवा कांग्रेस की दशा और दिशा बदलने के लिए राहुल माडल की खूब चर्चा हो रही है नये चेहरे जोडने के दाबे किये जा रहे है, पर जिस तरह से संगठन चुनाव में नोटो की तूती बोली और भाई-भतीजा बाद खुलकर सामने आया है और अब कार्यालय में ही मारपीट शुरू कर दी। अगर यही राहुल गांधी का मॉडल है, तो फिर भगवान बचाये युवा कांग्रेस को। वैसे भी जब यह घटना सामने आई थी तो पहली टिप्पणी यही जारी हुई कि युवा कांग्रेसियों का तो काम मारपीट करना है और यही उनका कल्चर है। इससे पहले एनएसयूआई की कार्यशैली भी विवादों में आ चुकी है। एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष आकाश अहुजा निलंबित है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में संघ परिवार से जुडे विद्यार्थी परिषद ने अपने पैर जमा लिये हैं पर एनएसयूआई पूरे पर्दे से गायब है। संगठन चुनाव की भूमिका पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। यूवा कांग्रेस में नये नये चुनाव हुए और शपथ से पहले ही अपनी पुरानी कला बाजियां, मारपीट का प्रदर्शन भी हो गया। वाह राहुल गांधी तेरे मॉडल का जवाब नहीं। अब कैसे जुड पायेंगे नये चेहरे।
मंगलवार, 31 मई 2011
बुधवार, 25 मई 2011
फिर केंद्रीय मंत्री निशाने पर
मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी का नेत़त्व न चाहते हुए भी बार बार राज्य से जुडे केंद्रीय मंत्रियों की भूमिका पर सवाल उठाना पड रहा है। अमूमन पार्टी के मुखिया प्रभात झा की मंशा केंद्र सरकार पर तींखे हमले की हमेशा रही है और वे ऐसा कोई राजनीतिक अवसर नहीं छोडते हैं, जब केंद्र सरकार पर प्रहार न करें। यही स्थिति मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है। चौहान ने बार बार केंद्र की उपेक्षा का सवाल उठाकर राज्य की जनता में यह संदेश देने में कामयाब हो गये है कि केंद्र सरकार मध्यप्रदेश के साथ भेदभाव कर रही है। संगठन और सरकार रणनीति के तहत ऐसे समय बयान देते हैं, जब राज्य किसी न किसी संकट से घिरा होता है। तब आम आदमी को एहसास होने लगता है कि बाकई में केंद्र सरकार मध्यप्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। यह सच है कि शिक्षा, उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, सड्क, बिजली, कोयला, रेल सेवा, वायुयान सेवा में मध्यप्रदेश के साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार केंद्र ने किया है, अन्यथा पांच दशक की यात्रा के बाद भी आज भी राज्य के कई इलाकों में रेल सेवा को लोगों ने देखा नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि केंद्र सरकार ने कभी भी उन लोगों को मुख्य धारा से जोडने का प्रयास ही नहीं किया जो कि लंबे समय से रेल व वायुयान सेवा का वेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इसके लिए उन्ा क्षेत्रों के जन प्रतिनिधि भी जिम्मेदार हैं। मालवा, बुंदेलखण्ड, विंध्य के विभिन्न इलाकों में वर्षो बाद भी रेल सेवा का सुख लोगों ने नहीं भोगा है। यह सच है कि मध्यप्रदेश से जुडे कई दिग्गज नेता सभी पार्टियों के केंद्र में मंत्री पद पा चुके हैं, लेकिन उन नेताओं ने भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया जिसकी सजा जनता भुगत रही है।
अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोला है। झा कहते हैं कि मध्यप्रदेश से केंद्र में प्रतिनिधित्व करने वाले चारो केंद्रीय मंत्रियों को राज्य की सात करोड जनता की कोई चिंता नहीं है। इस राज्य से दो केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और कांतिलाल भूरिया और राज्यमंत्री के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया व अरूण यादव है। यह चारो मंत्री अपने अपने इलाकों में सक्रिय उपस्थिति तो दर्ज करा रहे हैं, लेकिन समुचे प्रदेश के लिए कोई बडी योजना नहीं ला पाये हैं। केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते है और वे बार बार पटटे में पक्षपात का आरोप भी लगाते हैं, लेकिन आज तक उन्होंने राज्य के किसी भी हिस्से में जाकर नहीं देखा कि आखिरकार आदिवासियों को पटटे क्यों नहीं मिल रहे हैं। यही हाल अन्य केंद्रीय मंत्रियों का है, जो कि अपने विभाग की केंदीय योजनाओं तक का आकलन नहीं कर रहे है। जबकि दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य के हर हिस्से में दौरा कर सरकार की योजनाओं के न सिर्फ समीक्षाएं कर रहे हैं, बल्कि उसका आकलन भी समय समय पर कर रहे है। चौहान भी केंद्र सरकार पर हमला करने का कोई मौका हाथ से नहीं देना चाहते है। अब इस मुहिम में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा भी शामिल हो गये है। झा ने भी केद्रीय मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। कुल मिलाकर एक बार फिर केंद्र और राज्य के बीच मतभेद की दीवार खडी होने लगी है।
शुक्रवार, 20 मई 2011
विकास को तरसते बुंदेलखण्ड में नई सुबह की दस्तक
विकास को तरसते बुंदेलखण्ड में नई सुबह की दस्तक हुई है। पहली बार बुंदेलखण्ड में एक बडे कारखाने को प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह 20 मई को देश को समर्पित करेंगे । इस कारखाने की नीव 16 साल पहले कांग्रेस राज्य में ही पूर्व प्रधानमंत्री पी0वी0 नरसिंहराव ने रखी थी आज बीना रिफायनरी की शुरूआत हो रही है। निश्चित रूप से बुंदेलखण्ड के लिए यह एक नई शुरूआत है इससे इलाके में विकास का एक नया पहिया तेजी से घूमेंगा। कोई दो दशक से बुंदेलखण्ड में बडे उद्योग स्थापित नहीं हुए थे और न ही जो पारंपरिक उद्योग थे उन पर ध्यान दिया गया। जिसके चलते बुंदेलखण्ड लगातार पिछडता ही गया। यहां तक बुंदेलखण्ड का बीडी उद्योग भी सिमटकर रह गया है1 क्षेत्र से लगातार रोजगार के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं। दुखद पहलू यह है कि बुंदेलखण्ड से गरीब और भुखमरी के चलते युवतियां भी बेची जा रही थी, जो कि सबसे दुखद पहलू है, इसके बाद ही कांग्रेस और भाजपा के स्थापित नेताओं ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई और न ही इलाके में रोजगार के साधन विकसित करने पर विचार किया। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने बुंदेलखण्ड पैकेज देकर विकास की एक नई रोशनी दिखाई। इस पैकेज पर राजनीति तो खूब हो रही है, लेकिन कांग्रेसी नेताओं को इतनी फुर्सत नहीं है कि वे जमीन पर जाकर यह देख सके कि आखिरकार पैकेज की राशि का उपयोग क्या हो रहा है । अब इस मुहिम को इलाके की जमीन से जुडे पत्रकार दीपक तिवारी ने अपने हाथ में लिया है और उन्होंने एक प्रयास शुरू किया है। वैसे भी बुंदेलखण्ड में विकास की छट-पटाहट न तो नेताओं में और न ही आम आदमियों में नजर आती है। भाजपा सरकार के दो बडे मंत्री गोपाल भार्गव और जयंत मलैया से उम्मींदे थी, लेकिन सागर में एक मेडीकल कॉलेज के अलावा कोई बडी सौगात क्षेत्र में दूर-दूर तक नजर नहीं आती है। बुंदेलखंड के नाम पर राजधानी में कई पत्रकार राजनेताओं और नौकरशाहों के सामने बडी बडी बातें करते हैं, लेकिन पिछडे और विकास से दूर हो रहे इलाके पर सवाल तक नहीं करते हैं। निश्चित रूप से बीना रिफायनरी बुंदेलखण्ड के लिए नई सौगात है। यह इकाई 12208 करोड लागत की है, जो कि भारत पेटोलियम कॉर्पोरेशन, ओमान आयल कार्पोरेशन तथा अन्य