रविवार, 26 फ़रवरी 2012

उड़न खटोले पर सबार होकर दुल्‍हन लेने पहुंचा दूल्‍ला


        अमूमन मप्र में बारात घोड़े या कार पर सवार होकर निकलने का रिवाज है, लेकिन इस परंपरा को तोड़ा है किसान के एक बेटे ने। यह किसान का दूल्‍ला बेटा उड़न खटोले पर सवार होकर दुल्‍हन को लेने पहुंच गया विदिशा। आजकल शादियां शान और शौकत का प्रतीक बनती जा रही है अब इसमें परंपराएं तोड़ने वालों का रूतबा कायम हो रहा है। 25 फरवरी को मप्र की राजधानी भोपाल के बागमुगलिया के गांव बर्राई में रहने वाले किसान अवधनारायण मीणा ने अपने छोटे पुत्र बलवीर सिंह मीणा की बारात विदिशा उड़न खटोले में सवार होकर निकाली। विदिशा जिले में उड़न खटोले पर सवार होकर दूल्‍हा पहली बार आया है। इस शान-शौकत पर एक से डेढ़ लाख रूपये खर्च हो गये हैं। इसके बाद भी दूल्‍ला का पिता गर्भ से कहता है कि हम तो अपने बेटे की इच्‍छा पूरी करने के लिए अपनाया है अन्‍यथा मप्र में तो आज भी दलित नौजवानों को घोड़ी पर चढ़कर भी बारात निकालना गुनाह माना जाता है। अगर दलित युवक घोड़े पर चढ़कर दबंगों के सामने से बारात निकाले तो यह उन्‍हें नागवार गुजरता है। जहां एक ओर घटिया मानसिकता एक ओर कायम है वहीं दूसरी ओर उड़न खटोले पर बारात ले जाने का एक नया नबावी दौर भी शुरू हुआ है। चलिए इस बहाने मप्र का किसान शान से तो कह सकता है कि वह भी उड़न खटोले पर बारात निकालने में सक्षम है। 
युवती का शिव प्रतिमा से विवाह :
      मंदिरों में शादियां होना सामान्‍य बात है, लेकिन अगर कोई युवती मंदिर में स्‍थापित प्रतिमा से ही शादी कर लें तो उसे चौंकाने वाली घटना ही कहा जायेगा। ऐसा करिश्‍मा मप्र के भिण्‍ड जिले में हुआ है, जहां पर 24-25 फरवरी को शिव आराधना में लीन रहने वाली सरिता शर्मा ने अपने घर के नजदीक बने नर्मदेश्‍वर शिव मंदिर पर शिवजी के साथ विवाह रचा लिया है। सरिता शर्मा के पिता हरनारायण शर्मा मालनपुर इलाके में रहते हैं। इस युवती ने हिन्‍दू रीति-रिवाज से शिव आराधना में लीन रहने के लिए शिव जी के साथ विवाह रचाया है। यह अपने आप में इतिहास बन गया है और इस तरह की घटनाएं कम होती हैं। निश्चित रूप से मप्र में यह एक अनूंठी घटना है और युवतियां का भगवान से शादी करने के प्रसंग समय-समय पर सुनाई देते हैं। 
ग्‍वालियर एयरवेस और मिराज : 
     मप्र के ग्‍वालियर के महाराजापुरा वायुसेना स्‍टेशन से उड़ान भरने वाले नौ विमान दुर्घटनाग्रस्‍त हो चुके हैं इनमें से आठ हादसे मिराज 2000 श्रेणी के विमानों से जुड़े हुए हैं। इन दुर्घटनाओं में वायुसेना को अपने तीन पायलटों को भी खोना पड़ा है। ग्‍वालियर का महाराजापुरा स्‍टेशन वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमान 2000 का वेस है। यहां सबसे पहले 1987 में एक मिराज दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ था। इसके बाद 08 अक्‍टूबर, 1989 को घटना हुई थी जिसमें एक बिग कमांडर की मौत हो गई थी, इसके बाद 27 जनवरी 1994 को मिराज के तीन हादसे हुए, जबकि वर्ष 2004 में एक की मौत हुई थी। 24 फरवरी, 2012 को एक बार फिर से मिराज विमान दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया जिसमें दोनो पायलट सुरक्षित निकल आये हैं। निश्‍चित रूप से बार-बार मिराज के दुर्घटनाग्रस्‍त होने से वायुसेना की भूमिका पर सवाल तो उठते ही हैं। 

