मप्र की भाजपा सरकार पर भगवांकरण, साम्प्रदायिकता और हिन्दुतत्व की वकालत करने का आरोप जब तक लगता रहता है। इस बार भाजपा सरकार दो मामलों को लेकर भारी विवादों में है। पहला मामला है पाठ्यक्रम में गीता का पाठ शामिल करना और दूसरा प्रसंग है सूर्य नमस्कार का। इन दोनों प्रसंगों को लेकर अल्पसंख्यक वर्ग भाजपा सरकार से काफी खफा है। गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर ईसाई समाज ने बढ़ा हल्ला मचा रखा है तथा कोर्ट तक जाने की चेतावनी दे रखी है, जबकि राज्य सरकार ने धार्मिक ग्रंथ गीता के अध्यायों को पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर अपनी सहमति दे दी है कभी भी इस संबंध में आदेश जारी हो जायेगें। पाठ्यक्रम समिति भी इस पर मोहर लगा चुकी है। अब दूसरा विवाद सूर्य नमस्कार को लेकर उपजा है। लंबे समय से भाजपा सरकार सूर्य नमस्कार कार्यक्रम हर साल 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर कर रही है। इस कार्यक्रम के जरिए सरकारी स्कूलों में 50 लाख विद्यार्थियों के साथ एक करोड़ नागरिक अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सूर्य नमस्कार के कार्यक्रम में शामिल होते हैं और वे लगातार इस बात की पैरवी कर रहे हैं कि सूर्य नमस्कार कार्यक्रम से कोई साम्प्रदायिकता की खुशबू नहीं आती है,लेकिन इस कार्यक्रम के जरिए लोगों में योग और नागरिकों को ऊर्जावान बनाने की पहल होती है। वैसे भी सीएम कह चुके हैं कि सूर्य नमस्कार कार्यक्रम ऐच्छिक है, जिसकी इच्छा हो वो आये, जो नहीं आना चाहते हैं वह नहीं आये। इसके बाद भी मुस्लिम समाज के मोलवियों ने इस कार्यक्रम पर फतवां जाहिर कर दिया है। कांग्रेस के इकलौते विधायक आरिफ अकील ने भी साफतौर पर कहा है कि मजहवे इस्लाम में किसी के सामने झुकने की सख्त मुमानियत है। वैसे तो ईसाई महासंघ का भी कहना है कि सूर्य नमस्कार समाज में उन्माद फैलाने का कार्य करेगा। संविधान कहता है कि सरकारी एवं सरकारी सहायता से चलने वाले किसी भी स्कूल में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाये। कुल मिलाकर मप्र में सूर्य नमस्कार और गीता का पाठ्यक्रम के बहाने भाजपा सरकार को घेरने का एक मौका धर्मनिरपेक्षवादियों को मिल गया है।
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