कंपनियों की भागीदारी से बनी है। बुंदेलखंड में कांग्रेस ने तो अपनी जमीन तलाशने के लिए नये सिरे से प्रयास शुरू कर दिये हैं, लेकिन इसमें कई बधाये हैं, कांग्रेस का जमीन आधार खत्म सा हो चुका है। ऐसे नेताओं पर कांग्रेस ने दाव खेल रही है, जो कि अपने क्षेत्र में ही पहचान खो चुके हैं और फिर से 2013 में चुनाव लडने के लिए पार्टी नेत़त्व के आगे-पीछे घूम रहे हैं। ऐसे नेताओं से कांग्रेस दूर रहेगी तभी कोई भला हो पायेगा अन्यथा कांग्रेस कितनी भी मेहनत कर ले ज्यादा सफलता मिलने की उम्मीद नगण्य ही है। बेहतर है कि नये चेहरो पर दाव लगाये। दूसरी ओर भाजपा की जमीन पूरी तरह तैयार है और वे लगातार बुंदेलखण्ड में अपना अभियान चलाये हुए हैं यानि वर्ष 2013 की जंग बुंदेलखण्ड से ही लडी जायेगी अब वहां की जनता को तय करना है कि उनका कौन भला करेगा ।
मंगलवार, 17 मई 2011
बांध विस्थापितों के लिए फिर मैदान में मेघा पाटकर
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेघा पाटकर को सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने फिर से बांध विस्थापितों की लडाई छेडने का हथियार दे दिया है। इससे मेघा पाटकर नये सिरे से नर्मदा इलाके में विस्थापितों के पक्ष में खडी हो गई है। वैसे तो सुश्री पाटकर करीब दो दशक से नर्मदाघाटी से जुडे विस्थापन को लेकर जमीनी संघर्ष कर रही हैं, उन्होंने विस्थापितों के पक्ष में जोरदार लडाई लडी है, कई बार उनकी टकराहट सरकार से सीधी हुई है, कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से उनके रिश्ते बेहतर थे, लेकिन तब भी वे बडवानी से लेकर भोपाल तक आंदोलन करने में पीछे नहीं रहती थी, उस दौरान अब सेवानिव़त्त हो चुके आईएएस अधिकारी शरदचंद्र बेहार भी एक मध्यस्थ की भूमिका अदा करते थे। अब स्थितियां बदली हुई हैं। भाजपा सरकार को तो मेघा पाटकर और उसका आंदोलन एक पल भी रास नहीं आता है।
कोर्ट से मिली मेघा को नई संजीवनी :
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह नर्मदाघाटी से विस्थापित होने वाले परिवारों के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिसमें नर्मदा बांध में विस्थापितों को दो हैक्टेयर जमीन मिलेगी। यह फैसला इंदिरा सागर, महेश्वर, मान तथा आदि परियोजनाओं पर भी लागू होगा। इस फैसले से खुश मेघा पाटकर कहती हैं कि विस्थापितों के लिए मध्यप्रदेश सरकार की पुनर्वास नीति में जमीन के बदले जमीन, न्यूनतम दो हैक्टेयर का स्पष्ट प्रावधान है फिर भी आज तक यह अधिकार किसी को भी नहीं दिया है। इसके चलते विस्थापित दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं। विस्थापित इस बात से खुश है कि उन्हें अब जमीन मिल जायेगी, लेकिन नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण का कहना है कि बांध से विस्थापितो का पुनर्वास हो चुका है, जबकि हकीकत यह है कि विस्थापित होने वाले लोग आज भी अपने ही घर में रह रहे हैं और जमीनों पर खेती कर रहे हैं। मैदानी कब्जा आज भी डूब प्रभावितों का है। अब नर्मदाघाटी इन लोगों से जमीन खाली कराने के लिए 90 दिन का सूचना पत्र भी दे रही है।
भूख, गरीबी, अपमान यानि विस्थापित :
