देखिए राजनीति किस तरह से करवट बदलती है इसका प्रमाण उत्तर प्रदेश की चुनावी सरजमी है। जहां पर मध्यप्रदेश के दो दिग्गज करीब आठ साल बाद फिर एक दूसरे पर राजनीतिक तीरों से निशाने साध रहे हैं। राजनीति के खिलाडी और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उमा भारती इन दिनों यूपी के चुनावी समर में मतदाताओं को लुभाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। साधवी उमा भारती तो लगातार यूपी में समय दे रही है, उनकी भाजपा में वापसी के बाद से वे यात्राओं के जरिए कार्यकर्ताओं को नया करंट देने में लगी हुई हैं। दिग्विजय और उमा के बीच चुनावी जंग वर्ष 2001 से 2003 के बीच मप्र में जबर्दस्त रही है। उमा भारती ने ही अपने तीखे बयानों और आक्रमक हमलों से दिग्विजय सिंह का दस वर्ष का राजकाज चुनावी जंग में नेस्तनाबूद कर दिया था और दिग्विजय सिंह हैट्रिक नहीं बना पाये थे। उमा के नेत़त्व में ही भाजपा ने मप्र की सत्ता एक दशक बाद हथियाई थी। यह भी सच है कि उमा भारती को छ: माह बाद ही प्रदेश से विदा होना पडा था पर दिग्विजय सिंह से उनका आमना-सामना समय - समय पर होता रहा, वह भी माध्यम बयान ही थे। अब तो यूपी चुनावी राजनीति में दिग्विजय और उमा एकबार फिर से आमने-सामने आ गये हैं। दोनों राजनेताओं के कद के लिए यूपी चुनाव बहुत अहम भूमिका अदा करेंगा। उमा भारती अगर एक बार फिर से यूपी में भाजपा का इरादा बुलंद करती है तो उन्हें मप्र की राजनीति में फिर से हस्तक्षेप करने का मौका मिल जायेगा और अगर कांग्रेस का ग्राफ बढता है तो दिग्विजय सिंह दस जनपथ में और ताकतवर हो जायेगे। अभी भी कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और उनके बीच खासी निकटता है, लेकिन फिर भी दिग्विजय सिंह का कद यह चुनाव करेगा। कुल मिलाकर उप्र की राजनीति एक बार फिर मप्र के दो राजनेताओं का भविष्य तय करने जा रही है और इसके लिए हमको छ: महीने और इंतजार करना पडेगा।दिग्विजय और उमा अपने अपने मोर्चे पर तैनात हो गये हैं तथा बयानों के जरिये, राजनीतिक हमले भी हो रहे हैं।
लोक सेवा गारंटी कानून : धीमे-धीमे रफतार पकड नहीं पा रहा है -
एक साल का सफर तय कर चुका लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम मध्यप्रदेश में धीरे-धीरे अपनी रफतार पकड नहीं पा रहा है। अभी भी मैदानी स्तर पर आम जनता और जनप्रतिनिधियों को इसकी जानकारी नहीं है। लोक सेवा प्रबंधन विभाग के सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि 72 फीसदी लोगों और जन प्रतिनिधियों को इस कानून की जानकारी नहीं है। महज 1.8 फीसदी लोगों को ही कानून की जानकारी है, जबकि सेवाएं नहीं मिलने पर की जाने वाली अपील के बारे में 82 फीसदी लोगों को जानकारी नहीं है और करीब 50 फीसदी लोगों को पावती भी नहीं मिल रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा इस अधिनियम के जरिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है, लेकिन जब अधिनियम ही धीमी रफतार से चल रहा है, तो फिर तेज चले भ्रष्टाचार पर कैसे लग पायेगा अंकुश।
'' जय हो मध्यप्रदेश की ''
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