वोट की खातिर नेताओं का पलटना तो सामान्य बात है, लेकिन राजनीतिक दल भी अगर जब-तब अपना रूख परिवर्तित करने लगे तो उनकी सोच पर तरस आने के अलावा कुछ नहीं बचता है। यही आलम आजकल भाजपा के साथ बन गया है। मप्र विधानसभा चुनाव में दो साल का सफर बाकी है और अब फिर से भाजपा को गांव की पंगडंडियां और किसानों के दुख-दर्द याद आने लगे हैं। किसानों को जोड़ने के लिए बलराम यात्रा का कार्यक्रम बन गया है, तो पार्टी गांव के माध्यम से मतदान केंद्र तक पहुंचने की योजना पर मुहर 26-27 दिसंबर,2011 को हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में लग गई है। वैसे भी भाजपा गांव की बातें तो खूब करती है, लेकिन गांव के विकास पर जोर अभी तक दिया नहीं गया है। अब भाजपा की मंशा है कि एक माह तक पार्टी के सारे पदाधिकारी गांव में सक्रिय होंगे और ग्राम केंद्र को मजबूत करेंगे। अब मंडल का गठन विधानसभा क्षेत्र के आधार पर किया जायेगा। भाजपा गांव में अपना आधार मजबूत करने की दिशा में बढ़ रही है। गांव-गांव का मास्टर प्लान बनाने की योजना वर्षो से चल रही इस पर अभी अमल नहीं हुआ है। किसान प्राक़तिक प्रक्रोप की मार से परेशान है ही अब खाद, बीज और पानी तथा बिजली को लेकर रोज पीडा से टूट रहा है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। वर्षों बाद किसान सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहा है। भाजपा ने 16 जनवरी से 21 जनवरी, 2012 तक बलराम यात्रा निकालने का एलान कर दिया है। 10 हजार बाइक सवार 50 हजार गांवों में जायेगे। प्रत्येक गांव में सात-सात कमल मित्र बनाये जायेगें। किसानों को बताया जायेगा कि उन्हें एक प्रतिशत ब्याज दर पर कैसे कर्ज मिल रहा है, पांच लाख मैट्रिक टन गेहूं की खरीदी हुई, केंद्र भाजपा विरोधी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर लगातार लोगों से बातचीत कर रहे हैं। गांव में रात्रि विश्राम भी करते हैं पर उनके इस अभियान पर नौकरशाह नहीं चल पा रहे हैं और न ही कोई मंत्री और विधायक उसका पालन कर रहा है इसके चलते गांव-गांव में भारी नाराजगी है। इस गुस्से का सामना करने के लिए भाजपा को तैयार रहना चाहिए। यह अच्छा है कि कांग्रेस अभी तक गांव-गांव में नहीं पहुंची है, जब दस्तक देगी तो टकराव होना स्वाभाविक है। यह सही है कि मध्यप्रदेश के गांव-गांव में विकास ने दस्तक तो दी है, लेकिन जिस तरह से विकास होना चाहिए उसमें अभी वर्षों लग जायेगे, क्योंकि पंचायती राज को अभी भी ताकतवार नहीं बनाया जा रहा है जिसके चलते एक भ्रष्ट तत्व ने भी पैर जमा लिये हैं। मनरेगा जैसी योजना होने के बाद भी अगर गांव-गांव से लोग पलायन कर रहे हैं, तो फिर अंदाज लगाया जा सकता है कि गांव में चल रही सरकारी योजनाओं का क्या परिणाम मिल रहा होगा। गरीबी, अशिक्षा, अन्याय, शोषण और कालाबाजारी का सामना आम गांव का किसान कर रहा है। इसमें सभी शामिल हैं और एक नई राह के इंतजार में है कि कोई तो आयेगा और गांव के विकास में नई राह दिखायेगा।
अब हिन्दी पर जोर :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हमेशा से हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने पर जोर दिया है। मप्र की भाजपा सरकार हिन्दी में सरकारी काम कराने पर बल देती रही है। वर्षों बाद संघ के पूर्व प्रमुख सुदर्शन की सलाह पर अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय स्थापित होने जा रहा है। यह विवि जनवरी 2012 तक प्रारंभ हो जायेगा। भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी हिन्दी के बढावा देने पर विचार हुआ और 27 दिसंबर को हुई सभा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अटल बिहारी वाजपेयी विवि की स्थापना पर शिवराज सरकार की प्रशंसा करते हुए सलाह दी कि जिस तरह से हिन्दी के माध्यम से मप्र सरकार ने विश्वविद्यालयीन शिक्षा देने का काम किया है उसी तरह से न्याय व्यवस्था में भी हिन्दी का अमल जरूरी है, ताकि गरीबों को समुचित न्याय मिल सके और न्यायालयीन भाषा को समझ सकें। मुख्यमंत्री भी मानते हैं कि हिन्दी को दबाने का षड़यंत्र चल रहा है। कुल मिलाकर हिन्दी के विकास पर अचानक सरकार सक्रिय हो गई है। संघ परिवार यही तो चाहता है।
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