जब बडे बांधों और परियोजनाओं का निर्माण होता है, तो उससे विस्थापन की एक नई समस्या खडी हो जाती है, इसी के साथ ही फिर शुरू होता है, विस्थापित लोगों की भूख, गरीबी और अपमान का सिलसिला। यह सच है कि जब जब लोगों को उनके मूल स्थान से हटाया जाता है, तो उनके सामने समस्याओं का एक नया आकाश खुल जाता है और दुनिया उजड जाती है। विस्थापन का अपना दर्द है। इन विस्थापितों को मुआवजा तो भरपूर मिलता है, लेकिन जमीन और रोजगार की कभी व्यवस्था नहीं होती है, इसके चलते विस्थापन के सामने भूख, गरीबी से लडने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता है। यह सिलसिला अनबढत जारी है। लाखों की संख्या में विस्थापित आज भी दर दर भटक रहे हैं, कुछ लोगों ने शहरों में पलायन करके अपनी जिंदगी नये ढंग से जीना शुरू कर दिया है, तो किसी को अपना पुराना आशियाना ही रास आ रहा है। विस्थापन एक बडा सवाल है, इसक हल खोजने के लिए कई स्तर पर चर्चाएं हुई है, इसके बाद भी कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। नर्मदा बांध से विस्थापित हजारों लोग आज भी अपना दर्द लिए भटक रहे हैं, इनकी पीडा पर मरहम लगाने का काम मेघा पाटकर ने किया है। बार बार कोर्ट की समझाइश के बाद भी राज्य सरकार विस्थापितों का दर्द दूर नहीं कर पा रही है।
मेघा फिर मैदान में :
नर्मदा बचाओं आंदोलन की नेत्री मेघा पाटकर लंबे समय बाद फिर से विस्थापितों की लडाई लडने के लिए मैदान में उत्ार आई हैं और उन्होंने बडवानी में मोर्चा संभाल लिया है। वे कहती हैं कि नर्मदाघाटी क्षेत्र में डूब से प्रभावित होने वालों का पुनर्वास आज तक नहीं किया गया है। एनव्हीडीए लगातार झूट बोल रहा है। इस बार मेघा पाटकर को आंदोलन करने में पसीना आ जायेगा, क्योंकि भाजपा सरकार किसी की स्थिति में मेघा पाटकर को फिर से मैदानी मोर्चा संभालने नहीं देगी। इसकी रणनीति बन रही है, पर मेघा पाटकर भी चुप बैठने वाली नहीं है, अब तो उसके साथ मैदान में खडे होने वाली हस्तियों की संख्या लंबी फेहरिस्त हैं। मेघा पाटकर और भाजपा सरकार किसी भी दिन आमने सामने का मोर्चा संभाल सकते है।
फिर मोर्चे पर : मेघा पाटकर एक बार फिर से मैदान में उतरी |
चुप नहीं बेढूगी : मेघा पाटकर अपने तींखे तेवर के लिए जानी जाती है। |
रविवार, 15 मई 2011
यशोदरा राजे सिंधिया का जनता दरवार .....
लंबे अरसे बाद सिंधिया परिवार से जुडी भाजपा सांसद यशोदरा राजे सिंधिया ने जनता दरवार लगाया। विकास के कार्यो पर अफसरों से चर्चाएं की, कहीं नाराजगी जाहिर की तो कही पीठ भी थपथपाई। फिलहाल भाजपा की राजनीति में उनकी पूंछ-परख कम हो रही है। अपनी जमीन मजबूत करने के लिए श्रीमती यशोदरा राजे सिंधिया फिर से जनता के बीच दस्तक दे रही हैं।
मंगलवार, 10 मई 2011
मध्यप्रदेश गान
सुख
का
दाता
सब
का
साथी
शुभ
का
यह
संदेश
है,
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
विंध्याचल
सा
भाल
नर्मदा
का
जल
जिसके
पास
है,
यहां ज्ञान विज्ञान कला का लिखा गया इतिहास है।
यहां ज्ञान विज्ञान कला का लिखा गया इतिहास है।
उर्वर भूमि, सघन वन, रत्न, सम्पदा जहां अशेष है,
स्वर-सौरभ-सुषमा से मंडित मेरा मध्यप्रदेश है।
सुख
का
दाता
सब
का
साथी
शुभ
का
यह
संदेश
है,
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
चंबल
की
कल-कल
से
गुंजित
कथा
तान,
बलिदान
की,
खजुराहो में कथा कला की, चित्रकूट में राम की।
खजुराहो में कथा कला की, चित्रकूट में राम की।
भीमबैठका आदिकला का पत्थर पर अभिषेक है,
अमृत कुंड अमरकंटक में, ऐसा मध्यप्रदेश है।
क्षिप्रा
में
अमृत
घट
छलका
मिला
कृष्ण
को
ज्ञान
यहां,
महाकाल को तिलक लगाने मिला हमें वरदान यहां।
महाकाल को तिलक लगाने मिला हमें वरदान यहां।
कविता, न्याय, वीरता, गायन, सब कुछ यहां विषेश है,
ह्रदय देश का है यह, मैं इसका, मेरा मध्यप्रदेश है।
सुख
का
दाता
सब
का
साथी
शुभ
का
यह
संदेश
है,
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है।
- गीत के रचनाकार-महेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार
- गायक-शान शांतनु मुखर्जी, बॉलीबुड का युवा गायक
