भले ही मध्यप्रदेश सरकार बेटी बचाओ अभियान के ढोल कितना ही पीटे तब भी आंकड़ों में बेटियां लगातार राज्य से कम होती जा रही हैं। इसका एक कारण नहीं है, बल्कि कई कारण हैं। सामाजिक विषमता सबसे बड़ा जहर है, जो कि हर परिवार में तेजी से फैला हुआ है। घर में बहु आगमन के साथ ही बेटे की चाहत बलवती हो जाती है, तो कहीं खुद नारी की इच्छा होती है कि उसे बेटा हो, ताकि वह समाज के सामने सीना तानकर खड़ी हो सके। इसके साथ ही जिस तरह से मासूम बेटियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं का ग्राफ बढ़ रहा है उसने भी महिलाओं और परिवार को बेचैन किया है। कदम-कदम पर बेटियां असुरक्षित है उनकी सुरक्षा को लेकर न तो सरकार चिंतित है और न ही समाज। ऐसी स्थिति में परिवार और महिला भी यह सोचने पर विवश हो जाती है कि क्यों न बेटा हो तो बेहतर है। इसी का दुष्परिणाम है कि बेटियों की संख्या लगातार घट रही है। हाल ही में जो आंकड़े मिले हैं उसमें बाल लिंगानुपात 14 अंक गिरा है। एक दशक में यह सबसे चिंताजनक कमी महसूस की जा रही है। प्रदेश में वर्ष 2001 से 2011 के बीच बेटियों की आबादी में चिंताजनक कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के प्राथमिक आंकड़े भी खतरे की घंटी बजा रहे हैं। सूबे में छह साल तक के बच्चों में 1000 लड़कों पर महज 918 लड़किया रह गई हैं। वर्ष 2011 में शून्य से 6 वर्ष के आयु समूह में 1000 लड़कों पर 932 लड़किया थी। इससे साफ जाहिर है कि प्रदेश में लिंगानुपात 14 अंकों में गिरावट दर्शा रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में कुल आबादी 7,26,26,809 है। इसमें पुरूष 3,76,12,306 तथा महिलाएं 3,50,14,503 हैं। इन आंकड़ों से भी साफ जाहिर है कि पुरूष और महिलाओं के बीच अंतर साफ तौर पर झलकता है। मप्र में ग्वालियर चंबल संभाग में तो सबसे कम लड़कियां है। इसके साथ ही विंध्य में भी यही स्थिति है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस समस्या को बारीकी से समझ लिया था और उन्होंने बेटी बचाओ अभियान राज्य भर में चलाया। कई स्थानों पर जागरूकता रैली के जरिये रोड-शो किये। इसका नेतृत्व स्वयं चौहान कर रहे थे। इसके बाद भी आंकड़े जो बता रहे हैं वह तो राज्य के हर नागरिक के लिए चिंताजनक हैं। यूं भी मध्यप्रदेश में उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश से बहुएं खरीकर लाई जाने लगी हैं, ताकि वे अपने बेटों के हाथ पीले कर सकें। ऐसे कई प्रसंग ग्वालियर-चंबल संभाग, विध्य एवं बुंदेलखंड में देखे जा सकते हैं। इन घटनाओं से साफ जाहिर है कि मप्र बेटियों के घटते लिंगानुपात से चिंतित तो हैं, लेकिन अभी भी सरकार के अभियान को समाज ने अंगीकार नहीं किया है अन्यथा परिणाम कुछ और ही होते। इसके लिए सरकार को नये सिरे से विचार करना होगा।
''मप्र की जय''
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