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

आर्थिक अनियमितताएं, भ्रष्‍टाचार करने में आईएएस अफसर भी अव्‍वल

       कहा जाता है कि आईएएस अधिकारी नियम कायदों से काम करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन मप्र में आईएएस अधिकारी नियम तोड़कर काम करने की कला में माहिर से हो गये हैं और उन पर किसी जांच एजेंसी का कोई खौफ नहीं है यही वजह है कि मुख्‍य सचिव अ‍वनि वैश्‍य से लेकर पचास से अधिक आईएएस अफसरों के खिलाफ लोकायुक्‍त एवं आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो में प्रकरण दर्ज है पर किसी पर भी कार्यवाही होना तो दूर जांच तक समय पर नहीं हो पाती है। आलम यह है कि आईएएस अधिकारी सेवानिव़त्‍त हो जाते हैं, तब भी उनके खिलाफ मामले चलते रहते हैं, लेकिन मजाल है कि उनका बाल भी बाका हो जाये। इसकी एक बड़ी वजह मप्र में राजनीति का बंजर होना है। यहां के राजनेता न तो विषयों की समझ रखते हैं और न ही नियम प्रक्रिया से काम करने की कला जानते हैं जिसके चलते जो आईएएस अफसर कह देते हैं उसी राह पर चल पड़ते हैं यही वजह है कि सत्‍ता में आने के बाद राजनेता पूरी तरह से नौकरशाहों के हाथ के खिलौना बन जाते हैं। 
मप्र का विकास और अफसरों का भ्रष्‍टाचार :
      दु:खद पहलू यह है कि मप्र अपनी स्‍थापना के 50 साल से अधिक के सफर के बाद आज भी पिछड़ेपन के कलंक से बाहर नहीं निकल पाया है। राज्‍य में न तो रोजगार का कोई साधन विकसित हो पाये हैं और न ही उद्योगों का जाल फैल पाया है। गांव-गांव में विकास की बड़ी बातें की जाती है, लेकिन तब भी ग्रामीण क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। देश में जहां प्रति हजार पर 2007 में 25 लोगों को नौकरियां मिल रही थी वहीं मप्र में 2010 में केवल 19 लोगों को ही अवसर मिल पाये हैं। सामाजिक संरचना का आलम यह है कि मप्र में आज भी शिशु म़त्‍युदर सबसे अधिक है। इसके बाद भी लाडली बचाव और बेटी बचाओ अभियान तो चल रहा है, लेकिन मप्र में जनसंख्‍या प्रति दशक में 20 फीसदी से अधिक की रफ्तार से बढ़ रही है। राज्‍य में 43 फीसदी लोग खेती से जुड़े हैं, लेकिन तब भी किसानों की आत्‍महत्‍या और पालन का सिलसिला थम नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में नौकरशाह क्‍या कर रहे हैं यह आसानी से समझा जा सकता है। 
कौन करें आईएएस अफसरों पर कार्यवाही :
       मप्र में नौकरशाहों को लेकर हर साल कोई न कोई मामला उनकी गड़बडि़यों के उजागर हो रहे हैं। हाल ही में आईएएस अधिकारी राघवचंद्रा जमीन घोटाले में तो फंसे हैं, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी राज्‍य सरकार चालान पेश नहीं कर पा रही है अब कोर्ट ने सख्‍त आदेश दिये हैं कि कार्यवाही करें अन्‍यथा सीएस पर अवमानना की कार्यवाही होगी। इसके बाद सरकार की नींद खुली है वही दूसरी ओर 23 फरवरी को विधानसभा में मुख्‍यमंत्री ने स्‍वीकार किया है कि लोकायुक्‍त में 45 आईएएस अफसरों के खिलाफ मामले दर्ज हैं। आईएएस अ‍फसर अरूण पांडे के खिलाफ 2005 से जांच चल रही है, जबकि पूर्व आईएएस अधिकारी एम0एस0भिलाला के खिलाफ तो 2004 से जांच चल रही है और अब वे सेवानिव़त्‍त हो गये हैं इसी प्रकार एक अन्‍य पूर्व आईएएस अधिकारी एम0ए0खान के खिलाफ तो 2009 से जांच चल रही है, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात हैं। यही आलम एमपीएसआईडीसी के तत्‍कालीन प्रबंध संचालक अजय आचार्य के खिलाफ 2004 में प्रकरण दर्ज हुआ था और इस मामले में चालान 2010 में पेश हो पाया है। इससे साफ जाहिर है कि मामले किस प्रकार से आईएएस अधिकारियों के दबाये जाते हैं। राज्‍य सरकार हमेशा आईएएस अफसरों के मामलों में चालान पेश करने में आना-कानी करती रही है। जिन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति नहीं दी जा रही है उनमें अ‍वनि वैश्‍य, जीपी सिंघल, एसके मिश्रा, आरएस जुलानिया, एमके वार्ष्‍णेय, निकुंज श्रीवास्‍तव, मनीष श्रीवास्‍तव, अरूण पांडेय, एमएस भिलाला, शशिकर्णावत, सभाजीत यादव, राजेश राजौरा, अंजू सिंह बघेल, राजकुमार पाठक, केपी राही, निशांत बरबड़े, सुखवीर सिंह, सलीना सिंह, अजात शत्रु, आकाश त्रिपाठी, अरविंद जोशी, एमके सिंह, नवनीत कुठारी, अरूण कुमार भट्ट, पंकज राग, बीएन सिंह, विवेक अग्रवाल, सीबी सिंह, राकेश श्रीवास्‍तव, राघव चंद्रा, रश्मि, एमएम उपाध्‍याय, मनोहर अगनानी, एसआर मोहंती, मनोज झलानी, एमए खान, राजकुमार माथौर, अजय आचार्य, पी0 नरहरि, पी0 राघवन आदि शामिल हैं। इससे साफ जाहिर है कि सरकार इन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्‍वीक़ति नहीं देती है। इससे राज्‍य सरकार का दोहरापन भी उजागर हो रहा है। वहीं आईएएस अधिकारी अपने हिसाब से मनमर्जी करने पर उतारू होते हैं।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

अंधा है प्रेम 75 का दूल्‍ला और 67 की दुल्‍हन

     प्रेम हमेशा अंधा होता है। इसकी कोई उम्र नहीं होती है। जब आंखें आपस में टकरा जाये और दिल से दिल मिल जाये, तो फिर कोई भी ताकत निकट आने से नहीं रोक सकती है। प्रेम अगर बुढ़ापे में हो, तो फिर उसका कोई जवाब नहीं। मप्र में एक अनूठा और आश्‍चर्यचकित कर देने वाला मामला सामने आया है। राज्‍य का संस्‍कारधानी कहलाने वाले शहर जबलपुर में एडीएम कोर्ट के समक्ष 22 फरवरी को 75 वर्ष के व़द्व और 67 वर्ष की कुंवारी महिला ने एक-दूसरे के गले में माला डालकर एक-दूसरे को जीवन साथी मान लिया है। कहा जाता है कि प्‍यार जाति, उम्र एवं किसी प्रकार का बंधन नहीं देखता है। बुजुर्ग हुब्‍बीलाल काछी और महिला बुजुर्ग सुशीला बाई के बीच लंबे समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था पर समाज के डर से दोनों एक-दूसरे से मिलने से कतराते थे। 75 वर्षीय काछी की 15 वर्ष पहले 1997 में पत्‍नी चंपा बाई का स्‍वर्गवास हो गया था, जब से वे विधुर है। जबकि दूसरी ओर 67 वर्षीय सुशीला बाई ने अब तक शादी के बंधन में बंधी नहीं थी और वे कुंवारा जीवन जी रही थी, लेकिन इस उम्र के पड़ाव में उन्‍हें अपने एक साथी की जरूरत महसूस हुई और देखते ही देखते दोनों ने अकेलेपन का जीवन दूर करने के लिए शादी का बंधन स्‍वीकार कर लिया। अब देखना यह है कि इनकी शादी कितनी कामयाब हो पाती है अथवा नहीं, क्‍योंकि उम्र के इस पड़ाव में जाकर व्‍यक्ति को कई प्रकार की समस्‍याओं से जूझना पड़ता है, लेकिन प्‍यार तो अंधा ही होता है ना। इसी के चलते दोनों ने शादी के जोड़े में बंधना ही उचित समझा । हाल ही में मप्र की राजधानी भोपाल में बुजुर्गों की एक पंचायत हुई थी जिसमें महिला और पुरूषों को शादी कराने का मंच उपलब्‍ध कराया गया था। इस कार्यक्रम में पूरे देशभर से बुजुर्ग महिला और पुरूष शामिल हुए थे जिसमें से आधा दर्जन महिला और पुरूषों की शादी भी तय हुई। परंपराओं को तिलांजली देकर बुढ़ापे में भी सहारे की तलाश कहीं कहीं जीवन की यात्रा में कामयाब भी होती है, ऐसा बार-बार हम अपने आस पास देखते हैं और 75 वर्ष के दूल्‍हे और 67 वर्ष की दुल्‍हन को दिल से शुभ कामनाएं है कि वे शादी के बंधन को जीवन पर्यन्‍त स्‍वीकार करें।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