- संगीत रचना-सुनील झा
- मध्यप्रदेश की स्थापना के पांच दशक से अधिक का सफर तय कर चुके राज्य में पहली बार मध्यप्रदेश गायन तैयार करने की पहल वर्ष 2008 और 2009 से शुरू हुई। गीत तैयार कराने के लिए प्रदेश के जाने-माने गीतकारो से अलग-अलग गीत लिखाये गये और अंतत: मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव के गीत पर सहमति बनी। अब यही गीत राज्य में हर सरकारी कार्यक्रम में गाया जाता है। इस गीत का व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा है। यह गीत मध्यप्रदेश में वर्ष 2010 से गाया जा रहा है। मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद पहली बार भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर मध्यप्रदेश का गायन तैयार किया गया। मध्यप्रदेश संस्क़ति विभाग इस गीत को प्रयाण गीत के नाम से प्रचारित कर रही है। मध्यप्रदेश से प्रेम, लगाव, जुडाव का एहसास गीत कराता है।
- आंखों को लुभाता द़श्य : यह द़श्य प्रदेश की धार्मिक नगरी ओंकारेश्वर का है। राज्य में जहां तहां नदियां, पहाड, जंगल का जाल फैला हुआ है, जो कि राज्य की पहचान है।
सोमवार, 9 मई 2011
यादों में डूबे दिग्विजय
शुक्रवार, 6 मई 2011
बच्चों पर कभी नीति बनेगी
मध्यप्रदेश सरकार हर वर्ग के लिए नीतियां बनाती है, लेकिन बच्चों पर आज तक नीति नहीं बनी है और न ही इस दिशा में सरकार विचार कर रही है। केंद्र की पहल पर राज्य में बाल अधिकार संरक्षण आयोग बना है, यह आयोग भी बच्चों की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं कर पाया है। बच्चों को लेकर शिक्षा में उपेक्षा, उत्पीडन, कुपोषण, बाल अपराध, स्वास्थ्य का परीक्षण न होना, मनोवैज्ञानिक अध्ययन का अभाव, शिशु म़त्युदर, बाल विवाह, लिंगानुपात में कमी सहित आदि समस्याएं सामने आती रही हैं इसके बाद भी राज्य सरकार ने बच्चों को लेकर अभी तक किसी प्रकार की नीति बनाने की पहल नहीं की है। राज्य में महिला एबं बाल विकास विभाग करीब दो दशक से कार्य कर रहा है, लेकिन फिर भी इस विभाग की नजर बच्चों पर तो है, पर जो प्रयास किये जाने चाहिए उस तरह के परिणाम आज तक नहीं मिल पाये है।
मप्र में 2006 में बच्चों की संख्या 2 करोड 40 लाख थी, जो 2010-11 में 30 करोड तक पहुंच जाएंगी। हाल ही में चाइल्ड राइटस ऑब्जरवेटरी (सीआरओ) के आलोक रंजन चौरसिया ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें वर्ष 2009 तक के आधार पर बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, अपराध, शिशु म़त्युदर, बाल सुरक्षा आदि मुददों पर अध्ययन किया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में बच्चों की स्थिति में देश में अभी भी पिछडे पांच राज्यों में शामिल है। पिछले 40 वर्षो में गुजरात पिछडेपन से निकलकर सक्षम विकसित राज्य की स्थिति में आ गया, जबकि मप्र वहीं का वहीं है। इसका प्रमुख कारण प्रदेश स्तर पर बच्चों के विकास के लिए कोई नीति नहीं बनाना है। केंद्र स्तर की नीतियां ही प्रदेश में लागू हो रही है। इसका भी पर्याप्त क्रियान्वयन नहीं होने से बच्चों के हालात दिन व दिन खराब होते जा रहे है।
रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्यों के अनुसार प्रदेश में बच्चों पर होने वाले अपराधों पर आज भी पूरे देश में अपराधों का 43 फीसदी है। राष्टीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो 2007 तक प्रदेश में 4290 अपराध दर्ज किये जब कि मप्र पुलिस रिकार्ड 2008 के अनुसार बच्चों पर 5173 अपराध दर्ज हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले नाबालिंग लडकियों के साथ बलात्कार के सामने आये है। निश्चित रूप से अबौध बालिकाओं के साथ बलात्कार के मामले भाजपा सरकार में बढे हैं। विशेषकर महानगरों और शहरों में इसका बढता ग्राफ चौंकाने वाला है। मां-बाप अपनी बालिकाओं को अकेले छोडकर जाने पर विश्वास बंद कर दिया है, जिन बालिकाओं के साथ वर्ष 2005 और 2006 के बीच बलात्कार हुए थे, उन परिवारों ने भोपाल ही छोड दिया है, इससे साबित होता है कि बालिका के मनोभावों पर जो असर पडा था उसको लेकर परिवारजनों को घर और द्वार व अपना इलाका ही छोडकर जाना पडा। इस दिशा में न तो सरकार ने कोई कदम उठाये और न ही स्वयंसेवी संगठनों ने कोई विशेष अभियान चलाया, सब मूकदर्शक बने रहे। आज भी बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं, जिससे हर राज्य के बाशिंदे का सिर शर्म से झुक रहा है लेकिन महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती रंजना बघेल को कोई चिंता नहीं है, उन्हें तो अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढाने में दिलचस्पी है। इसी प्रकार एक और गंभीर समस्या शिक्षा को लेकर है। आज भी शैक्षणिक स्थिति में मप्र का 35 राज्यों में 26 वां स्थान है। प्राथमिक स्तर पर 60 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते है। वर्ष 2010 में हुए एक सर्वे के अनुसार 10 लाख बच्चे आज भी बाल श्रमिक है। बच्चों में टीकाकरण का आंकडा 30 प्रतिशत से उपर नहीं जा पा रहा है, शिशु म़त्युदर पर भी चौंकाने वाले आंकडे सामने आ चुके हैं। हाल ही में जनगणना के आंकडो में भी बालिकाओं की संख्या घटने की जानकारी उजागर हो चुकी है, इसके बाद भी अगर सरकार की नींद नहीं खुल रही है, तो फिर भी 'जय हो मध्यप्रदेश की'
सिर पर बोझ से दबी जा रही बच्ची, कब करे पढाई |
गुरुवार, 5 मई 2011
अनाथ बच्चों का दर्द समझा
अनाथ, असहाय, विकलांग बच्चों के दर्द की पीडा पर हर कोई मरहम नहीं लगाता है। आज भी राज्य के कई हिस्सों में अनाथ और असहाय बच्चे इधर-उधर मेहनत करके अपना पेट भर रहे हैं। इन बच्चों के लिए कहीं कहीं सामाजिक संगठनों ने आश्रम खोले हैं। अगर राज्य सरकार अनाथ बच्चों की परवरिश पर गोर करें तो चौंकाने वाली बात होती है। अप्रैल 2011 के अंतिम सप्ताह में शिक्षा विभाग ने वर्षो बाद एक अच्छा निर्णय लिया है, जिसकी जितनी सराहना की जाये वह कम होगी। इस विभाग ने आदेश जारी करके कहा है कि अनाथ बच्चों को सरकारी होस्टलों में पहले प्रवेश दिया जायेगा। इस आदेश की कापी संभागीय संयुक्त संचालकों, जिला शिक्षा अधिकारियों और कलेक्टरों को भेजी गई है। सरकारी आवासीय होस्टलों में न सिर्फ प्रवेश मिलेगा, बल्कि ग्रीष्मावकाश में भी उन अनाथ बच्चों को आवास की सुविधा रहेगी। स्कूल में पडने वाले बच्चों को दो महीने छोडकर दस महीने की सुविधा रहती है, लेकिन अनाथ बच्चों के लिए यह सुविधा पूरे सालभर रहेगी। इन बच्चों को मुक्त खान-पान की व्यवस्था भी कराई जा रही है। निश्चित रूप से मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग ने एक उल्लेखनीय कदम उठाया है, इस निर्णय की लगातार मॉनीटिंग करने की जरूरत है, क्योंकि अनाथ बच्चों का कोई नहीं होता है और सरकारी होस्टल के कर्मचारी भी उन्हें उपेक्षित नजर से देखते हैं, इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि अनाथ बच्चों की परवरिश पर पूरी नजर रखी जाये और उनके विकास के लिए हर संभव मदद दी जाये ताकि वे भी समाज की मुख्य धारा में रहकर अपना जीवन जी सके।
बुधवार, 4 मई 2011
सांची बना पर्यटको का बीक एण्ड पाइंट
