रविवार, 26 फ़रवरी 2012

उड़न खटोले पर सबार होकर दुल्‍हन लेने पहुंचा दूल्‍ला


        अमूमन मप्र में बारात घोड़े या कार पर सवार होकर निकलने का रिवाज है, लेकिन इस परंपरा को तोड़ा है किसान के एक बेटे ने। यह किसान का दूल्‍ला बेटा उड़न खटोले पर सवार होकर दुल्‍हन को लेने पहुंच गया विदिशा। आजकल शादियां शान और शौकत का प्रतीक बनती जा रही है अब इसमें परंपराएं तोड़ने वालों का रूतबा कायम हो रहा है। 25 फरवरी को मप्र की राजधानी भोपाल के बागमुगलिया के गांव बर्राई में रहने वाले किसान अवधनारायण मीणा ने अपने छोटे पुत्र बलवीर सिंह मीणा की बारात विदिशा उड़न खटोले में सवार होकर निकाली। विदिशा जिले में उड़न खटोले पर सवार होकर दूल्‍हा पहली बार आया है। इस शान-शौकत पर एक से डेढ़ लाख रूपये खर्च हो गये हैं। इसके बाद भी दूल्‍ला का पिता गर्भ से कहता है कि हम तो अपने बेटे की इच्‍छा पूरी करने के लिए अपनाया है अन्‍यथा मप्र में तो आज भी दलित नौजवानों को घोड़ी पर चढ़कर भी बारात निकालना गुनाह माना जाता है। अगर दलित युवक घोड़े पर चढ़कर दबंगों के सामने से बारात निकाले तो यह उन्‍हें नागवार गुजरता है। जहां एक ओर घटिया मानसिकता एक ओर कायम है वहीं दूसरी ओर उड़न खटोले पर बारात ले जाने का एक नया नबावी दौर भी शुरू हुआ है। चलिए इस बहाने मप्र का किसान शान से तो कह सकता है कि वह भी उड़न खटोले पर बारात निकालने में सक्षम है। 
युवती का शिव प्रतिमा से विवाह :
      मंदिरों में शादियां होना सामान्‍य बात है, लेकिन अगर कोई युवती मंदिर में स्‍थापित प्रतिमा से ही शादी कर लें तो उसे चौंकाने वाली घटना ही कहा जायेगा। ऐसा करिश्‍मा मप्र के भिण्‍ड जिले में हुआ है, जहां पर 24-25 फरवरी को शिव आराधना में लीन रहने वाली सरिता शर्मा ने अपने घर के नजदीक बने नर्मदेश्‍वर शिव मंदिर पर शिवजी के साथ विवाह रचा लिया है। सरिता शर्मा के पिता हरनारायण शर्मा मालनपुर इलाके में रहते हैं। इस युवती ने हिन्‍दू रीति-रिवाज से शिव आराधना में लीन रहने के लिए शिव जी के साथ विवाह रचाया है। यह अपने आप में इतिहास बन गया है और इस तरह की घटनाएं कम होती हैं। निश्चित रूप से मप्र में यह एक अनूंठी घटना है और युवतियां का भगवान से शादी करने के प्रसंग समय-समय पर सुनाई देते हैं। 
ग्‍वालियर एयरवेस और मिराज : 
     मप्र के ग्‍वालियर के महाराजापुरा वायुसेना स्‍टेशन से उड़ान भरने वाले नौ विमान दुर्घटनाग्रस्‍त हो चुके हैं इनमें से आठ हादसे मिराज 2000 श्रेणी के विमानों से जुड़े हुए हैं। इन दुर्घटनाओं में वायुसेना को अपने तीन पायलटों को भी खोना पड़ा है। ग्‍वालियर का महाराजापुरा स्‍टेशन वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमान 2000 का वेस है। यहां सबसे पहले 1987 में एक मिराज दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ था। इसके बाद 08 अक्‍टूबर, 1989 को घटना हुई थी जिसमें एक बिग कमांडर की मौत हो गई थी, इसके बाद 27 जनवरी 1994 को मिराज के तीन हादसे हुए, जबकि वर्ष 2004 में एक की मौत हुई थी। 24 फरवरी, 2012 को एक बार फिर से मिराज विमान दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया जिसमें दोनो पायलट सुरक्षित निकल आये हैं। निश्‍चित रूप से बार-बार मिराज के दुर्घटनाग्रस्‍त होने से वायुसेना की भूमिका पर सवाल तो उठते ही हैं। 

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