पिछले साल पाला की वजह से फसल चौपट हो गई थी, तो किसान आत्महत्या करने पर उतारू हो गये थे और देखते ही देखते राज्य के करीब एक दर्जन किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। इस साल फिर आंशिक पाले ने किसानों का जीवन संकट में डाल दिया है। इसी के चलते एक सप्ताह में तीन किसानों ने मौत को गले लगा लिया है। पहले दमोह के किसान ने आत्महत्या की उसके बाद मंडला जिले में एक किसान ने आत्महत्या की और अब 02 फरवरी को फिर छतरपुर के एक किसान ने कर्ज और फसल तबाही के चले कीटनाशिक पीकर जान दे दी। मप्र में किसानों की आत्महत्या कोई नई बात नहीं है यह सिलसिला वर्ष 2008 से चल रहा है, जो कि वर्ष 2012 में भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। किसानों के जीवन में नई राह दिखाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने क़षि कैबिनेट बनाई, किसानों से गेहूं खरीदी के लिए 100 रूपये बोनस दिया तथा सिंचाई, बीज, खाद की व्यवस्था की पहल भी की। इसके बाद भी किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ ही रहे हैं। वर्ष 2008 में 1361, वर्ष 2009 में 1386, वर्ष 2010 में 1237 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि वर्ष 2011 में करीब 500 से 1000 मौत को गले लगा चुके हैं
। किसानों की मौत को लेकर लंबे समय से राजनीति हो रही है, लेकिन उसके रास्ते नहीं खोजे जा रहे हैं। निश्चित रूप से किसान हमारा अन्नदाता है और मप्र में किसान कभी भी पलायनबादी नहीं रहा है और न ही आत्महत्या करने पर उतारू होता है। राज्य के किसानों ने हमेशा से मेहनत के जरिए जीवन जीने का मार्ग खोजा है, लेकिन पिछले तीन वर्षों में किसानों में निराशा का भाव तेजी से पनपा है जिसके चलते किसान आत्महत्या कर रहा है। इस दिशा में मानव अधिकार आयोग ने भी कुछ जिलों में जाकर किसानों की आत्महत्या की घटनाओं का आंकलन किया है, लेकिन तब भी वर्ष 2012 की शुरूआती माह जनवरी में ही तीन किसानों ने आत्महत्या कर ली है, दो किसान तो बुंदेलखंड इलाके हैं, जबकि इस क्षेत्र में बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर करोड़ों रूपया खर्च हो रहा है, लेकिन तब भी किसान क्यों आत्महत्या कर रहा है इस बारे में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता तो है। राज्य सरकार का क़षि विभाग फिलहाल गहरी नींद में है उसे किसानों की आत्महत्या से कोई लेना देना नहीं है और न ही उन कारणों की खोज की जा रही है जिसके कारण किसान आत्महत्या कर रहा है। राज्य सरकार ने किसान आयोग का गठन किया था, जो कि वर्ष 2010 में बंद हो चुका है। अब इस आयोग को फिर से जीवित करने के लिए पहल हुई है, लेकिन अभी तक आयोग अस्तित्व में नहीं आया है। कुल मिलाकर किसानों की हालत दिनो-दिन खराब होती जा रही है अगर वह आत्महत्या करने पर विवश है, तो फिर जरूर कोई गंभीर मामले ही होंगे, जिनके अध्ययन की सख्त आवश्यकता है।
उमा भारती फिर सक्रिय हुई :
मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री और फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती अपनी नाराजगी दूर करके एक बार फिर उत्तर प्रदेश के चुनाव मैदान में उतर आई है, इस चुनावी समर में पार्टी ने उन पर बड़ा दाव खेला है। बीच-बीच में अपने स्वभाव के मुताबिक उमा भारती ने पार्टी नेताओं की कार्यशैली से नाराज होकर फिर धार्मिक कार्यो में व्यस्त हो गई थी, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी नाराजगी दूर कर दी और उमा भारती एक बार फिर यूपी के चुनावी समर में कूद पड़ी है, उन्हें विश्वास है कि यूपी में भाजपा नये सिरे से खड़ी होगी और पार्टी ताकतवर बनकर उभरेगी। अब उमा के विश्वास को क्यों तोड़ा जाये, लेकिन सच यही है कि भाजपा की राह यूपी में आसान नहीं है, तभी तो मप्र के नेताओं को नेत़त्व करने के लिए उत्तर प्रदेश में बुलाया गया है।
प्रभात झा फिर हुए आक्रमक :
बार-बार पार्टी को कार्यक्रम देकर कार्यकर्ताओं को जमीन पर सक्रिय करने के लिए पार्टी अध्यक्ष प्रभात झा कोई कौर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, न सिर्फ अपनी पार्टी को सक्रिय कर रहे हैं, बल्कि कांग्रेस की कार्यशैली पर तीखे प्रहार करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। कांग्रेस के मौन धरना आंदोलन पर प्रभात झा ने कांग्रेस से आठ सवाल किये हैं और उन सवालों में कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है। इससे साफ जाहिर है कि प्रभात झा न सिर्फ अपनी पार्टी को मैदान में उतार रहे है, बल्कि विपक्ष को भी घेरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं। उनका मानना है कि अगर कांग्रेस के पास भ्रष्टाचार को लेकर प्रमाण है तो वह तथ्यों के साथ लोकायुक्त कार्यालय में पेश करें, ताकि उन पर कार्यवाही हो सके। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा के अध्यक्ष झा अब किसी भी तरह से कांग्रेस को आयना दिखाने में जुट गये हैं इससे एक तीर से दो निशाने चल रहे हैं। एक तो कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं और दूसरा अपनी पार्टी को सक्रिय करने में भी कोई कौर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
भ्रष्टाचार और चालान की अनुमति:
मप्र में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। सत्तारूढ़ दल भाजपा सरकार पर तो भ्रष्टाचार के आरोप नित प्रति लग ही रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्यवाही होंगी। नये अधिनियम के लागू होते ही भ्रष्ट अधिकारियों की सम्पत्ति राजसात की जायेगी। फिलहाल विधेयक राष्ट्रपति के द्वार पर है जिसकी मंजूरी मिलती ही राज्य में लागू हो जायेगा। वर्तमान में लोकायुक्त कार्यालय में करीब 27 अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति के लिए मामले राज्य शासन के अधीन लंबित हैं। इसमें दो आईएएस भी शामिल हैं, लेकिन सरकार इसे मंजूरी नहीं दे रही है। अब लोकायुक्त पीपी नावलेकर का कहना है कि अगर अनुमति जल्दी नहीं मिली तो कोर्ट की शरण लेंगे। इससे साफ जाहिर हो गया है कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ आसानी से कार्यवाही करने की अनुमति भी सरकार नहीं दे रही है, तब फिर भ्रष्टाचार जड़-मूल से कैसे खत्म होगा यह एक गंभीर सवाल अभी भी बना हुआ है।
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