जब-जब किसानों ने नये सपने बुने तो उन्हें प्रकृति ने तारतार करने में भी देरी नहीं लगाई। जाने क्यों, बार-बार प्राकृतिक मार के शिकार मध्यप्रदेश के किसान हो रहे हैं। हर दो साल में किसानों के साथ नाइंसाफी हो रही है। बहुत मेहनत से किसान जैसे-तैसे अपनी खेती को जिंदा रखने के लिए जद्दोजहद कर रहा है, लेकिन प्रकृति उसे हर बार चौराहे पर लाकर खड़ी कर देती है। इस बार भी बिन मौसम बरसात ने किसानों के जीवन में निराशा और हताशा ला दी है। प्रकृति की मार का खेल मध्यप्रदेश में एक दशक से चल रहा है। हर एक या दो साल के भीतर बिन मौसम बारिश और ओलाबारी किसानों की फसलों को चौपट कर रहा है जिसके चलते किसान न तो अपनी जिंदगी सुधार पा रहा है और न ही फसलों के जरिये परिवार में कोई खुशहाली आ पा रही है। इस वर्ष जनवरी से मार्च के महीने में जो बिन मौसम बारिश हुई है उसने 2083 करोड़ से अधिक फसलों को नुकसान पहुंचाया है। अब तक राज्य के करीब 80 लाख 47 हजार 61 किसानों की फसलों को नुकसान हुआ है। ओला एवं पाला के कारण करीब 7 लाख 74 हजार 771 हैक्टेयर में फसलें नुकसान हो गई हैं। सरकार के प्रारंभिक आंकलन के अनुसार करीब साढ़े तेरह हजार गांव प्राकृतिक प्रकोप के शिकार हुए हैं जिसमें 29 लोगों की जानें गई हैं और 300 मवेशी मारे गये हैं। दुखद पहलू यह है कि राजगढ़ जिले में तो फसलों को देखकर एक किसान ने आत्महत्या तक कर ली है।
फसलों के नष्ट होने से किसानों की जिंदगी वाकई में दुखदायी तो हुई है। राज्य सरकार अन्नदाता के आंसू पोंछने के लिए बार-बार आश्वस्त कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों के बीच जाकर लगातार उन्हें हिम्मत दे रहे हैं। वे लगातार कह रहे हैं कि सरकार किसानों के साथ खड़ी है। उनका मानना है कि विभिन्न जिलों में करीब 300 करोड़ से अधिक की फसलों का नुकसान हुआ है। सबसे ज्यादा करीब 20 जिले प्रभावित हुए हैं। इनमें राजगढ़, सतना, नरसिंहपुर, सीधी, रायसेन, भिंड, अनूपपुर, देवास, जबलपुर, होशंगाबाद आदि शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार की ओर से सर्वे का एलान कर दिया है। सर्वे में धांधलियों की बातें भी होने लगी हैं। अब मुख्यमंत्री केंद्र से मदद लेने के लिए दिल्ली में सक्रिय हो गये हैं। उन्होंने पहले चरण में 21 मार्च, 2013 को केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से मुलाकात करके महाराष्ट्र की तर्ज पर मप्र को भी 500 करोड़ का पैकेज देने की मांग की है। उन्होंने तो यह तक कह दिया कि यदि महाराष्ट्र को सूखे के लिए 500 करोड़ का पैकेज मिल सकता है, तो मप्र के किसानों ने उनकी क्या खता की है। मुख्यमंत्री ने किसानों को मार्च के महीने में अनगिनत राहत दे दी हैं, जो वसूली होनी थी वह स्थगित कर दी गई हैं इसके साथ ही आर्थिक मदद के द्वार खोल दिये गये हैं । फसल हानि पर राहत बढ़ा दी गई है। निश्चित रूप से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि खेती को लाभ का धंधा बनाया जाये, लेकिन उनका सपना हर बार किसी न किसी वजह से टूट भी रहा है, लेकिन उन्होंने मप्र की विकास दर तो 18 प्रतिशत बढ़ा ही दी है साथ ही गेहूं की पैदावार में भी रिकार्ड तोड़ उत्पादन हुआ है। भले ही मौसम की मार से किसान आहत हो, लेकिन फिर भी गेहूं का उत्पादन अच्छा होने की उम्मीद कृषि विभाग जाहिर कर रहा है। किसानों की जिंदगी फिलहाल तो नरक बन गई है, लेकिन कोई न कोई रास्ते निश्चित रूप से खुलेंगे और फिर किसानों की जिंदगी में खुशहाली दस्तक देगी। इसी उम्मीद इंसान जिंदा है और लगातार अपनी नई राह बना रहा है। किसानों को भी अपना नया नजरिया देखना चाहिए।
''मप्र की जय हो''
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