भाजपा आलाकमान को लगातार राज्यों में मिल रही पराजय के बाद से अब मध्यप्रदेश के बारे में आलाकमान बेहद गंभीर हो गया है। वह हर हाल में मप्र पर काबिज होना चाहता है। इसके लिए वोटों के सामाजिक गुणा-भाग का अभी से आकलन शुरू कर दिया गया है। इसके साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के वोटों पर भी भाजपा ने निगाहें गड़ा दी हैं। इस वर्ग के वोट पर ही भाजपा की सत्ता में वापसी तय मानी जायेगी। यूं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समाज के हर वर्ग की चिंता की है और ऐसा कोई वर्ग नहीं है जिसमें उन्होंने पैठ बनाने की कोशिश न की हो। इसके लिए माध्यम बना मुख्यमंत्री निवास पर पंचायतों का आयोजन। इसके अलावा भी मुख्यमंत्री गाहे-बगाहे समाज के उस वंचित तबके को भाजपा की तरफ आकर्षित करने की कोशिश करते रहे हैं, जो कि उनसे दूर चला गया था। मप्र में आरक्षित सीटें ही निर्णायक भूमिका अदा करेगी, क्योंकि इन सीटों की संख्या 82 है। जिसमें से वर्तमान में भाजपा के पास 50 सीटें हैं। यूं देखा जाये तो मप्र में एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीटें 47 हैं, जबकि एसटी कोटे की सीटों की संख्या 35 है। इस वर्ग में आदिवासी वर्ग को लेकर भाजपा आलाकमान बेहद चिंतित हो गया है, क्योंकि कांग्रेस ने पार्टी का मुखिया आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को बनाया हुआ है जिनकी अपनी आदिवासियों में गहरी पैठ भी है। भाजपा में ऐसे आदिवासी कद्दावर नेताओं का टोंटा है, जो नेता है उनमें फग्गन सिंह कुलस्ते, रंजना बघेल, अनसुईया उईके, जगन्नाथ सिंह सहित आदि शामिल हैं। हाल ही में भाजपा सरकार ने अपने कैबिनेट से एक आदिवासी नेता कुंवर विजय शाह का इस्तीफा हुआ है और वे लगातार सरकार के खिलाफ बयानबाजी भी कर रहे हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जाति की सीटों को लेकर भी आलाकमान की चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस चिंता से साफ जाहिर है कि आलाकमान ने कम से कम मप्र पर गौर करना तो शुरू किया है। यह देखा जा रहा है कि मप्र में जो भी निर्णय हो रहे हैं उनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ही मुख्य भूमिका अदा कर रहे हैं पर अब आलाकमान यह मिथक तोड़ने के मूड़ में आ गया है। सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने 82 सीटों का फीडबैक भी भाजपा से बुलाया है। ताकि उसमें अलग-अलग विधायकों की स्थितियों का पता लगाया जा सके। आलाकमान तो इस मूड़ में भी आ गया है कि अगर किसी विधायक का परफार्मेन्स बेहतर नहीं है, तो उसे टिकट से वंचित किया जा सकता है। पहली बार भाजपा आलाकमान ने मप्र पर अपनी जो नजरे गड़ाई हैं उससे प्रदेश के नेताओं की नींद उड़ना स्वाभाविक है।
''मप्र की जय हो''
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