प्रेमियों और पहरेदारों के बीच फिर टकराव


       साल में एक बार मप्र में इश्‍क करने वाले प्रेमियों और उनके पहरेदारों के बीच जमकर टकराव की नौवत बनती है। पुलिस भी यहां-वहां भटकती नजर आती है और प्रेमी-प्रेमिकाएं भी शुकून के स्‍थान की तलाश में भटकते रहते हैं और उनका पीछा करते हैं पहरेदार जिनके हाथो में होते हैं हथियार। मगर यह पहरेदारी साल में एक बार वेलेंटाइन-डे यानि प्रतिवर्ष 13 फरवरी को होती है पिछले सात सालों से प्रेमियों को सताने और उन्‍हें मिलने का हल्‍ला खूब मच रहा है। एक सप्‍ताह पहले से बजरंग दल और हिन्‍दुत्‍व प्रचार धारा को पोषित करने वाले संगठन भी मैदान में आ जाते हैं। इस बार भी वेलेंटाइन-डे के मौके पर युवक-युवतियों द्वारा भद्दा प्रदर्शन रोकने के लिए संस्‍क़ति बचाव मंच ने मोर्चा संभाल लिया है। वहीं दूसरी ओर परंपरागत रूप से सांप्रद‍ायिक ताकतों को चुनौती देने के लिए युवा कांग्रेस और यूएनएसआई भी कभी-कभार मैदान में नजर आती है। दिलचस्‍प यह है कि यह सिलसिला हर साल चलता है। वेलेंटाइन-डे भी मन रहा है, बाजार भी सज रहे हैं, प्रेमी-प्रेमिकाएं मिल भी रहे हैं, कहीं कोई रूकावट नहीं हैं, लेकिन पुलिस और प्रशासन के लिए एक तनाव भरा दिन जरूर होता है। वैसे तो इस दिन मारपीट की घटनाएं भी अमूमन प्रदेश में कहीं न कहीं घटती हैं। कई बार पुलिस की मौजूदगी में प्रेमी-प्रेमिकाओं की पिटाई भी हो चुकी है, तब भी किसी पर कोई कार्यवाही नहीं होती है और हिन्‍दुत्‍व का झंडा उठाये वेलेंटाइन-डे के पहरेदार अपने मि शन में कामयाब हुए। इस दिशा में सांप्रदायिक ताकतों को चुनौती देने वाले लोग भी मैदान में होते हैं। 
मोहब्‍बत का एक दिन और बाजार की चांदी 
         वेलेंटाइन-डे यानि प्‍यार और प्‍यार के इजहार का दिन है। इस अंतर्राष्‍ट्रीय डे को भारत में बाजारवाद में ऐसा परवान चढ़ा दिया है कि इस बहाने बाजार की चांदी ही चांदी है, क्‍योंकि उपहार, ग्रिटिंग कार्ड, फेशन, होटल में पार्टी तथा मनोरंजन उद्योग एवं मीडिया भी इस दिन अपनी-अपनी बाजार की नजर से लाभ लेने में लगा हुआ है। मोबाइल का कारोबार भी इस दिन खूब बढ़ जाता है। फूल और ग्रिटिंग कार्ड की बिक्री 20 से 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस त्‍यौहार को बाजारवाद से जोड़कर लाभ तो बाजार को ही हो रहा है और प्‍यार का उपहार की बिक्री में कोई कोताही नहीं हो रही है। 
मौसम ने सबके होश उड़ाये : 
       मप्र में पल-पल बदल रहे मौसम ने हर व्‍यक्ति के जीवन पर असर इस बार असर डाला है। किसानों को तो प्राक़तिक प्रक्रोप ने तो अपनी चपेट में लिया ही है साथ ही साथ फसलों पर हल्‍की सी बर्फ भी जमी है। कही-कहीं फसलें भी प्रभावित हुई है। अमूमन राज्‍य में ठंड का मौसम सामान्‍य रहता है, लेकिन लंबे अरसे बाद इस मौसम ने करवट बदली है। इसका असर आवा-हवा पर पड़ा है। बाजार ने भी लाभ उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। 
                          *जय हो मध्‍यप्रदेश की*

