रविवार, 19 मई 2013

राजनेताओं का विश्‍वास इसलिए टूटकर बिखर रहा है.....

  1. भाजपा नेता ने ड्राईवर कर्मचारी कर पीट-पीटकर मार डाला। उस पर आरोप था कि उसने डीजल चुराया है। कर्मचारी की मौत हो गई है अब नेता महोदय पुलिस से बचने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। उन्‍हें एक विधायक संरक्षण दे रहे हैं।
  2. प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया उन कांग्रेसी नेताओं पर 18 मई, 2013 को भड़क गये, जो उन्‍हें बदनाम कर रहे हैं। जिस पर उन्‍होंने कहा कि दुकानदार नेताओं को लात मारकर बाहर निकाल दूंगा। अभी भी सुधर जाओ, बरना लात ही लात पड़ेगी। 
  3. मुख्‍यमंत्री महोदय ने कांग्रेसी नेताओं के पत्रों के जवाब नहीं दिये, तो अब दिग्विजय सिंह ने सारे वे पत्र जारी कर दिये, जिनके एक के भी जवाब मुख्‍यमंत्री ने नहीं दिये हैं। सिंह का कहना है कि इसमें अधिकांश पत्र नीतिगत विषय पर थे अथवा क्षेत्र की समस्‍याओं से संबंधित थे। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी आरोप लगा चुके हैं कि सीएम उनके पत्रों के जवाब नहीं देते हैं। आखिरकार सीएम किसके पत्रों के जवाब देते होंगे। 
  4. भाजपा सांसद सुमित्रा महाजन ने स्‍वीकार कर लिया है कि चैरवेति विवाद में उनसे गलतियां हुई हैं, जो कि अब दोहराई नहीं जायेगी। 
            यूं तो अखबारों के साथ-साथ इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में राजनेताओं के चेहरे समय-समय पर उजागर होते रहते हैं पर हम तो चुनिंदा प्रसंगों के साथ नेताओं के चेहरों पर जो कालिख पुत रही है उस पर हम यहां संवाद कर रहे हैं। यह प्रसंग भी संयोग से 19 मई, 2013 के समाचार पत्रों से लिये गये हैं। इससे साफ जाहिर है कि राजनेता न तो सुधरने को तैयार है और न ही कोई परिवर्तन करने की ललक उसमें नजर आती है। वह तो अपनी राजनीति कैसे चमके इस पर ही उसका फोकस हो रहा है। जिसके फलस्‍वरूप राजनेता अपना विश्‍वास समाज में तेजी से खोता जा रहा है। यह तथ्‍य  से राजनेता बाकिफ है फिर भी वे अपनी दुनिया में मस्‍त है। कहीं ऐसा न हो जब सब कुछ उजड़ जाये, तब राजनेता को याद आये। यूं तो मप्र की राजनीति शांत-शांत चित वाली है। यहां न तो घनघोर विरोध करने की प्रवृत्ति नेताओं में है और न ही अपनी राजनीति को चमकाने के लिए अलग-अलग तरीके से हथकंडे अपनाने की कला जानते हैं। बिहार, यूपी की राजनीति के जो तेवर दिखते हैं, वे यहां पर सब गायब है, तो दक्षिण भारत में राजनेता अपने व्‍यवसाय के साथ-साथ राजनीति को भी चमकता है। यहां ये सब नजारे दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलते। मध्‍यप्रदेश के राजनेता अगर व्‍यवसाय करते हैं, तो ज्‍यादातर कॉलेज खोल लेते हैं, तो कुछ नेता अपनी पुश्‍तैनी जमीन में विस्‍तार करते रहते हैं, तो किसी को परिवहन व्‍यवसाय रास आ जाता है, तो कोई होटल का धंधा करने लगता है। शहरों में आजकल के राजनेताओं को जमीन का धंधा रास आ रहा है। इसके साथ ही धार्मिक आयोजन करके अपनी राजनीति चमकाने का भी एक माध्‍यम भाजपा के नेताओं ने हाथों में पकड़ लिया है जिस पर चंदे का आरोप खूब लगता है। भाजपा नेताओं को जाने क्‍यों गुरूर्र इस कदर हावी हो गया है कि वे अपने से बड़ा किसी को नहीं समझ रहे हैं। यही वजह है कि 18 मई, 2013 को भाजपा नेता पी0गणेश ने भोपाल में एक वाहन चालक को पीट-पीटकर मार डाला। उसे लाठी-डंडों से इतना पीटा कि वह मरणाशन अवस्‍था पहुंच गया और उसे जेपी अस्‍पताल ले जाया गया, जहां पर डॉक्‍टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। फिलहाल पुलिस ने हत्‍या का मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी तक गिरफ्तारी किसी की नहीं हुई है। यह नेता महोदय पूर्व पार्षद है और एक विधायक महोदय का इन्‍हें संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए अभी तक पुलिस इन्‍हें पकड़ नहीं रही है। यह राजनीति का एक घिनौना चेहरा भोपाल में उजागर हुआ है। 
