जाने क्यों बार-बार यह सवाल उठता है कि अपने आपको शांति का टापू कहे जाने वाले मप्र में दलित वर्ग बार-बार दबंगों के निशाने पर क्यों आता है। शायद ही कोई ऐसा महीना गुजरता हो, जब मप्र के मीडिया में दलित वर्ग के प्रताड़ना की खबरें फोकस न होती हो पर फिर भी न तो पुलिस कोई कार्यवाही करती है और न ही सरकार की तरफ से राहत मिल रही है। राज्य के करीब एक दर्जन से अधिक जिलों में तो दलित उत्पीड़न की घटनाओं में इजाफा ही हुआ है। 26 जनवरी को जब पूरा देश गणतंत्र मना रहा था, तब मप्र के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर में दलित महिलाओं को गांव में पानी भरने से रोका गया और मारपीट की। इस घटना के छ: दिन बाद इसी इलाके के टीकमगढ़ जिले में पुलिस के अत्याचार का शिकार दलित हुआ है, तो सागर जिले के बीना के एक गांव बेलई में तो दलित बाल किशन अहिरवार की इसलिए पिटाई कर दी गई कि उसने दबंगों को सामने झुककर सलामी देने से इंकार कर दिया। इस गांव के दबंग रघुराज सिंह ठाकुर एवं गजराज सिंह ठाकुर को यह नागवार गुजरता है कि कोई दलित उनके सामने से गुजर जाये और सलामी न करें, यह तो ठाकुरों के शान के खिलाफ है। ऐसे घटनाएं पहली बार नहीं हुई है। मप्र में कई बार दलित युवक को अपनी बारात के दौरान दूल्हे को घोड़े से नीचे उतर दिया गया है। इसी प्रकार टीकमगढ़ जिले के ग्राम भेलसी में तो 31 जनवरी को निस्तार करने के दौरान निकली महिलाओं के साथ दबंगों ने मारपीट की, जब यह महिलाएं थाने में रिपोर्ट कराने गई तो थाना बल्देवगढ़ के प्रधान आरक्षक और सिपाहियों ने इन महिलाओं के साथ बदसलूकी की और उन्हें डांट डपट कर भगा दिया। चौंकाने वाले तथ्य यह है कि बुंदेलखंड में आज भी ठाकुरों के राजसी ठांटबांट हैं और वे अभी भी यह मानकर चलते हैं कि उनकी ठकुरास कायम है जिसके चलते वे दलित समाज के लोगों को तो अपने सामने कीड़ें-मकोड़े की तरह समझते हैं यही वजह है कि कई क्षेत्रों में आज भी दबंगों की बस्ती की गलियों से दलित जूते-चप्पल पहनकर निकल भी नहीं सकता है उसे हाथ में लेकर ही जाना पड़ता है।
यहां तक कि जब अत्याचार की सीमाएं बढ़ जाती है और उनके रोजगार को भी जब छीना जाता है तो दलित समाज के लोग दबंगों से लड़ने की बजाय चुप-चाप अपना सामान लेकर गांव से शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। कई बार शहरों में मजदूरी करके अपना जीवनोपर्जन कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी दलितों पर अत्याचार थमा नहीं है, बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। राज्य सरकार ने अत्याचार रोकने के लिए सख्त कानून बना रखे हैं, जिलों में अजा थाने है, लेकिन जब वही न्याय नहीं मिल रहा है, तो फिर किस पर उम्मीद की जाये। दुखद पहलू यह है कि सामाजिक संगठनों की इस दिशा में कोई सक्रियता नहीं है और न ही वे इन इश्यू को आगे बढ़ाते हैं। राजनीतिक दल तो दलित प्रताड़ना के मामले में अधिक गंभीर नहीं है जिसका लाभ दबंग उठा रहे हैं और हम सब मूक दर्शक बनकर देख रहे है। ऐसा नहीं है कि हर बार पुलिस कार्यवाही नहीं करती है। कई मामलों में पुलिस ने दबंगों को धर-दबोचा है, सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भी समय-समय पर चिंता जाहिर करते हैं, लेकिन दलितों पर अत्याचार थमा नहीं है। यही अफसोस है।
खजाना कूपन का सहारा लेगी भाजपा :
कारपेट घराना और उद्योगपतियों से थोक में भाजपा अब चंदा लेने के मूड में नहीं है, क्योंकि कांग्रेस ने भाजपा पर चंदाघोर पार्टी का आरोप चस्पा कर रखा है इसके चलते पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने अब पार्टी का खजाना लबालब भरने के लिए कूपन का सहारा लेने का एलान किया है। पार्टी अप्रैल माह से 100, 500 एवं 1000 के कूपन तैयार करेगी, जो कि पार्टी कार्यकर्ता और आम लोगों से एकत्रित किया जायेगा, यानि एकबार फिर भाजपा चंदा लेने के लिए बाजार में उतर रही है। वैसे भी भाजपा के नेता इन दिनों धार्मिक, सामाजिक, अध्यात्मिक, मेले, फिल्मी गानों के कार्यक्रम, कवि सम्मेलन, बड़े धर्मगुरूओं के प्रवचन, खेल के उत्सव सहित आदि कार्यक्रमों के लिए चंदा लेने का दौर जारी है, इसी कड़ी में अब भाजपा भी झण्डे, बैनर के साथ चंदा लेने के लिए मैदान में आ रही है। यह कांग्रेसियों के लिए नजर रखने का वक्त है।
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