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

चौंका रही है अफसरों की अदला-बदली मप्र में

      इन दिनों मप्र में प्रशासनिक मशीनरी में बदलाव का दौर चल रहा है। सरकार हर दिन कोई न कोई ऐसा परिवर्तन कर रही है जिसको लेकर भारी हलचल मच गई है। अधिकारी किसी विभाग को समझने का प्रयास करते है उससे पहले उन्‍हें दूसरे विभाग में स्‍थानातंरित कर दिया जाता है इसके चलते अधिकारियों में भी नाराजगी बढ़ती जा रही है। अब तो यह आलम हो गया है एक से डेढ़ माह के बीच विभागों में परिवर्तन होने लगे हैं। हाल ही में सामान्‍य प्रशासन विभाग के सचिव वीणा घाणेकर को डेढ़ माह के भीतर विदा कर एक निगम का प्रबंध संचालक बनाया गया है, जबकि मप्र क़षि विपणन बोर्ड के प्रबंध संचालक और मुख्‍यमंत्री के सचिव अजात शत्रु श्रीवास्‍तव का भी स्‍थानातंरण कर दिया गया था, लेकिन उन्‍हें भी 24 घंटे के भीतर वापस पद पर बैठाने के आदेश जारी हो गये। इसी कड़ी में भोपाल नगर निगम के आयुक्‍त रहे मनीष सिंह के स्‍थानातंरण को लेकर एक नया बबाल खड़ा हो गया है। बामुश्किल सिंह को इंदौर स्‍थानांतरित किया गया था जहां उन्‍हें औद्योगिक केंद्र विकास निगम का प्रबंध संचालक बनाया था, लेकिन 24 घंटे भी इस आदेश को नहीं हुए और उन्‍हें वापस भोपाल में ही पदस्‍थापना दे दी गई। अब उन्‍हें भोपाल औद्योगिक केंद्र विकास निगम का प्रबंध संचालक बनाया गया है जिसका भारी विरोध हो रहा है। दिलचस्‍प यह है कि लंबे समय से नगर निगम में आयुक्‍त रहे मनीष सिंह की विदाई पर कर्मचारी और अधिकारियों ने न सिर्फ खुशियां मनाई, बल्कि मिठाई भी बांटी। यह अपने आप में एक अनूठी घटना है, क्‍योंकि किसी अधिकारी के स्‍थानातंरण पर कर्मचारी और उनके अधीनस्‍थ अधिकारी अक्‍सर दुखी हो जाते है, लेकिन मनीष सिंह के स्‍थानातंरण पर खुशियां मनाना अपने आप में कई सवालों को जन्‍म दे रहा है। कांग्रेस विधायक आरिफ अकील को तो आशंका है कि मनीष सिंह को दो-तीन महीने के अंदर फिर से भोपाल नगर निगम की कमान सौंप दी जावेगी। यह सच है कि भोपाल नगर निगम के आयुक्‍त मनीष सिंह भारी विवादों में आ गये थे और वह किसी न किसी के निशाने पर होते थे। 
स्‍वदीप सिंह की विदाई क्‍यों : 
       अपर मुख्‍य सचिव स्‍वदीप सिंह की विदाई को लेकर भी मंत्रालय में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। आठ महीने पहले ही उन्‍हें वन विभाग का एसीएस बनाया गया था, लेकिन अब मंत्रालय में ओएसडी बनाया गया है और उनके स्‍थान पर आदिम जाति एवं अजा कल्‍याण विभाग के प्रमुख सचिव देवराज विरदी को प्रमुख सचिव वन बनाया गया है। 1979 बैच के आईएएस अधिकारी स्‍वदीप सिंह के बारे में चर्चा है कि पन्‍ना मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा पर मुहर उन्‍होंने लगा दी थी, जिस पर कई बड़े लोगों को यह निर्णय रास नहीं आया था, इसलिए उन्‍हें पद से हटा दिया गया। इस तरह की कयासबाजी निश्चित रूप से चलती रहेगी, लेकिन यह सच है कि इन दिनों मप्र में प्रशासनिक मशीनरी में काफी व्‍यापक परिवर्तन हो रहे हैं और अभी भविष्‍य में और परिवर्तन होंगे जिसका सभी को इंतजार है। इससे पहले जिलों में परिवर्तन हो चुके हैं अभी ओर परिवर्तन की संभावनाएं बनी हुई हैं। 

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

शिक्षक की आशिकी ने बिगाड़ा माहौल

       गुरू और शिष्‍य के संबंधों को दाग-दाग करने की घटनाएं जब तक होती रहती है, लेकिन मप्र में ऐसी घटनाएं बढ़ने से शिक्षा स्‍तर में गिरावट आना स्‍वाभाविक है। वैसे भी मप्र का शैक्षणिक स्‍तर लगातार घट रहा है और अ‍भी भी हम अन्‍य राज्‍यों से लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर गुरू-शिष्‍य संबंध तार-तार होंगे तो फिर शिक्षा का माहौल और भी खराब होगा। हाल ही में 03 और 04 फरवरी को विदिशा जिले के समसाबाद के निकट हायर सेकेण्‍ड्री स्‍कूल बड़खेरा जागीर में पदस्‍थ संविदा शिक्षक शीतल चौधरी ने उसी विद्यालय में अध्‍ययनरत 11वीं कक्षा की छात्रा को बहला-फुसला कर भगा ले गया, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में भारी आक्रोश व्‍याप्‍त है और गांव के लोगों ने शिक्षक और विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य अरूण चौरसिया के खिलाफ धारा 363 और 366 के तहत प्रकरण दर्ज करा दिया है। इस मामले में गांव वालों ने गुस्‍से में आकर स्‍कूल में ताला डाल दिया है इसके बाद जब शिक्षा विभाग के अधिकारी घटना स्‍थल पर पहुंचे तब तक ग्रामीणजनों का गुस्‍सा बढ़ चुका था। ग्रामीणजनों का कहना है कि हमारी लाड़लियों को इस तरह से बहला-फुसलाकर भगाया जायेगा तो फिर कैसे स्‍कूलों में पढ़ाने के लिए बच्चियों को पहुंचाया जायेगा। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार बेटी बचाओ अभियान और लाड़ली लक्ष्‍मी अभियान चलाये हुए हैं। अगर इस तरह से बेटियों के साथ गड़बड़ होगा तो निश्चित रूप से मुख्‍यमंत्री के मिशन को धक्‍का लगेगा। 
गांव में नहीं होगा म़त्‍यु भोज: 
   अमूमन आज भी कई गांवों और शहरों में म़त्‍यु भोज की परंपरा कायम है, लेकिन अब धीरे-धीरे इस परंपरा के खिलाफ लोग खड़े हो गये हैं और म़त्‍यु भोज खत्‍म किये जाने लगे हैं। हाल ही पूर्व सांसद बाल कवि बैरागी की पत्‍नी का निधन होने पर उन्‍होंने अपने पैत़क गांव मंदसौर जिले में म़त्‍यु भोज नहीं दिया था। इसी कडी में इंदौर से लगे गांव रामूखेड़ी में भी गांव वालों ने तय किया है कि अब वह कोई भी म़त्‍यु भोज नहीं देंगे। यह एक अनुकरणीय पहल है और इसको आगे बढ़ाया जाना चाहिए। 
                       '' जय हो मप्र की''
   