         अब दूसरे मामले की चर्चा करते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया यूं तो कभी गुस्‍से में नहीं आते हैं, लेकिन जब कोई उन्‍हें उत्‍तेजित करता है, तो फिर वे ऐसी-ऐसी भाषा में बात करते हैं, जो कि आम आदमी को नागवार गुजरती है। भूरिया ने 18 मई, 2013 को सेंधवा में कहा कि यहां कुछ छुटभैये नेता अपनी दुकान चला रहे हैं और भाजपा से हाथ मिलाकर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस पर भूरिया ने गुस्‍से में कहा कि मैं ऐसे नेताओं को लात मारकर बाहर निकाल दूंगा, जो नेता मुझे अध्‍यक्ष नहीं मानते हैं, वह मेरे पैर की धूल भी नहीं हैं। उन्‍होंने कहा कि अभी भी वक्‍त है  कि बागी कांग्रेसी सुधर जाये, अन्‍यथा लात मारकर भगा दिया जायेगा। उन्‍होंने कहा कि जिनकी औकात पैर छूने लायक नहीं है, उन्‍हें शीघ्र की लात मारकर बाहर निकाल दिया जायेगा। भूरिया ऐसी भाषा का उपयोग समय-समय पर करते रहे हैं। इससे आसानी से यह समझा जा सकता है कि उनकी पीड़ा बार-बार कार्यक्रमों में सार्वजनिक हो रही है। 
           अब तीसरे प्रसंग में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चर्चा का अर्थ यह है कि उन्‍हें कोई भी पत्र लिखता है, तो वे उसका जवाब तक नहीं देते हैं फिर वह नेता किसी भी स्‍तर का हो। इसके चलते विवाद आये दिन गहराते रहते हैं। अब यह विवाद फिर नये सिरे से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने छेड़ा है। उनका कहना है कि वे अब तक 17 पत्र लिख चुके हैं, लेकिन एक पत्र का भी जवाब नहीं आया है। इन पत्रों में अत्‍यंत गंभीर और महत्‍वपूर्ण विषयों पर ध्‍यान केंद्रित किया गया था, लेकिन मुख्‍यमंत्री ने उनका जवाब तक देना उचित नहीं समझा। श्री सिंह ने कहा है कि राज्‍य की जनता के हित में और राजनीतिक शिष्‍टाचार के तहत पत्रों के जवाब मुख्‍यमंत्री को जरूर देना चाहिए। इससे पहले नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी विधानसभा में ऐसे आरोप लगाकर सनसनी फैला चुके हैं कि मुख्‍यमंत्री किसी भी पत्र का जवाब नहीं देते हैं। 
            अब बात चैरवेति की करें तो दीनदयाल प्रकाशन समिति की अध्‍यक्ष और सांसद श्रीमती सुमित्रा महाजन ने स्‍वीकार कर लिया है कि उनसे गलतियां हुई है और उन्‍होंने समिति की तरफ ध्‍यान तक नहीं दिया था। इससे यह भी साबित हो गया है कि राजनेताओं को किसी भी महत्‍वपूर्ण समिति का जिम्‍मेदार बना दिया जाये, लेकिन वह समिति पर गौर तक नहीं करते हैं जिसके फलस्‍वरूप समिति अपने हिसाब से काम करती है और फिर गड़बडि़या सामने आने लगती है तो समिति की अध्‍यक्ष पर ही उंगली उठती है। यही हाल चैरवेति विवाद में हुआ। एक संपादक को विवाद के चलते विदा होना पड़ा और भाजपा के दो नेता आपस में पूरे प्रसंग में उलझते रहे। अब श्रीमती महाजन सारी गलतियां मानकर नये सिरे से पत्रिका का क्‍लेवर बदलने का सपना दिखा रही हैं। 
           कुल मिलाकर राजनेताओं के इन प्रसंगों से यह जाहिर करना चाहते हैं कि  राजनेता अपने स्‍वार्थो की खातिर किस कदर राजनीति में डूबा हुआ है कि उसे और किसी की परवाह ही नहीं है। जब उसके पैर के नीचे की जमीन खिसकने लगती है, तब उसकी नींद खुलती है, लेकिन तब तक जनता का विश्‍वास टूटकर बिखर चुका होता है। अभी भी वक्‍त है कि राजनेताओं को नये सिरे से अपने भविष्‍य पर विचार करना चाहिए। 
                                   ''मप्र की जय हो''

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