मध्यप्रदेश में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना यानि विवादों का केंद्र बन गई है। इस योजना की शुरूआत से लेकर अब तक घाल-मेल, गड़बडि़या, अनियमितताएं, भ्रष्टाचार, कागजों में काम होना, अफसरों द्वारा राशि को हड़प जाना, नियम विरूद्व काम होने सहित आदि गड़बडि़यां हुई है, करोड़ों के भ्रष्टाचार सामने आये हैं, आईएएस अफसर निलंबित हुए हैं और उन्हें एकाध माह बाद फिर बहाल कर दिया गया है। डिप्टी कलेक्टर तो इस कदर निलंबित हुए हैं कि उनकी संख्या अनगिनत है। यही हाल इंजीनियरों का भी है। यह पूरी योजना जिस मकसद से केंद्र सरकार ने शुरू की थी उसमें मप्र बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ है। मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में यह योजना भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गई है। यही वजह है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री जयराम रमेश भी शिकायतों को सुन-सुन कर इस कदर परेशान हो गये हैं कि वे कई बार मप्र के आला अधिकारियों को खरी-खोटी सुना चुके हैं। मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात हैं। अब 17 मई, 2013 को जयराम रमेश का एक नया ही रूप देखने को मिला है। उन्होंने बड़वानी में एलान कर दिया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो मनरेगा के भ्रष्टाचारी जेल जायेंगे। उन्होंने कहा कि मप्र में मनरेगा में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है जिसमें बड़वानी तो नंबर वन पर है। बड़वानी जिले में मनरेगा का भ्रष्टाचार प्रदेश में सबसे बड़ा मामला है। गरीबों के हक का पैसा यहां के भाजपा नेता और अधिकार साथ मिलकर डकार गये हैं। उन्होंने फिर दूसरी बार दोहरा कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसका पहला निर्णय यही होगा कि मनरेगा का मामला सीधे सीबीआई को सौंप दिया जाये, तो मनरेगा की राशि डकारने वाले सीखचों के पीछे जा सकें।
ऐसा नहीं है कि मनरेगा के तहत सिर्फ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार हुआ है। कई जिलों में बेहतर काम भी हुए हैं, लेकिन भ्रष्टाचार का पैमाना मप्र में ज्यादा हैं। इसलिए इस योजना का खोखलापन बार-बार उजागर हो रहा है। यह समझ से परे है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री जयराम रमेश को मनरेगा के भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने के लिए कांग्रेस की सरकार का आठ महीने आने तक इंतजार करने कहना पड़ रहा है। वे चाहे तो केंद्र में मंत्री हैं स्वयं इस मामले की जांच करवा सकते हैं और उन्होंने बड़वानी के मामले में जांच कराई भी है। संयोग से मप्र की अपर मुख्य सचिव और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव अरूणा शर्मा ने इस मामले को गंभीरता से लिया भी है। इसके बाद भी भ्रष्टाचारियों के हाथ इस कदर फैले हुए हैं कि बड़वानी तक पहुंच नहीं पा रहे हैं। यही हाल बुंदेलखंड में भी है। मनरेगा को लेकर जितना शोरगुल केंद्र सरकार करती है उससे अधिक हल्ला राज्य में एनजीओ मचाते हैं फिर भी मनरेगा का परिणाम ढाक के तीन पात ही होते हैं। कई स्तरों पर प्रयास किये हैं लेकिन मनरेगा में सुधार की कोई गुंजाईश दूर-दूर तक नजर नहीं आती है, बल्कि जिसको मौका मिलता है वह उसमें डूबकर अपना खेल खेल लेता है तभी तो मनरेगा मप्र में भ्रष्टाचार के दलदल में फंसती जा रही है और उससे बाहर निकलने के लिए अब उसमें तड़प भी नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार से छेड़छाड़ करने वाले ज्यादा ताकतवर हैं और वे ज्यादा उपयोग कर रहे हैं। इसलिए मनरेगा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गई है।
''मध्यप्रदेश की जय''
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