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

आठ साल बाद भाजपा में हुआ भरत मिलाप शिवराज और उमा में


     हमेशा एक-दूसरे से मिलने में कतराने वाले राजनेताओं को कभी-कभी राजनीतिक की विवशताएं मिलवा ही देती हैं। यही स्थिति मप्र के दो दिग्‍गज नेताओं के साथ तीन फरवरी को उप्र के विधानसभा चुनाव में बनी। करीब आठ साल से मप्र के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती के बीच मुलाकात तक नहीं होती थी, लेकिन जब मिले तो दिल खोलकर मिले और सीएम चौहान ने भी अपनी छोटी बहन उमा भारती को चुनाव में विजयश्री का आर्शीवाद भी दिया, तो फायर ब्रांड उमा भारती ने भी कहा कि उन्‍हें अपने भाई का आर्शीवाद मिल गया है। इसे भाजपा का भरत मिलाप भी कहा जाता है। उमा ने यहां तक कहा कि अब उन्‍होंने सभी पुरानी बाते भुला दी है, जबकि चौहान ने फरमाया हमारे बीच कभी मतभेद ही नहीं थे। वर्ष 2003 में कांग्रेस की दस साल की सत्‍ता को मप्र से उखाड़ फेंकने में साध्‍वी उमा भारती की अहम भूमिका रही है। उन्‍हीं की आक्रमक शैली के कारण कांग्रेस के विकेट हवा में उड़ गये और राज्‍य में पहली बार महिला नेत्री सीएम बनी थी, लेकिन उनका कार्यकाल बामुश्किल छह माह भी नहीं रहा। इसके बाद बाबूलाल गौर सीएम बने और फिर शिवराज सिंह चौहान ने कमान संभाली। उमा भारती का राजनीतिक जीवन मप्र में लगातार भाजपा के खिलाफ हो गया और वे मुख्‍यमंत्री चौहान के विरोध में खड़ी हो गई, लेकिन इसे राजनीतिक चतुराई ही कहा जाये कि चौहान ने कभी भी उमा भारती के खिलाफ बयानबाजी नहीं की और हमेशा अपने ढंग से तर्कों को मोड़ दिया। यही वजह है कि यूपी चुनाव में जब उमा भारती स्‍टार प्रचारक के रूप में धुआं धार अभियान छेड़े हुए है, तब मप्र के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उनके साथ कदमताल कर रहे हैं। इससे मप्र की राजनीतिक को एक शुभ संकेत है और निश्चित रूप से भविष्‍य में जो संभावना जाहिर की जा रही थी उस पर कहीं न कहीं विराम लगेगा। राजनीतिक प्रेक्षक शिवराज और उमा की मुलाकात को एक बेहतर संकेत मान रहे हैं। 
फिर कल्‍पना विवादों में : 
     अपने राजनीतिक बयानों से हमेशा चर्चा में रहने वाली कांग्रेस विधायक डॉ0 कल्‍पना परूलेकर एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं, उन्‍हें पुलिस ने उज्‍जैन से गिरफ्तार करके भोपाल की केंद्रीय जेल में भेज दिया है। डॉ0 कल्‍पना पर लोकायुक्‍त पीपी नावलेकर का फोटो संघ प्रमुख के साथ लगाकर विधानसभा में प्रदर्शन करने का मामला दर्ज पुलिस ने किया है। यह साइबर क्राइम इसलिए दर्ज हुआ है कि कल्‍पना ने संघ प्रमुख मोहन भागवत का नीचे के फोटो में नावलेकर का चित्र ऊपर लगाकर विधानसभा में प्रदर्शित किया था। पुलिस यह जांच कर रही है कि आखिरकार यह फोटो डॉ0 कल्‍पना ने कहा पर बनाये हैं और इसके पीछे उनकी क्‍या मंशा थी। कांग्रेस लंबे समय से लोकायुक्‍त नावलेकर को संघ का समर्थक कहती रही है, लेकिन डॉ0 कल्‍पना की गिरफ्तारी ने एक बार फिर से कांग्रेसियों को एक कर दिया है और उनके समर्थन में पूरी कांग्रेस उतर आई है। फिलहाल तो 17 फरवरी तक उन्‍हें न्‍यायिक हिरासत में मजिस्‍ट्रेट ने केंद्रीय जेल भोपाल में भेज दिया है। 
सोनी का जलजला :  
मप्र की भाजपा सरकार और संगठन में संघ परिवार का खासा दब-दबा है और अगर संघ के प्रमुख पदाधिकारी सुरेश सोनी अगर भोपाल आये और पार्टी तथा सरकार उनसे न मिले यह संभव नहीं है। जब भी राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाह और मप्र के प्रभारी सुरेश सोनी की यात्रा भोपाल होती है तो उनसे मेल-मुलाकात के लिए पूरी सरकार दौड़ पड़ती है। पार्टी के प्रदेशाध्‍यक्ष प्रभात झा तो उनके सामने पूरी तरह दंडवत है ही, क्‍योंकि कहा जाता है कि झा को पार्टी की कमान सौंपने में श्री सोनी की अहम भूमिका रही है। कुल मिलाकर सोनी का खासा दब-दबा मप्र में कायम है और उन्‍हीं के निर्देशों पर पार्टी और सरकार दौड़ लगाने लगती है।   

