यूं तो मध्यप्रदेश में आदिवासी बाहुल्य एक दर्जन से अधिक जिले हैं, जिनमें उनकी अपनी-अपनी संस्कृति आज भी जैसे-तैसे बचाने के लिए आदिवासी स्वयं जद्दोजहद कर रहे हैं। आदिवासियों का मुख्य पर्व भगोरिया भी अब व्यापारियों की नजर में कारोबार बनता नजर आ रहा है। हर साल होली से पहले आदिवासियों का यह पर्व जोर-शोर से मनाये जाने का सिलसिला चल पड़ा है। मालवांचल के आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ में तो भगोरिया पर्व बेहद उत्साह से मनाया जाता है। यहां तक कि आदिवासी अपने साल भर की जमा पूंजी भी इस उत्सव में दांव पर लगा देते हैं। इसको व्यापारियों ने भाप लिया है। यही वजह है कि अब व्यापारियों ने भगोरिया को धीरे-धीरे कारोबारी रूप देना शुरू कर दिया है।
इस साल झाबुआ में भगोरिया उत्सव के दौरान रिकार्ड तोड़ कारोबार हुआ है। व्यापारियों के अनुसार करीब एक से दो करोड़ का व्यवसाय होने का अनुमान है। इस बार आदिवासियों की भीड़ भी खूब जमकर मेले में उमड़ी है। कहा जाता है कि 75 पंचायतों से करीब 220 गांवों के आदिवासियों ने इस भगोरिया उत्सव में हिस्सा लिया। इस मौके पर 7 दर्जन से अधिक ढोल पार्टियां भी थी, जो कि आदिवासियों के रंग में रंगी हुई थी। इसके साथ ही आदिवासी बच्चों के लिए होटलों की व्यवस्था भी की गई थी। इस मौके का लाभ उठाते हुए व्यापारियों ने भी आटो मोबाइल, कपड़ा, बर्तन, ज्वैलरी, खेरची बाजार को आदिवासियों के खूब सजाया। करीब 2 हजार दुकानें लगी थी, जिसमें आदिवासियों ने भरपूर खरीदरी की थी। इस बार के भगोरिया उत्सव से उत्साहित व्यापारियों को अब ऐसा लगने लगा है कि इस त्यौंहार को भी कारोबार में बदला जा सकता है। इसकी नींव रखी जा चुकी है, भविष्य में भगोरिया उत्सव भी अन्य त्यौंहारों की तरह कहीं बाजार की भेंट न चढ़ जाये, इसकी चिंता आदिवासियों के शुभचिंतकों को सताने लगी है।
''मप्र की जय हो''
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