विश्व धरोहर के रूप में ख्याति अर्जित कर चुका बौद्व स्तूप सांची अब पर्यटकों के लिए एक बीक एण्ड पाइंट भी बन गया है। यहां पर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। पर्यटन निगम अपने स्तर पर सांची में सुविधाओं का विकास कर रहा है ताकि पर्यटकों को और जोडा जा सके। सांची में पर्यटकों के लिए अलग-अलग सुविधाएं विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस दिशा में पुरात्व विभाग और पर्यटन विभाग मिलकर काम कर रहे हैं, भविष्य की योजनाओं पर दोनों विभाग मिलकर सांची को नया रूप देने में लगातार प्रयासरत हैं। इन एजेंसियों का मानना है कि अगर सांची में पर्यटकों की संख्या बढेगी तो उससे न सिर्फ आय के स्त्रोत विकसित होंगे बल्कि विश्व धरोहर बौद्व स्तूप से भी लोग और रूबरू हो सकेगे।
मंगलवार, 3 मई 2011
कौन करें मध्यप्रदेश का नेत़त्व
लगातार बीमारू और पिछडा राज्य की संज्ञा से नबाजे जाने के बाद भी मध्यप्रदेश के राजनीतिक दलों की नींद न खुलना आश्चर्यजनक लगता है। केंद्र सरकार के सामने अपने हको की बात करने के लिए ताकत के साथ राजनेता सामने नहीं आ रहे हैं, बल्कि अपने अपने इलाकों तक सीमित हैं। इन दिनों दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस में मध्यप्रदेश से जुडे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, उनका अपना एक मुकाम भी दलों में बना हुआ है, इसके बाद भी राज्य के विकास को लेकर एकमत नहीं हैं। अपने अपने ढंग से समय के अनुसार राजनीतिक लाभ लेने के लिए जरूर बातें की जाती हैं, लेकिन राज्य के समग्र विकास पर कोई चिंतित नहीं हैं। यही वजह है कि पांच दशक बाद भी प्रदेश रेल और विमान सेवाओं में आज भी पिछडा हुआ है। अभी तक हम एक ही स्थान पर अंतर्राष्टीय विमानतल को आकार नहीं दे सकें हैं। इसी के साथ ही औ़द्योगिक विकास, रोजगार की संभावनाए, क़षि उत्पादन, सूचना प्रौद्योगिकी, मानव विकास सहित आदि पहलूओं पर भी अन्य राज्यों से लगातार पिछड रहे हैं। राज्य में एक नई परंपरा और विकसित हो गई है कि केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार होने से केंद्र और राज्य के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाने की प्रव़त्ति तेजी से बढी है। यहां तक की विकास को लेकर कोई सार्थक पहल भी नहीं हो रही है। हकीकत से मुंह मोडना राजनेताओं की फितरत सी बन गई है। यह भी कहना उचित नहीं होगा कि सारे मामलों में राजनेता ही दोषी है, बल्कि इस प्रदेश के बुद्विजीवी, समाजसेवी, अखबारनबीसी और जागरूक नागरिक भी राज्य के विकास में बढ-चढकर हिस्सा नहीं ले रहे हैं। इसके अलावा राज्य के लोगों में निर्भरता की प्रव़त्ति भी बनी हुई है, जिसके चलते सब लोग हर बात के लिए राज्य सरकार की तरफ देखते हैं और अपने मन से कुछ करना नहीं चाहते है, इसके चलते प्रदेश का विकास कैसे होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। कांग्रेस और भाजपा को अपनी राजनीति करने का हक है, लेकिन जो छोटे दल है, वे भी विकास के पहलूओं को लेकर कोई गंभीर नहीं, बल्कि अपने संसाधन और सीमित लोगों का रोना ही रोते हैं, यह दल भी आगे बढकर विकास और उसके अवरोधक चिन्हों को फोकस तक नहीं करते है और न ही वे कोई राजनीतिक अपना फलक तैयार कर पा रहे है, सिर्फ कार्यालय में सिमटकर बयानबाजी तक सीमित रह गये हैं। पांच दशक के सफर में विकास का पहिया तो चला है, लेकिन जिस गति से राज्य को तेज दौडना था उसमें कामयाबी नहीं मिली है, अभी वक्त खत्म नहीं हुआ है, एक नया अध्याय शुरू किया जाना चाहिए जिसमें प्रदेश के बहु-आयामी विकास की परिकल्पनाएं की जाये। भाजपा सरकार ने भविष्य की योजनाओं को लेकर सपने तो बुने है, इसकी शुरूआत वर्ष 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती ने पंच-ज की शुरूआत की थी और उस अभियान को स्वर्णिम राज्य तक लाने का इरादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देखा है, लेकिन अभी भी इस दिशा में जिस रफतार से योजनाओं को आकार लेना चाहिए वैसी लडाकू प्रव़त्ति नजर नहीं आ रही है, जिसकी मध्यप्रदेश को सख्त जरूरत है। *जय हो मध्यप्रदेश की*