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

फिर किसान करने लगे आत्‍महत्‍या मध्‍यप्रदेश में

      पिछले साल पाला की वजह से फसल चौपट हो गई थी, तो किसान आत्‍महत्‍या करने पर उतारू हो गये थे और देखते ही देखते राज्‍य के करीब एक दर्जन किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली थी। इस साल फिर आंशिक पाले ने किसानों का जीवन संकट में डाल दिया है। इसी के चलते एक सप्‍ताह में तीन किसानों ने मौत को गले लगा लिया है। पहले दमोह के किसान ने आत्‍महत्‍या की उसके बाद मंडला जिले में एक किसान ने आत्‍महत्‍या की और अब 02 फरवरी को फिर छतरपुर के एक किसान ने कर्ज और फसल तबाही के चले कीटनाशिक पीकर जान दे दी। मप्र में किसानों की आत्‍महत्‍या कोई नई बात नहीं है यह सिलसिला वर्ष 2008 से चल रहा है, जो कि वर्ष 2012 में भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। किसानों के जीवन में नई राह दिखाने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने क़षि कैबिनेट बनाई, किसानों से गेहूं खरीदी के लिए 100 रूपये बोनस दिया तथा सिंचाई, बीज, खाद की व्‍यवस्‍था की पहल भी की। इसके बाद भी किसानों की आत्‍महत्‍या के मामले लगातार बढ़ ही रहे हैं। वर्ष 2008 में 1361, वर्ष 2009 में 1386, वर्ष 2010 में 1237 किसानों ने आत्‍महत्‍या की है, जबकि वर्ष 2011 में करीब 500 से 1000 मौत को गले लगा चुके हैं । किसानों की मौत को लेकर लंबे समय से राजनीति हो रही है, लेकिन उसके रास्‍ते नहीं खोजे जा रहे हैं। निश्चित रूप से किसान हमारा अन्‍नदाता है और मप्र में किसान कभी भी पलायनबादी नहीं रहा है और न ही आत्‍महत्‍या करने पर उतारू होता है। राज्‍य के किसानों ने हमेशा से मेहनत के जरिए जीवन जीने का मार्ग खोजा है, लेकिन पिछले तीन वर्षों में किसानों में निराशा का भाव तेजी से पनपा है जिसके चलते किसान आत्‍महत्‍या कर रहा है। इस दिशा में मानव अधिकार आयोग ने भी कुछ जिलों में जाकर किसानों की आत्‍महत्‍या की घटनाओं का आंकलन किया है, लेकिन तब भी वर्ष 2012 की शुरूआती माह जनवरी में ही तीन किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली है, दो किसान तो बुंदेलखंड इलाके हैं, जबकि इस क्षेत्र में बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर करोड़ों रूपया खर्च हो रहा है, लेकिन तब भी किसान क्‍यों आत्‍महत्‍या कर रहा है इस बारे में गंभीरता से विचार करने की आवश्‍यकता तो है। राज्‍य सरकार का क़षि विभाग फिलहाल गहरी नींद में है उसे किसानों की आत्‍महत्‍या से कोई लेना देना नहीं है और न ही उन कारणों की खोज की जा रही है जिसके कारण किसान आत्‍महत्‍या कर रहा है। राज्‍य सरकार ने किसान आयोग का गठन किया था, जो कि वर्ष 2010 में बंद हो चुका है। अब इस आयोग को फिर से जीवित करने के लिए पहल हुई है, लेकिन अभी तक आयोग अस्तित्‍व में नहीं आया है। कुल मिलाकर किसानों की हालत दिनो-दिन खराब होती जा रही है अगर वह आत्‍महत्‍या करने पर विवश है, तो फिर जरूर कोई गंभीर मामले ही होंगे, जिनके अध्‍ययन की सख्‍त आवश्‍यकता है। 
उमा भारती फिर सक्रिय हुई : 
मप्र की पूर्व मुख्‍यमंत्री और फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती अपनी नाराजगी दूर करके एक बार फिर उत्‍तर प्रदेश के चुनाव मैदान में उतर आई है, इस चुनावी समर में पार्टी ने उन पर बड़ा दाव खेला है। बीच-बीच में अपने स्‍वभाव के मुताबिक उमा भारती ने पार्टी नेताओं की कार्यशैली से नाराज होकर फिर धार्मिक कार्यो में व्‍यस्‍त हो गई थी, लेकिन पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं ने उनकी नाराजगी दूर कर दी और उमा भारती एक बार फिर यूपी के चुनावी समर में कूद पड़ी है, उन्‍हें विश्‍वास है कि यूपी में भाजपा नये सिरे से खड़ी होगी और पार्टी ताकतवर बनकर उभरेगी। अब उमा के विश्‍वास को क्‍यों तोड़ा जाये, लेकिन सच यही है कि भाजपा की राह यूपी में आसान नहीं है, तभी तो मप्र के नेताओं को नेत़त्‍व करने के लिए उत्‍तर प्रदेश में बुलाया गया है। 
प्रभात झा फिर हुए आक्रमक : 
       बार-बार पार्टी को कार्यक्रम देकर कार्यकर्ताओं को जमीन पर सक्रिय करने के लिए पार्टी अध्‍यक्ष प्रभात झा कोई कौर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, न सिर्फ अपनी पार्टी को सक्रिय कर रहे हैं, बल्कि कांग्रेस की कार्यशैली पर तीखे प्रहार करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। कांग्रेस के मौन धरना आंदोलन पर प्रभात झा ने कांग्रेस से आठ सवाल किये हैं और उन सवालों में कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है। इससे साफ जाहिर है कि प्रभात झा न सिर्फ अपनी पार्टी को मैदान में उतार रहे है, बल्कि विपक्ष को भी घेरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं। उनका मानना है कि अगर कांग्रेस के पास भ्रष्‍टाचार को लेकर प्रमाण है तो वह तथ्‍यों के साथ लोकायुक्‍त कार्यालय में पेश करें, ताकि उन पर कार्यवाही हो सके। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा के अध्‍यक्ष झा अब किसी भी तरह से कांग्रेस को आयना दिखाने में जुट गये हैं इससे एक तीर से दो निशाने चल रहे हैं। एक तो कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं और दूसरा अपनी पार्टी को सक्रिय करने में भी कोई कौर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। 
भ्रष्‍टाचार और चालान की अनुमति: 
     मप्र में भ्रष्‍टाचार एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। सत्‍तारूढ़ दल भाजपा सरकार पर तो भ्रष्‍टाचार के आरोप  नित प्रति लग ही रहे हैं। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कह रहे हैं कि भ्रष्‍टाचार के खिलाफ सख्‍त कार्यवाही होंगी। नये अधिनियम के लागू होते ही भ्रष्‍ट अधिकारियों की सम्‍पत्ति राजसात की जायेगी। फिलहाल विधेयक राष्‍ट्रपति के द्वार पर है जिसकी मंजूरी मिलती ही राज्‍य में लागू हो जायेगा। वर्तमान में लोकायुक्‍त कार्यालय में करीब 27 अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति के लिए मामले राज्‍य शासन के अधीन लंबित हैं। इसमें दो आईएएस भी शामिल हैं, लेकिन सरकार इसे मंजूरी नहीं दे रही है। अब लोकायुक्‍त पीपी नावलेकर का कहना है कि अगर अनुमति जल्‍दी नहीं मिली तो कोर्ट की शरण लेंगे। इससे साफ जाहिर हो गया है कि भ्रष्‍ट अधिकारियों के खिलाफ आसानी से कार्यवाही करने की अनुमति भी सरकार नहीं दे रही है, तब फिर भ्रष्‍टाचार जड़-मूल से कैसे खत्‍म होगा यह एक गंभीर सवाल अभी भी बना हुआ है।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

