शनिवार, 28 जनवरी 2012

छुआछूत का जहर मध्‍यप्रदेश में बरकरार



     छुआछूत का जहर मप्र में थमने की वजह फैलता ही जा रहा है। सामाजिक संगठन न तो इस कुप्रव़त्ति का रोकने की पहल कर रहे हैं और न ही कोई रास्‍ते तलाशे जा रहे है। इसके चलते राज्‍य के कई हिस्‍सों में आज भी दलित वर्ग छुआछूत का दंश झेल रहे हैं। हर महीने कोई न कोई घटना सार्वजनिक हो ही रही है जिसमें दलित वर्ग को कहीं कुओं से पानी नहीं भरने दिया जा रहा है, तो कहीं मंदिर में प्रवेश नहीं मिल रहा है, तो कहीं पर दुल्‍हा घोड़े पर सवार होकर गांव में नहीं घूम पा रहा है, दलित महिला के साथ रैप हो रहा है, जैसी एक नहीं अनेकों घटनाएं शामिल हैं। इनका ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। घटना के बाद जिला प्रशासन थोड़े दिन तो गांव में सामाजिक समरस्‍ता बनाने की कोशिश करता है, लेकिन बाद में फिर दबंगों के हाथ में सारा गांव कैद हो जाता है। प्रदेश में करीब एक हजार से अधिक बड़े एनजीओ काम कर रहे हैं, लेकिन वे भी छुआछूत के दंश को दूर करने में कोई कारगर पहल नहीं कर पा रहे हैं। देशभर में सामाजिक समरस्‍ता फैलाने का दंभ पालने वाला राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ भी मप्र में छुआछूत रोकने की दिशा में आगे नहीं आया है। हाल ही में राज्‍य में गणतंत्र दिवस के दिन यानि 26 जनवरी, 2012 को राज्‍य के टीकमगढ़ जिले के एक गांव में महिलाएं पानी भरने जा रही थी, तो दबंगों ने दलित महिलाओं पर हमला बोल दिया, उनके वर्तन तोड़ दिये, जब दलित महिलाएं थाने में रिपोर्ट करने पहुंची तो, उनकी रिपोर्ट ले ली गई है, लेकिन कार्यवाही अभी तक नहीं हुई है। इससे पहले दिसंबर म‍हीने में सीहोर जिले में दलित महिला के साथ रैप का मामला भी सामने आया था, लेकिन उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसी प्रकार वर्ष 2010-11 में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ग़ह नगर जैत में एक दलित महिला के मंदिर में प्रवेश को लेकर तूल पकड़ा था। इस मामले में तो राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह स्‍वयं गांव पहुंचे थे, इसके बाद भी मामला जस का तस है। ऐसा नहीं है कि मप्र में दलितों के मंदिर में प्रवेश और पानी भरने को लेकर यह पहली बार मारपीट की घटनाएं हो रही है। वर्षों से ऐसी घटनाएं जब-तब होती रहती है, लेकिन सामाजिक संगठन और राज्‍य सरकार इनको रोकने पर कोई विचार तक नहीं कर रही है जिसका परिणाम यह है कि दबंगों को आजादी के 62 वर्ष बाद भी दलित वर्ग पर अत्‍याचार करने का खुला अवसर मिला हुआ है। इसकी एक बड़ी वजह दलित नेत़त्‍व का पंगु होना भी है, जो नेता दलित वर्ग से निकलकर संसद और विधानसभा में पहुंचे है, वे भी इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाते हैं। यहां तक कि जो आईएएस और आईपीएस अफसर लंबी प्रशासनिक सेवा के बाद राजनीति में आते हैं उन्‍हें भी दलित वर्ग की कोई चिंता नहीं सताती है। 

सेवा निव़त्‍त आईएएस अधिकारी मान दाहिमा, भागीरथ प्रसाद और सेवा निव़त्‍त आईपीएस पन्‍नालाल अलग-अलग दलों में राजनीति कर रहे हैं, लेकिन जो घटनाएं प्रदेश में सामने आ रही है उसको लेकर वे कभी भी लड़ते नजर नहीं आ रहे हैं, बल्कि उनका मकसद दलों में पदों को पाना है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने जरूर बुंदेलखंड में दलित परिवारों के बीच जाकर उनसे संवाद किया था, लेकिन उसके बाद एक भी कांग्रेसी दलित नेता ने उन गांवों का दौरा तक नहीं किया। यह सच है कि मप्र में कांग्रेस और भाजपा में दलित के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं की संख्‍या अच्‍छी खासी है और वे बार-बार प्रदेश में नेत़त्‍व करने के लिए बड़ी-बड़ी बाते तो करते हैं पर अपने समाज पर लगे कलंक को धौने में उनकी कोई दिलचस्‍पी नहीं है और न ही उस वर्ग में पैठ बनाने की जो वर्ग अकेला ही दबंगों से लुटता-पिटता अपनी जिंदगी जीने को विवश है। राज्‍य के एक दर्जन से अधिक जिलों में दलितों पर अत्‍याचार की घटनाएं तो सार्वजनिक होती ही रहती है, लेकिन छुआछूत के मामले भी जब तब सामने आ रहे हैं, पर कोई दलित नेता सामने नहीं आया है यह दु:खद और दर्दहीन पहलू है, जो बार-बार पीड़ा से झकजोर देता है, लेकिन दलित अपनी जिंदगी जैसे तैसे जीने को मजबूर है और दलित राजनेता अपनी राजनीति करने में मस्‍त हैं। 
                   ''जय हो मध्‍यप्रदेश की''

1 टिप्पणी:

  1. म.प्रदेश में ही क्यों ये कहाँ व्याप्त नहीं है ? एक बात ओर जो छोटी जातियां बड़ी जातियों के छुआछूत से पीड़ित है वे अपनी छोटी जाति के लोगों से खूद उतना ही छुआछूत करते है|ऐसे में अकेले म.प्रदेश को क्यों बदनाम किया जाय|
    गांव में देखता हूँ बलाई,बावरी,नायक आदि जातियां राजपूत,जाट,ब्राह्मण,बनियों से छुआछूत के शिकार है तो यही पीड़ित जातियां हरिजनों आदि से उतनी ही छुआछूत करते है जितनी वे खूद सहते है | ऐसी हालात में छुआछूत कैसे मिट सकता है जब इसके पीड़ित खूद दूसरों से छुआछूत कर इस बुराई को बढ़ावा देते है|

    दरअसल हर कोई अपने से बड़ी जाति में तो घुसना चाहता है पर खूद अपने छोटी जात वाले को गले लगाना नहीं चाहता|

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