ऐसा लगता है कि चुनावी मौसम से पहले दिग्गी का कुशासन भाजपा को याद आने लगता है। अब तो मप्र के प्रभारी अनंत कुमार ने भी कह दिया है कि विकास की बात करो, लेकिन साथ-साथ दिग्गी के कुशासन की याद भी दिलाओ। इसका अर्थ यह है कि भाजपा को भीतर ही भीतर यह भय सताने लगा है कि विधानसभा चुनाव की जंग दिग्विजय सिंह से ही होगी, क्योंकि दिग्विजय सिंह बार-बार मप्र में आकर यह संकेत दे रहे हैं कि वह भाजपा को मात देने के लिए कोई कौर-कसर नहीं छोड़ेंगे। इसके अलावा एक अन्य पहलू पर भी विचार किया जाना चाहिए कि भाजपा 2003 से 2013 तक सत्ता में है। इस दौरान किसी भी एजेंसी से दिग्विजय सिंह के कुशासन की न तो जांच कराई गई और न ही कोई रिपोर्ट सामने आई। जो आरोप पत्र 2003 में जारी किया था उसके बारे में भी भाजपा पूरे चुनाव के मौसम में चुप बैठी रही। यानि न तो उन आरोपों पर कोई ध्यान दिया गया और न ही सरकार को जांच करने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा दिग्विजय सिंह पर आर्थिक अनियमितताओं के भी गंभीर आरोप समय-समय पर भाजपा ने लगाये हैं, लेकिन उन पर भी कोई जांच नहीं कराई गई। अब चुनाव का मौसम आ गया है, तो दिग्विजय सिंह की याद भाजपा नेताओं को सताने लगी है, फिर भले ही दिग्विजय सिंह ने अपने ऊपर लगे आरोपों की सच्चाई जाने के लिए भोपाल के जिला कोर्ट में मानहानि का मुकदमा उमा भारती पर लगाया हुआ है। यह मामला आज भी चल रहा है।
भाजपा की बैठक में दिग्विजय सिंह याद आने लगे :
यह पहली बार है कि 16 मई को भाजपा ने प्रदेश पदाधिकारियों, जिला अध्यक्षों, महामंत्रियों और विधायक संगठन मंत्री की एक संयुक्त बैठक बुलाई थी। इस बैठक में चुनावी तैयारियों की कार्ययोजना बनाई जानी है। इस बैठक में सबसे ज्यादा हमले दिग्विजय सिंह पर हुए। भाजपा के प्रदेश प्रभारी और महासचिव अनंत कुमार ने तो मिशन 2013 फतह करने के टिप्स देते हुए कहा कि ''अतिविश्वास से नहीं पर आत्मविश्वास से भरे रहे'' जनता को समय-समय पर दिग्विजय सिंह के कुशासन की याद दिलाये, विरोधियों की अपवाहो से निपटने, विकास के साथ दुष्प्रचार का भी सहारा लें, अब चुनाव में महज 149 दिन शेष बचे हैं। ऐसी स्थिति में बूथ को मजबूत करें, जब भी चुनाव के दौरान केंद्रीय चुनाव आयोग के प्रतिनिधि आये तो उनके साथ पार्टी का पक्ष मजबूती से रहे, नहीं तो कांग्रेस के लोग एक वर्ग विशेष का नाम जुड़वा लेंगे। इस मौके पर अनंत कुमार ने कहा कि ऐसा माहौल बनाये कि 170 सीटें हमें मिल रही है यह बात तेजी से मार्केट में फैलाये। इस मौके पर भाजपा के संगठन महासचिव रामलाल भी मौजूद थे, उन्होंने भी जनाधार में वृद्वि सहित आदि सुझाव दिये। भाजपा के महासचिव अनंत कुमार को दिग्विजय सिंह का भय इस कदर सताया हुआ है कि उन्हें इशारों ही इशारों में पार्टी के मुखिया नरेंद्र सिंह तोमर को कहना पड़ा कि दिग्विजय सिंह के कुशासन का भय भी दिखाये, जनता के सामने दोनों प्रशासन की तुलना दिखाये, वर्ष 2008 के चुनाव में भी हम रिपोर्ट कार्ड और चार्जशीट हम मतदाताओं के बीच हम गये थे, इस बार भी यह किया जाना चाहिए। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा किस कदर दिग्विजय सिंह से भीतर ही भीतर भयभीत हो गई है। जबकि अभी तो दिग्विजय सिंह अपने मूलरूप में उतरे ही नहीं हैं। जब मैदान में वे उतरेंगे, तो भाजपा को वे पसीना ला देंगे, ऐसा उनके समर्थक भी कहते हैं। अभी तो वे सिर्फ बयानों तक सीमित हैं और कहीं-कहीं सम्मेलनो को संबोधित कर रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी सक्रियता यह संकेत दे रही है कि अब वे भाजपा से दो-दो हाथ कर ही लें। तभी तो भाजपा उनसे भयभीत हैं।
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