भाजपा की विकास यात्रा बनाम विवाद का पिटारा खुला मध्‍यप्रदेश में


     गांव और शहरों में कितना विकास हुआ है इसको जानने के लिए भाजपा ने एक फरवरी से लगातार विकास यात्राएं निकाली जा रही है और उनमें यह जाना जा रहा है कि आखिरकार विकास के महल में हम कहा खड़े हैं। बीते तीन वर्षों में घोषणाएं तो खूब हुई है पर उनकी जमीनी हकीकत क्‍या है, इसको परखने ने का काम स्‍वयं भाजपा ने लिया है। इसके चलते विकास यात्रा विवाद का पिटारा बन गई है यात्रा को लेकर विपक्ष आक्रमक तेवर दिखा रहा है और उस पर सवाल पर सवाल खड़े कर रहा है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ-साथ पार्टी के मुखिया भी दम खम से कांग्रेस के खिलाफ तीखे हमले कर रहे हैं। अभी मप्र में विधानसभा चुनाव होने में दो साल का समय बाकी है, लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने तीर अभी से तरकसों से निकलना शुरू कर दिये हैं। 
विकास यात्रा बनाम विवाद :
भाजपा की विकास यात्रा विवाद यात्रा के रूप में तब्‍दील होती जा रही है, जहां एक ओर मीडिया ने भी विकास यात्रा पर सवाल दाग दिये हैं तो विपक्ष की भूमिका अ‍दा करने वाली कांग्रेस भी कहा चुप रहने वाली है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी यात्रा के दौरान कह रहे हैं कि जो काम 60 साल में नहीं हुए वह हमने आठ साल में कर दिखाये हैं। इस यात्रा में भी सीएम को बेटी बचाओ अभियान ही रास आया है वह हर कार्यक्रम में बेटी बचाओ का संकल्‍प दिला रहे हैं वह अब कहने लगे हैं कि उनकी सरकार को बे‍टियों से बेहद लगाव है। कांग्रेस और सीएम के बीच बयान युद्व तो लंबे समय से चल रहे हैं। दिग्विजय सिंह के एक बयान पर एक महीने बाद चुप्‍पी तोड़ते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भाजपा सरकार की शुरूआत में दो विकेट गिर गये तो तीसरा विकेट (शिवराज) भी गिर जायेगा, लेकिन यह तीसरा विकेट तो जम गया है और अब कांग्रेसियों को चिंता सता रही है अब तो कांग्रेसियों को सपने में भी शिवराज नजर आते हैं। कांग्रेसियों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिरकार क्‍या करें। इसलिए हम जो करते हैं वह वैसा ही कर रहे हैं। अब पद यात्रा पर निकलने की बात भी कर रहे हैं। मुख्‍यमंत्री की तीखी शैली के सामने कांग्रेस के बयानवीर नेता भी टिक नहीं पाते हैं, पीसीसी मुखिया कांतिलाल भूरिया कह रहे हैं कि भाजपा सरकार गुप्‍त एजेंडे पर चल रही है। विकास यात्रा का कार्यक्रम भाजपा के राजनीतिक हित साधने में किया जा रहा है इसमें सरकारी मशीनरी का भरपूर दोहन हो रहा है, जबकि भोपाल के कांग्रेस विधायक आरिफ अकील तो पत्रकारों को अपने उत्‍तर विधानसभा क्षेत्र में निकली विकास यात्रा में भोपाल नगर‍ निगम के कर्मच‍ारियों के यात्रा में शामिल होने के फोटो जारी कर चुके हैं, जबकि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सीएस वैश्‍य को पत्र लिखकर पूछा है कि यह यात्रा सरकार की है या पार्टी की। कुल मिलाकर विकास यात्रा विवाद का केंद्र बन गई है। 
यात्रा बनाम मुद्दे : 
      विकास यात्रा का मुख्‍य लक्ष्‍य सरकार की उपलब्धियों को जानना है इस बहाने भाजपा पूरा फीडबैक जमीनी स्‍तर पर लेना चाहती है इसके लिए बकायदा एक फॉर्म भी लोगों से भरवाया जा रहा है। यात्रा के दौरान सड़क,बिजली पानी और उद्योग के विकास की बाते भी हो रही हैं। इसके चलते मीडिया ने भी विकास यात्रा के दौरान राज्‍य की जहां-तहां से उखड़ी सड़के, बार-बार बारिश में बहती सड़के, तहस-नहस हो गये राष्‍ट्रीय राजमार्ग तथा जब-तब गायब होने वाली बिजली और किसानों की आत्‍महत्‍या का अनबरत जारी सिलसिला एवं खाद के लिए किसानों की जोर अजमाईश के चित्र जारी किये जा रहे हैं और उनकी असलियत बताई जा रही है, जबकि सरकार की तरफ से जारी विज्ञापनों में विकास यात्रा का उल्‍लेख करते हुए किसानों के हित में किये गये काम तथा सड़कों की मरम्‍मत और 24 घंटे बिजली का सपना फिर अखबारों में चमक रहा है। इससे साफ जाहिर है कि विकास यात्रा जरिए आम आदमी की बुनियादी जरूरतों के सवाल उठ गये हैं। कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी राजनीति कर रही है, लेकिन आम आदमी की परेशानियां और पीड़ाए खुलकर सामने आने से कम से कम एक बार फिर प्रदेश के विकास को लेकर सवाल तो खड़े होने लगे हैं और यह बेहतर संकेत हैं। मप्र का दुर्भाग्‍य है कि यहां के जनप्रतिनिधि विकास के सवाल पर दायें-बायें होने लगते हैं, मीडिया भी इनको गंभीरता से नहीं ले पाता है, लेकिन देश में विकास का पर्याय बन गया गुजरात मॉडल अब अन्‍य राज्‍यों में भी विकास पर डिबेट होने लगी है। मप्र में भी चुनाव से पहले 60 साल बनाम आठ साल के विकास की चर्चा अभी से दिखने लगी है इसको और अवसर आगे बढ़ाने का है ताकि अगला चुनाव भी विकास पर ही फोकस हो। 
                          '' जय हो मप्र की''
  