श्यामाचरण शुक्ल और मध्यप्रदेश
नैसर्गिक साधनों से परिपूर्ण राज्य के विकास की इमारत क़षि क्रांति की नींव पर ही खडी हो सकती है। राज्य के गठन के प्रारंभिक वर्षो में इसी द़ष्टि से सिंचाई क्षमता बढाने पर जोर दिया गया। बडे बांध बनाये गये, नहरे बिछाई गई। धीरे-धीरे राज्य के नेत़त्व सिंचाई सुविधाओं की उपेक्षा करना शुरू की, क़षि को महत्व नहीं दिया, सिंचाई विभाग का बजट घटा दिया गया । इसका परिणाम यह हुआ कि मध्यप्रदेश लगातार पिछडता ही चला गया। आज भी ग्रामीण विकास के क्षेत्र में लगातार पिछड रहे हैं। विकास की सही प्राथमिकताएं तय करनी होगी और उन पर अमल हो तभी उनके परिणाम मिल पायेंगे।
यह कथन वर्ष 1994 का है, श्री शुक्ल म0प्र0 में तीन बार मुख्यमंत्री रहे
यह कथन वर्ष 1994 का है, श्री शुक्ल म0प्र0 में तीन बार मुख्यमंत्री रहे
रविवार, 1 मई 2011
खण्ड खण्ड बंट जायेगा मध्यप्रदेश ........!
मध्यप्रदेश को एक बार फिर से विभाजित करने की योजना पर राजनैतिक चौसर बिछना शुरू हो गई है। क्या यह माना जाये कि एक दशक बाद फिर से मध्यप्रदेश को विभाजन की पीडा भोगनी पडेगी। इस बार फिर से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश को विभाजित करने की दिशा में 30 अप्रैल को एक कदम आगे बढकर बुंदेलखण्ड राज्य बनाने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने के संकेत दिये हैं। लंबे समय से बुंदेखण्ड राज्य बनाने की मांग उठती रही है, लेकिन दिग्विजय सिंह ने राज्य बनाने के जो संकेत दिये हैं उससे प़थक राज्य बनाने के अभियान में जुडी ताकतों को बल ही मिलेगा। इससे पहले दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2000 में छत्तीसगढ राज्य बनाने में अहम भूमिका अदा की थी। छत्तीसगढ राज्य आज एक दशक का सफर तय करने के बाद भी वहां के बाशिंदे और उनका नेतत्व करने वाले जनप्रतिनिधि भी बार बार मध्यप्रदेश आकर दुखी मन से स्वीकार करते हैं कि छत्तीसगढ राज्य हंसी-ठिठौली में आकार ले लिया, लेकिन अभी भी मध्यप्रदेश बार बार लुभाता है । इससे साफ जाहिर है कि छोटे राज्य की जो परिकल्पना की गई थी वह सही साबित नहीं हुई है। दिग्विजय सिंह के एलान के बाद प़थक बुंदेखण्ड राज्य बनाने की मांग निश्चित रूप से जोर पकडेगी इस राज्य को बनाने के लिए मध्यप्रदेश के आधा दर्जन जिले सागर, छतरपुर, टीकमगढ, दमोह, पन्ना, दतिया आदि शामिल होंगे। तब फिर मध्यप्रदेश का क्या अस्तित्व रह जायेगा यह सवाल तेजी से गूंजने लगा है। इसके अलावा प़थक विंध्य राज्य, महाकौशल, मालवा, गौडवाना राज्य आदि बनाने की मांग भी जब तब उठती रही हैं। अगर इसी तरह से छोटे-छोटे राज्य बनाने की मांग ने जोर पकडा तो मध्यप्रदेश न तो विकास के आयाम स्थापित कर पायेगा और न ही अन्य राज्यों से आगे निकल पायेगा। राजनेताओं को इस बात पर विचार करना ही होगा कि मध्यप्रदेश को अब टुकडो में न बांटा जाये, अन्यथा इसके परिणाम घातक होंगे। यह भी हो सकता है कि भविष्य में मध्यप्रदेश में एक छोटे से टापू के रूप में हम अपने अस्तित्व से जुझते नजर आये। अभी भी वक्त है कि राजनेताओं को छोटे राज्य की मुहिम चलाने की वजह मध्यप्रदेश के विकास पर ध्यान देना चाहिए।
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