फिलहाल हो मध्यप्रदेश भाजपा को गुटविहीन राजनैतिक दल कहा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे सत्ता का रोग भाजपा में भी आ गया है। अब यहां भी गुटों में लोग बंटने लगे हैं। बंद कमरों में रणनीतियां बन रही हैं। एक दूसरे पर हमले की योजना को आकार दिया जा रहा है। स्वागत और बैठकों के जरिये अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन हो रहा है। भले ही पार्टी के बड़े नेता दंभ के साथ यह कहते नजर आये कि भाजपा में फिलहाल कोई गुटबाजी नहीं है, लेकिन सड़कों पर जो नजारा देखने को मिल रहा है उससे तो साफ तौर पर देखने को मिल रहा है कि भाजपा में गुटबाजी का बीजारोपण हो चुका है। इसके अलावा हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों में दो बड़े नेताओं की नियुक्तियों से पूरी भाजपा में भूचाल से आया हुआ है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की नियुक्ति से भाजपा की आंतरिक राजनीति खुलकर सामने आ गई है। यूं तो सुश्री भारती और श्री झा बार-बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में यह कहते हुए थक नहीं रहे हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनेगी। दोनों नेता अपने-अपने गुणा भाग से जीते हुए विधायकों की संख्या भी बता रहे हैं। इन नेताओं के कमरों में बंद होते ही फिर जो राजनीति शुरू होती है, तो उसके नजारे ही कुछ और होते हैं, क्योंकि बंद कमरों में जो चेहरे प्रवेश करते हैं वे जब बाहर आते हैं, तो उनके चेहरे पर मुस्कान होती है और अपने नेता का आर्शीवाद मिलने का अट्ठाहस अलग ही दिखता है। इसके अलावा बंद कमरों में जो भी बातचीत होती है, वे किसी न किसी माध्यम से बाहर आ ही जाती है। राजनेताओं को गलतफेहमी होती है कि बंद कमरों की राजनीति बाहर नहीं जाती है। ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन अधिकांश बातचीत बाहर आ ही जाती है। इसलिए ऐसे संकेत मिलने लगे हैं कि विधानसभा चुनाव के दौरान उमा भारती और प्रभात झा अपने-अपने समर्थकों को विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगायेंगे और तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा पार्टी अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर उन चेहरों को रोकने की कोशिश करेंगे, तो फिर टकराव होगा ही। इसके अलावा चुनाव की टिकटों का फैसला संसदीय बोर्ड करेगा। जिसमें उमा और झा अपनी ताकत लगाने में कौर-कसर नहीं छोड़ेंगे। उमा को दिल्ली की राजनीति में एक धड़ा बेहद पसंद करता है और उसे लोकसभा चुनाव में उमा की बेहद जरूरत भी है। ऐसी स्थिति में उमा को नाराज करना संभव नहीं है। इसलिए अभी से अभाष होने लगा है कि मप्र की राजनीति में गुटबाजी के बीज डल चुके हैं बस उसका बीजारोपण होना बाकी है। यूं तो इसकी शुरूआत सितंबर महीने से नजर भी आने लगी है। फिलहाल तो भाजपा के सारे नेता फीलगुड में और इसी फीलगुड के सहारे तीसरी बार सत्ता हासिल करना उनका मकसद है।
''मप्र की जय हो''
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