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

बार-बार दबंगों के निशाने पर दलित मध्‍यप्रदेश में


      जाने क्‍यों बार-बार यह सवाल उठता है कि अपने आपको शांति का टापू कहे जाने वाले मप्र में दलित वर्ग बार-बार दबंगों के निशाने पर क्‍यों आता है। शायद ही कोई ऐसा महीना गुजरता हो, जब मप्र के मीडिया में दलित वर्ग के प्रताड़ना की खबरें फोकस न होती हो पर फिर भी न तो पुलिस कोई कार्यवाही करती है और न ही सरकार की तरफ से राहत मिल रही है। राज्‍य के करीब एक दर्जन से अधिक जिलों में तो दलित उत्‍पीड़न की घटनाओं में इजाफा ही हुआ है। 26 जनवरी को जब पूरा देश गणतंत्र मना रहा था, तब मप्र के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर में दलित महिलाओं को गांव में पानी भरने से रोका गया और मारपीट की। इस घटना के छ: दिन बाद इसी इलाके के टीकमगढ़ जिले में पुलिस के अत्‍याचार का शिकार दलित हुआ है, तो सागर जिले के बीना के एक गांव बेलई में तो दलित बाल किशन अहिरवार की इसलिए पिटाई कर दी गई कि उसने दबंगों को सामने झुककर सलामी देने से इंकार कर दिया। इस गांव के दबंग रघुराज सिंह ठाकुर एवं गजराज सिंह ठाकुर को यह नागवार गुजरता है कि कोई दलित उनके सामने से गुजर जाये और सलामी न करें, यह तो ठाकुरों के शान के खिलाफ है। ऐसे घटनाएं पहली बार नहीं हुई है। मप्र में कई बार दलित युवक को अपनी बारात के दौरान दूल्‍हे को घोड़े से नीचे उतर दिया गया है। इसी प्रकार टीकमगढ़ जिले के ग्राम भेलसी में तो 31 जनवरी को निस्‍तार करने के दौरान निकली महिलाओं के साथ दबंगों ने मारपीट की, जब यह महिलाएं थाने में रिपोर्ट कराने गई तो थाना बल्‍देवगढ़ के प्रधान आरक्षक और सिपाहियों ने इन महिलाओं के साथ बदसलूकी की और उन्‍हें डांट डपट कर भगा दिया। चौंकाने वाले तथ्‍य यह है कि बुंदेलखंड में आज भी ठाकुरों के राजसी ठांटबांट हैं और वे अभी भी यह मानकर चलते हैं कि उनकी ठकुरास कायम है जिसके चलते वे दलित समाज के लोगों को तो अपने सामने कीड़ें-मकोड़े की तरह समझते हैं यही वजह है कि कई क्षेत्रों में आज भी दबंगों की बस्‍ती की गलियों से दलित जूते-चप्‍पल पहनकर निकल भी नहीं सकता है उसे हाथ में लेकर ही जाना पड़ता है।
यहां तक कि जब अत्‍याचार की सीमाएं बढ़ जाती है और उनके रोजगार को भी जब छीना जाता है तो दलित समाज के लोग दबंगों से लड़ने की बजाय चुप-चाप अपना सामान लेकर गांव से शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। कई बार शहरों में मजदूरी करके अपना जीवनोपर्जन कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी दलितों पर अत्‍याचार थमा नहीं है, बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। राज्‍य सरकार ने अत्‍याचार रोकने के लिए सख्‍त कानून बना रखे हैं, जिलों में अजा थाने है, लेकिन जब वही न्‍याय नहीं मिल रहा है, तो फिर किस पर उम्‍मीद की जाये। दुखद पहलू यह है कि सामाजिक संगठनों की इस दिशा में कोई सक्रियता नहीं है और न ही वे इन इश्‍यू को आगे बढ़ाते हैं। राजन‍ीतिक दल तो दलित प्रता‍ड़ना के मामले में अधिक गंभीर नहीं है जिसका लाभ दबंग उठा रहे हैं और हम सब मूक दर्शक बनकर देख रहे है। ऐसा नहीं है कि हर बार पुलिस कार्यवाही नहीं करती है। कई मामलों में पुलिस ने दबंगों को धर-दबोचा है, सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भी समय-समय पर चिंता जाहिर करते हैं, लेकिन दलितों पर अत्‍याचार थमा नहीं है। यही अफसोस है। 
खजाना कूपन का सहारा लेगी भाजपा : 
      कारपेट घराना और उद्योगपतियों से थोक में भाजपा अब चंदा लेने के मूड में नहीं है, क्‍योंकि कांग्रेस ने भाजपा पर चंदाघोर पार्टी का आरोप चस्‍पा कर रखा है इसके चलते पार्टी के प्रदेशाध्‍यक्ष प्रभात झा ने अब पार्टी का खजाना लबालब भरने के लिए कूपन का सहारा लेने का एलान किया है। पार्टी अप्रैल माह से 100, 500 एवं 1000 के कूपन तैयार करेगी, जो कि पार्टी कार्यकर्ता और आम लोगों से एकत्रित किया जायेगा, यानि एकबार फिर भाजपा चंदा लेने के लिए बाजार में उतर रही है। वैसे भी भाजपा के नेता इन दिनों धार्मिक, सामाजिक, अध्‍यात्मिक, मेले, फिल्‍मी गानों के कार्यक्रम, कवि सम्‍मेलन, बड़े धर्मगुरूओं के प्रवचन, खेल के उत्‍सव सहित आदि कार्यक्रमों के लिए चंदा लेने का दौर जारी है, इसी कड़ी में अब भाजपा भी झण्‍डे, बैनर के साथ चंदा लेने के लिए मैदान में आ रही है। यह कांग्रेसियों के लिए नजर रखने का वक्‍त है।